दिल्ली चुनावों में कांग्रेस की दुर्दशा का कारण खुद कांग्रेस बनी!

11 फरवरी को दिल्ली विधानसभा के नतीजें आ चुके है। इस बार आम आदमी पार्टी 62 सीट जीतकर दिल्ली की सत्ता पर दोबारा काबिज हो चुकी है। इस बार भाजपा ने काफी ज्यादा अच्छा प्रदर्शऩ नही किया, लेकिन इस बार पिछली बार के मुकाबले भाजपा ने अपनी सीटों में जरुर बढ़ोतरी की है। भाजपा ने इस बार 8 सीटें जीती, जो पिछली बार के मुकाबले पांच सीटें ज्यादा है। लेकिन कांग्रेस पार्टी ने फिर काफी निराशजनक प्रदर्शन किया | हालांकि कांग्रेस ने दिल्ली के चुनाव की तैयारी इस बार भाजपा से पहले कर दी थी। कांग्रेस ने इस बार दिल्ली के चुनाव को लेकर दिल्ली के रामलीला मैदान में भाजपा से पहले रैली की थी, जिसमें राहुल गांधी का एक भाषण काफी ज्यादा वायरल हुआ था | जिसमें उन्होंने सावरकर पर हमला करते हुए कहा था कि मेरा नाम राहुल सावरकर नही राहुल गांधी है।

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राहुल गाँधी के इस बयान के बाद भाजपा समेत महाराष्ट्र में कांग्रेस के गठबंधन सहयोगी शिवसेना ने उनकी काफी ज्यादा आलोचना की थी। काग्रेस पार्टी लगातार तीन बार दिल्ली पर काबिज रही है। कांग्रेस की तरफ से शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री रही थी, लेकिन अब कांग्रेस जो देश की पहली सबसे बडी पार्टी थी आज उनके विधायकों को जमानत तक जब्त हो चुकी है। हालांकि दिल्ली चुनाव के बाद कांग्रेस के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। राहुल गांधी ने आप के पक्ष में आये रुझानों के बाद एक ट्विट किया और अरविंद केजरीवाल को बधाई दी | यहाँ बड़ा सवाल है कि क्या कारण है कि देश की सबसे बड़ी पार्टी की इतनी निराशजनक हार हुई। अगर हम दिल्ली के पिछले चुनाव के बात करें तो पिछली बार कांग्रेस को केवल 14 प्रतिशत तक वोट मिले। इस बार कांग्रेस ने केवल 8 प्रतिशत वोट हासिल किए है। अगर हम कांग्रेस के प्रदर्शन की बात करें तो पिछले कई राज्यों में हए चुनाव में काग्रेस का प्रदर्शन ठीक-ठाक रहा है।

 

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इस बार दिल्ली के चुनाव हारनें के बाद अगले चुनाव बिहार के है। बिहार में काग्रेस क्या गुलखिलाएगी यह तो आने वाला समय ही बताएगां । लेकिन अगर हम कांग्रेस की हार की बात करें तो यह बात स्पष्ट है कि काग्रेंस के नेता चाहते है कि उन्हें बिना मेहनत करें सबकुछ मिल जाएं | पहले समय में ऐसा होता था कि लोग बिना सोचें समझे वोट ड़ाल देते थे, लेकिन अब समय बदल गया है लोग उसी को वोट देते है जो उनके बीच रहता हो | भाजपा चाहे इस चुनाव में हार गई हो, लेकिन इस बात से इंकार नही किया जा सकता कि भाजपा ने टक्कर नही दी। अमित शाह देश के गृहमंत्री ने इस बार दिल्ली चुनाव को लेकर कड़ी मेहनत की, उन्होंने 21 जनवरी नामांकन के बाद लगातार रैलियां और कई नुक्कड़ सभाएं की और ड़ोर टू डोर लोगों से मिलते थे, परंतु कांग्रेस ने दिल्ली चुनाव का डंका सबसे पहले पीटा, लेकिन बाद में उनकी पार्टी और न ही पार्टी के कार्यकर्ताओं ने लोगों से मिलने की कोशिश की | राहुल गांधी जिन्होंने भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी पर लगातार प्रहार किए, लेकिन हर बार खुद सवालों के घेर में आ जाते थे। जिस तरह कांग्रेस ने सीएए और एनआरसी पर पूरे देश में भाजपा को घेरा था, उसे देखने से लग रहा था कि इस बार कांग्रेस अपनी खाता खोल सकेंगी। लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ, कांग्रेस के अगर हम विधायकों की बात करें तो कई कांग्रेस विधायक चुनाव से पहले ही कांग्रेस छोड़ आम आदमी में शामिल हो गए थे। जिससे पार्टी का मनोबल पहले ही टूट चुका था, अगर हम भाजपा की रैलियों के बजाय कांग्रेस की रैलियों और सभाओं की बात करें तो कांग्रेस ने बहुत कम रैलियां और सभाएं की।

 

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दरअसल दिल्ली के इस चुनाव में जब लोगों से बात करते थे तो इस बात का पता चला कि इस बार चुनाव में केवल दो ही पार्टियां मैदान में है एक भाजपा और दूसरी आम आदमी पार्टी, कांग्रेस तो कहते है इस बार रेस में भी नही है। अगर कांग्रेस ने सत्ता पर दोबारा काबिज होना है तो पार्टी के कार्यकर्ताओं और खुद राहुल, प्रियंका, सोनिया गांधी और पार्टी के अन्य शीर्ष नेताओँ को लोगों के दिल में दोबारा घर बनाना होगा | इसके लिए पार्टी को ज्याद से ज्यादा लोगों के साथ संपर्क करना होगा। दिल्ली में कांग्रेस की अगर हम हार की बात करें तो कमजोर संगठन, कार्यकर्तओं में जोश की कमी और शीर्ष नेताओं में आपसी कलह, अगर कांग्रेस ने दोबारा अपना गोल्ड़न पीरियड लाना है तो उसे भाजपा और आम आदमी से सीखना चाहिए।

 

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