क्या 400 पार का नारा, बन पाएगा आरएसएस के ‘हिंदू राष्ट्र’ के संकल्प का सहारा?
इधर दिल्ली में 16 मार्च को लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हुआ और उधर नागपुर में उसी दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने शीर्ष नेतृत्व में दो युवा चेहरों अतुल लिमये और आलोक कुमार को शामिल कर लिया। कहा जा रहा है कि आरएसएस चाहता है कि युवाओं के बीच संपर्क बढ़ाया जाए और कोशिश की जा रही है है कि नए-नए लोगों को लाया जाए। युवाओं को जोड़कर भाजपा को फायदा मिल सकता है।
हालांकि पत्रकारों के जवाब में संघ के सह सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि चुनाव देश के लोकतंत्र का महापर्व है। देश में लोकतंत्र और एकता को अधिक मजबूत करना और प्रगति की गति को बनाए रखना आवश्यक है। संघ के स्वयंसेवक सौ प्रतिशत मतदान के लिए समाज में जन-जागरण करेंगे।
400 पार के नारे पर ज़ोर क्यों?
कई राजनैतिक जानकारों का मानना है कि अगले साल सितंबर में आरएसएस के स्थापना दिवस के 100 साल पूरे हो जाएंगे। इस मौके पर वह अपने स्थापना संकल्प को पूरा करने के इच्छुक हो। 27 सितंबर 1925 को आरएसएस की स्थापना करते हुए ‘हिंदू राष्ट्र’ का संकल्प लिया गया था। ऐसे में जब अगले साल शताब्दी समारोह मनाया जाएगा, तो हो सकता है कि इस संकल्प को पूरा करने की कोशिश की जाए। क्या ये तब मुमकिन हो पाएगा, जब सीटे 400 के पार होगी।
संविधान में संशोधन कैसे?
अगर आप इतिहास पर जाएंगे, तो साल 1951 में संविधान में संशोधन किया गया था और इसके बाद तो हर सरकार लगातार कोई न कोई संशोधन लाती ही रहती है। संविधान में सबसे ज्यादा संशोधन 1975 में इमरजेंसी के दौरान हुए थे। उस समय संशोधन करके न्यायपालिका को कमज़ोर कर दिया गया था, हालांकि बाद में ये संशोधन रद्द कर दिए गए थे।
वैसे संविधान में संशोधन की बात करे तो अनुच्छेद 368 के अंतर्गत सरकार को लोकसभा और राज्यसभा में दो तिहाई बहुमत चाहिए और साथ ही आधे राज्यों के विधानमंडलों का समर्थन भी चाहिए। बहुमत के बाद विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, जो पुनर्विचार के लिए दोबारा नहीं भेज सकते।
हालांकि राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि संविधान में कही गई धर्मनिरपेक्षता, बराबरी का अधिकार, अभिव्यक्ति और असहमति का हक जैसी मूलभूत बातों में बदलाव नहीं किया जा सकता।
संविधान संशोधन को लेकर हेगड़े का विवादित बयान
भाजपा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री अनंत हेगड़े ने हाल ही में कहा था कि संविधान संशोधन के लिए बीजेपी को दो तिहाई बहुमत देने का आह्वान किया था। हालांकि विपक्ष ने जब आपत्ति जताई तो पार्टी ने इसे हेगडे की व्यक्तिगत राय कहकर पल्ला झाड़ लिया।
आरएसएस राम मंदिर का प्रचार कर रही है लगातार
भाजपा के लिए किसी भी तरह की कोई कमी नहीं छोड़ रहा आरएसएस और इसी कड़ी में राम मंदिर का निर्माण होने के महीनों बाद भी लगातार जनता के बीच ताज़ा रखने की कोशिश में लगा है। प्राण प्रतिष्ठा के समय भी इस समारोह को पूर्ण रूप से भाजपा और आरएसएस का बना दिया गया था। उस समय भी विरोधी पार्टियों ने इसकी आलोचना की थी।
हालांकि भाजपा में रह चुके शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा था कि राम मंदिर में आने वाले भक्तों में गिरावट आ रही है लेकिन राम मंदिर ट्रस्ट ने इस दावे को गलत बताया था।
भाजपा और आरएसएस दोनों ही जनता के बीच किसी न किसी तरीके से राम मंदिर के मुद्दे को जिंदा रखना चाहते हैं, ताकि वोटों का असर लोकसभा चुनावों पर पड़े।
तो क्या राम मंदिर के बाद अब आरएसएस सीटों का खेल करके अपने स्थापना संकल्प को पूरा करने की इच्छुक है!