दुनिया को पहली बार मिली मलेरिया वैक्सीन, जानिए क्या है इंडिया कनेक्शन
विकासशील और अविकसित दुनिया में दशकों से अभिशाप बनी बीमारी मलेरिया की वैक्सीन को डब्ल्यूएचओ (WHO recommends groundbreaking malaria vaccine) ने अब अपनी मंजूरी दे दी है. डब्ल्यूएचओ की इस मंजूरी के बाद भारत सहित अफ्रीकी देशों में एक उम्मीद की किरण दिखी है. अफ्रीकी देशों में ही सबसे ज्यादा मलेरिया के मरीज पाए जाते हैं. लेकिन आपको जानकार आश्चर्य होगा कि वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि का एक भारतीय कनेक्शन भी है.वैक्सीन को इस्तेमाल के मंजूरी दिए जाने के मौके पर डब्ल्यूएचओ के प्रमुख टेड्रोम ऐडनम ने कहा कि इस घातक बीमारी के खिलाफ जंग में यह एक ऐतिहासिक दिन है.
हर साल 1.5 करोड़ डोज का उत्पादन करेगी भारत बायोटेक
RTS,S नाम की इस वैक्सीन को दिग्गज फर्मा कंपनी GlaxoSmithKline (GSK) ने विकसित किया है. यह वैक्सीन मलेरिया से संक्रमित बच्चों में गंभीर बीमारी के जोखिम को काफी हद तक कम कर देती है.
इस वैक्सीन को मंजूरी मिलना दो दृष्टिकोण से भारत के लिए अच्छी खबर है. क्योंकि देश की एक प्रमुख वैक्सीन निर्माता कंपनी भारत बायोटेक इंडिया लिमिटेड (Bharat Biotech India Ltd) को 2029 तक इस वैक्सीन का उत्पादन करने का ठेका दिया गया है. इस तरह मलेरिया की वैक्सीन का उत्पादन करने वाली वह दुनिया की एक मात्र कंपनी होगी. भारत बायोटेक ही कोरोना की देसी वैक्सीन कोवैक्सीन का उत्पादन करती है.
मलेरिया की वैक्सीन उत्पादन के लिए GSK और भारत बायोटेक के बीच एक करार हुआ है. इस करार के तहत भारत बायोटेक हर साल RTS,S के 1.5 करोड़ डोज तैयार करेगी.मलेरिया की इस वैक्सीन को मंजूरी मिलने से भारत को दूसरा फायदा यह है कि हमारे यहां हर साल बड़ी संख्या में मलेरिया के मरीज मिलते हैं. ऐसे में अगर इस वैक्सीन को दुनिया के अन्य इलाकों में इस्तेमाल की मंजूरी मिलती है तो इससे भारत को काफी फायदा होगा.
बीते दो दशक में स्थिति में काफी सुधार हुआ है
रिपोर्ट के मुताबिक देश में बीते दो दशक में मलेरिया की स्थिति में काफी सुधार हुआ है. वर्ष 2000 के आसपास देश में जहां मलेरिया हर साल करीब दो करोड़ मरीज मिलते थे वहीं 2019 में यह संख्या घटकर करीब 60 लाख पर आ गई. हालांकि यह भी कहा जाता है कि देश में मलेरिया से पीड़ित मरीज की जांच बहुत कम होती है.
देश में मलेरिया से होने वाली मौतों में भी भारी कमी आई है. जहां 2000 में इस बीमारी के कारण 932 लोगों की मौत हुई थी वहीं 2019 में इससे केवल 77 लोगों की मौत हुई.
कैसे फैलता है मलेरिया
आम भाषा में कहें तो मच्छरों की एक प्रजाति एनोफेलस (Anopheles) के काटने के कारण इंसान मलेरिया बीमारी का शिकार होता है. मलेरिया से बीमार किसी व्यक्ति को कांटने वाले मच्छर दूसरे व्यक्ति को काट ले तो उसमें मलेरिया हो जाता है. इस तरह मलेरिया प्लासमोडियम फैल्सिकरम (Plasmodium Falciparum) पैरासाइट से फैलता है.
कैसे मिली सफलता
इस वैक्सीन को विकसित करने का काम काफी समय से किया जा रहा था, लेकिन शुरुआती वर्षों में इसमें कोई खास सफलता नहीं मिली. इसके बाद डब्ल्यूएचओ ने 2019 में इस वैक्सीन को घाना, केन्या और मालावी जैसे अफ्रीकी देशों में क्लिनिकल ट्रायल के लिए मंजूरी दी. क्लिनिकल ट्रायल में इन देशों के 8 लाख से अधिक बच्चों को यह वैक्सीन लगाई गई. इस क्लिनिकल ट्रायल के नतीजों के आधार पर डब्ल्यूएचओ ने इसके इस्तेमाल को मंजूरी दी है. वैसे डब्ल्यूएचओ ने आगाह किया है कि इस वैक्सीन को लगाने का मतलब यह कतई नहीं है कि आप मलेरिया से बचने के उपाय करना छोड़ दें. मसलन मच्छरदानी का प्रयोग. उसका कहना है कि इस वैक्सीन को लगाने से बच्चों में मलेरिया के दौरान किसी गंभीर बीमारी का खतरा काफी कम हो जाता है.