क्या लालू के लौटते ही सत्ता की बाजी पलट देंगे मांझी-सहनी? जानें सियासत
पटना. चारा घोटाला के एक मामले में जमानत मिलने के बाद कुछ दिनों पहले ही राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव जेल से बाहर आए हैं. फिलहाल तो दिल्ली में हैं, लेकिन वहां भी वे लगातार नेताओं से फोन-संवाद कर रहे हैं. राजद के कई विधायक उनसे मिल रहे हैं. इधर पटना में एनडीए सरकार में शामिल हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और विकासशील इंसान पार्टी के प्रमुख जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी की मुलाकात से सियासी हलचल बढ़ गई है. वहीं, पटना में सियासत से जुड़े लोग 11 जून का इंतज़ार बेसब्री से कर रहे हैं. दरअसल, 11 जून को लालू यादव का जन्मदिन है और सियासी गलियारों में चर्चा यही है कि वे उसी दिन दिल्ली से पटना आ सकते हैं. जाहिर है यह बिहार की सियासत के लिहाज से बड़ी खबर है] क्योंकि लालू की बिहार वापसी सूबे की सियासत में बड़ी हलचल मचा सकती है.
दरअसल, इस हलचल की अटकलें इसलिए लग रही हैं, क्योंकि हाल में ही राष्ट्रीय जनता दल की ओर से लगातार दावा किया जा रहा है कि इस मानसून में एनडीए की नाव बिहार में डूब जाएगी. राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने हाल में ही कहा था कि एनडीए सरकार में मांझी और सहनी की उपेक्षा की जा रही है. बिहार में इनके सहारे एनडीए सरकार चल रही है, लेकिन दोनों से किसी भी फैसले में सलाह नहीं ली जाती है. उन्होंने स्पष्ट रूप से दावा किया कि दोनों नेताओं (मांझी-सहनी) की मुलाकात रंग लाएगी और इस बरसात में बिहार में एनडीए की नाव डूब जाएगी.
सीटों के समीकरण में उलझा है सियासी गणित
बता दें कि बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए (NDA) की सरकार चल रही है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में चल रही सरकार को फिलहाल 243 सीटों में 127 विधायक का समर्थन प्राप्त है. इनमें भारतीय जनता पार्टी के 74, जनता दल यूनाइटेड के 44 (मेवालाल चौधरी के निधन के बाद खाली हुई सीट के बाद 43 सीटें), मांझी की पार्टी हम के और मुकेश सहनी की पार्टी के 4 विधायकों का सपोर्ट है. इसके साथ ही एक निर्दलीय का भी समर्थन नीतीश सरकार को प्राप्त है. साफ है कि 243 सीटों वाली विधानसभा में फिलहाल बहुमत को लेकर कोई चिंता नहीं है.महागठबंधन के लिए मांझी-सहनी पलट सकते हैं बाजी
वहीं, महागठबंधन में राजद के 75, कांग्रेस के 19 और वाम दल के 16 विधायक हैं. यानी सीधे तौर पर 110 विधायकों की संख्या के साथ बहुमत से महज 12 सीट दूर है. दूसरी ओर एआईएमआईएम के 5 विधायक हैं. ये सभी विधायक पहले ही अपना रुख जाहिर कर चुके हैं कि वे महागठबंधन को बिना शर्त समर्थन दे सकते हैं. यानी कुल 115 विधायकों का तो स्पष्ट समर्थन है. यानी बहुमत से महज 7 सीटें दूर. ऐसे में अगर मांझी-सहनी का थोड़ा भी मन डोला तो उनके 8 विधायक महागठबंधन के लिए सत्ता का गणित सुलझा सकते हैं.
कयासबाजियों की हकीकत से क्या जल्द ही उठेगा पर्दा?
वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि राजनीति में सब कुछ संभावनाओं पर टिका होता है. बिहार के सियासी गलियारे में इस बात की खूब चर्चा है कि 11 जून को अपने जन्मदिन पर लालू यादव बिहार वापस आएंगे और अपने समर्थकों को कोई बड़ा उपहार देंगे, पर वह बड़ा गिफ्ट क्या होगा इसे तो संकेत में ही समझना होगा. इन खबरों के बीच मंगलवार को लालू यादव और राबड़ी देवी को शादी की सालगिरह पर शुभकामनाएं देकर सियासी कयासबाजियों को और तेज कर दिया है. ये हलचल इसलिए कि कई बार मांझी और सहनी अपनी ही सरकार से नाराज बताए जाते रहे हैं.
क्या तेजस्वी के लिए इतना बड़ा रिस्क उठाएंगे लालू?
हालांकि, रवि उपाध्याय कहते हैं कि इन सब सियासी चर्चाओं की हकीकत क्या है यह तो आने वाले वक्त में मांझी-सहनी के रुख से ही पता लग पाएगा, लेकिन किसी के बधाई भर दे देने से सियासत नहीं बदल जाती है. ऐसे भी सियासी गणित उलझा हुआ है, क्योंकि मांझी-सहनी के बाद सभी विधायक उनके साथ चले ही जाएंगे, ऐसा संभव नहीं लगता है. मान लीजिए अगर आ भी जाए तो सियासत की ये पलटबाजी कितनी स्थिर होगी, इसको लेकर स्वयं लालू यादव के मन में भी संशय रहेगा. दूसरी ओर नीतीश कुमार भी कोई कच्चे खिलाड़ी तो हैं नहीं कि इतनी आसानी से बाजी हार जाएंगे, यह बात तो लालू भी जानते हैं. तीसरी बात यह भी है कि लालू तेजस्वी को इतने अल्प बहुमत में मुख्यमंत्री बनाने का रिस्क उठाएंगे, यह बात आसानी से गले नहीं उतरती है.
संभावनाओं के संकेत भर से बढ़ी सूबे की सियासी हलचल
बहरहाल, इन कायबाजियों के बीच बुधवार को मांझी की पार्टी हम की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक है, ऐसे में सबकी निगाहें इस पर टिकी हुई हैं कि मांझी इसमें क्या कहते या करते हैं. पार्टी के प्रवक्ता दानिश रिजवान के अनुसार हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जनहित और पार्टी की मजबूती की चर्चा के साथ कई अन्य मुद्दों पर भी विमर्श होगा. वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि इस पंक्ति में अन्य मुद्दे वाले शब्द हैं और यही शब्द सबसे अधिक सियासी अटकलबाजियों को तेज कर देते हैं. दरअसल राजनीति में सब कुछ संभावनाओं पर टिका होता है और लालू के पटना लौटने की खबरों के बीच फिलहाल बिहार के सियासी गलियारे में हलचल तो जरूर बढ़ गयी है.