दिन भर में कई बार तालिबान से क्यों बात कर रही है अमेरिकी सेना, कोई रणनीति है या दबाव
अफगानिस्तान में आखिर क्या होने वाला है? एक तरफ तालिबान ने अमेरिका समेत सभी नाटो देशों की सेनाओं को 31 अगस्त तक देश छोड़ने या फिर अंजाम भुगतने की धमकी दी है। वहीं दूसरी तरफ अमेरिका से ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने इस डेडलाइन को कुछ वक्त के लिए बढ़ाने की मांग की है। दरअसल ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों का कहना है कि जब तक लोगों को सुरक्षित निकाल नहीं लिया जाता है, तब तक सेनाओं की मौजूदगी बनी रहे। इस बीच अमेरिकी सेना दिन में कई बार तालिबान से बात कर रही है।
पेंटागन के प्रेस सचिव जॉन किर्बी का कहना है कि अमेरिकी सैन्य अधिकारी दिन में कई बार तालिबान से बात कर रहे हैं ताकि लोगों को सुरक्षित निकाला जा सके। किर्बी ने कहा कि काबुल एयरपोर्ट से लोगों को निकालने का जो ऑपरेशन चल रहा है, उसे लेकर तालिबान से भी बात की जा रही है। इसके अलावा उन्होंने तालिबान की ओर से 31 अगस्त तक की डेडलाइन दिए जाने को लेकर कहा कि हमने वह बयान देखा है। हालांकि इससे ज्यादा कुछ भी विस्तार से बताने से उन्होंने इनकार कर दिया। इस बीच ब्रिटेन के पीएम बोरिस जॉनसन ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से बात की है और सैनिकों को 31 अगस्त के बाद भी कुछ समय के लिए अफगानिस्तान में बनाए रखने की बात कही है।
ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया हैं सैनिक वापसी में देरी के पक्ष में
इस बीच मंगलवार को अफगान संकट पर चर्चा के लिए बोरिस जॉनसन ने 7 नेताओं के एक समूह की बैठक बुलाई है। इस बीच बाइडेन ने संकेत दिए हैं कि अमेरिका और सहयोगी देशों की सेनाओं के रुकने की डेडलाइन बढ़ सकती है। इसकी वजह यह है कि तमाम अमेरिकियों को काबुल एयरपोर्ट पहुंचने में भी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में अमेरिका सैनिकों की वापसी की मियाद को बढ़ाना चाहता है। इसके अलावा ऑस्ट्रेलियाई पीएम स्कॉट मॉरिसन भी बाइडेन प्रशासन के संपर्क में हैं। मॉरिसन ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा कि हमने तालिबान के कब्जे के बाद से अब तक 1,700 लोगों को निकाला है। हम अब भी अपने नागरिकों, वीजा होल्डर्स और हमारी सरकार के साथ मिलकर काम करने वाले अफगानियों को निकाल रहे हैं।
ऑस्ट्रेलियाई पीएम बोले, अमेरिका से करेंगे डेडलाइन बढ़ाने की मांग
मॉरिसन ने कहा कि हम लोगों को लगातार निकाल रहे हैं। हर एक फ्लाइट से हम ज्यादा से ज्यादा लोगों को निकाल रहे हैं। हम जहां तक संभव होगा, ऐसा करते रहेंगे। लेकिन यदि सैनिकों की वापसी की डेडलाइन बढ़ सकती है तो हम निश्चित तौर पर अमेरिका से इसकी मांग करेंगे।