सिंगल मां बनाम सिंगल पिता

सिंगल फादर का ओहदा किसी राजा की तरह होता है, जबकि सिंगल मदर्स को ऑन द स्पॉट कैरेक्टर सर्टिफिकेट जारी कर दिया जाता है

 

 

सैकड़ों साल पहले ब्रिटेन में एक राजा हुआ करता था। विलियम नाम के उस शासक को उसकी ताकत और जीत के जुनून के कारण दुनिया विलियम द कॉन्क्वेरर (William the Conqueror) के नाम से जानती थी, लेकिन इसी दुनिया ने उसे एक और नाम भी दिया था। वह नाम था नाजायज औलाद। लंबे वक्त तक ब्रिटेन पर राज करने के बाद भी ये नाम पुछल्ला कब्र तक उसके साथ रहा। विलियम से जब भी कोई गलती होती, तुरंत मंत्री से लेकर संतरी तक उसके नाजायज होने को बीच में ले आते। विलियम ताकतवर मुल्क का राजा होकर भी ‘बे-बाप’ रहा। ये उस दौर की बात है, जब बिजली की खोज नहीं हुई थी।

अब खचपचाई धरती छोड़ हम मंगल पर बसने की सोच रहे हैं, लेकिन गर्भवती से उसके बच्चे के पिता का नाम जानने की इच्छा अब भी मुंह में फिटकरी के स्वाद जैसे बसी है। ये सारी कथा-गाथा इसलिए कि हाल ही में गुजरात हाई कोर्ट को इस पर दखल देना पड़ा। कोर्ट का गुस्सा अस्पतालों पर था। उसने पूछा कि अगर कोई प्रेग्नेंट महिला अपने 9वें महीने में हांफती-कांपती अस्पताल पहुंचे तो क्या अस्पताल उससे बच्चे के पिता के नाम पर दरयाफ्त कर सकता है? क्या अस्पताल को इतनी छूट है कि वह गैर-शादीशुदा और पकी हुई उम्र की युवती से उसके बच्चे के पिता की पड़ताल करे, अदालत ने सवाल दागते हुए एक तरह से अस्पतालों को डांट लगाई कि वह जबरन किसी महिला के पर्सनल स्पेस में नाक न घुसेड़े।

मामला जूनागढ़ की एक महिला का था, जिसने बच्चे के जन्म के समय अस्पताल को पिता का नाम बताने से इनकार कर दिया। वहीं अस्पताल ‘पति-हीन’ गर्भवती को देखने तक को तैयार नहीं था। मामला आगे बढ़ते हुए कोर्ट तक पहुंच गया। तब हाईकोर्ट को पूछना पड़ गया कि अगर कोई महिला गर्भवती होती है, जिसकी शादी नहीं हुई हो तो क्या बच्चे के पिता का नाम जाने बगैर हमारा काम नहीं चलेगा?

 

अकेली प्रेग्नेंट महिला को किसी मुजरिम की तरह ट्रीट करने का ठेका सिर्फ अस्पतालों के पास नहीं। किसी गैर-ब्याहता गर्भवती की भनक लगे नहीं कि पारा-पड़ोस के तमाम नाक-कान-दिमाग एक साथ ही खड़े हो जाते हैं। वे सूंघने लगते हैं कि कहीं, कोई तो सुराग मिले। क्या पेट को संभालती हुई ये युवती बदचलन है? ऑन द स्पॉट ही उसके चरित्र की जांच शुरू हो जाती है। अगर वह सबसे हंसकर बतिया रही हो तो पक्का दुष्चरित्र है। अगर वह किसी खास आदमी से हंसकर बात करे तो बदचलनी में कोई शक नहीं। अगर उदास, सिर झुकाए बैठी हो तो भी चरित्र खराब है तभी न ये हाल हुआ।

जबरन कैरेक्टर सर्टिफिकेट थमाने को तुले लोग तभी शांत होते हैं, जब औरत की बगल में एक मर्द आए और बताए कि बच्चे का पिता मैं हूं। बस। पिता का काम फिल्म में गेस्ट अपीयरेंस देना ही होता है। इसके बाद उसका रोल खत्म। औरत के गर्भ में बीज रोपकर उसे नाम देने का काम पिता का। बच्चे को जन्म देने के बाद पालने-पोसने और इंसान बनाने का काम मां का। पिता अगर नाम देने से पीछे हट जाए, और डरी हुई मां बच्चे को छोड़ दे तो ये बात अगले रोज अखबारों की हेडलाइन बन जाती है। मोटे अक्षरों में लिखा होता है- ममता की मौत, क्रूर मां ने दुधमुंहे को सड़क पर छोड़ा! लोग लगभग चटखारे लेते हुए खबर पढ़ते और बेनाम मां के कैरेक्टर की धज्जियां उधेड़ते हैं।

इसके उलट भी एक हिस्सा है। किसी भी छोटे-मंझोले-बड़े शहर में सिंगल पिता को वैसी इज्जत मिलती है, जैसे किसी राजा-बिराजे को। अव्वल तो वह अकेला रहता नहीं। घर की कोई न कोई दादी-ताईनुमा महिला बेचारे पिता की मदद को पहुंच जाती है। बेचारा पिता दफ्तर जाता है। घर लौटता है। आराम करता है। मौज में आने पर कभी बच्चे को दुलार भी लेता है। महानगर की बात करें तो वहां भी अकेले पिता को संवेदनाओं की पुड़िया मिलती रहती है। इतवारों को पड़ोसिनें बेचारे पिता को गर्म नाश्ते के साथ सहानुभूति की चटनी भी थाल में परोसकर भेजती हैं। ये बात हम नहीं, लेंसेट पब्लिक हेल्थ (The Lancet Public Health) की रिपोर्ट कहती है कि कैसे सिंगल मां और पिता में फर्क होता है।

 

आज से लगभग 60 साल पहले दक्षिणी लंदन में एक लॉज हुआ करता था। बर्दस्ट लॉज में कभी कोई मुसाफिर नहीं ठहरा। इसके आसपास भी लोगों के फटकने की मनाही थी। वजह थी, यहां रहती ‘बदचलन मांएं’। दरअसल लॉज में उन औरतों को रखा जाता, जो बिना शादी के गर्भवती होती थीं। प्रेग्नेंसी का पता लगते ही महिलाओं को जबरन लॉज में ठूंस दिया जाता और डिलीवरी के बाद उनका बच्चा किसी के हवाले कर दिया जाता। इसके बाद वे औरतें आजाद थीं। काफी समय तक ये लॉज चलता रहा। आज भी लंदन के उस खास इलाके को ‘बदचलन लड़कियों का ठिकाना’ कहा जाता है।

हमारे यहां इस तरह की कोई लॉज नहीं, लेकिन गाहे-बगाहे ऊटपटांग बयान जरूर आते रहते हैं। जैसे साल 2018 में मद्रास हाईकोर्ट ने कह दिया कि सिंगल पेरेंटिंग खतरनाक चलन है, जो दुनिया को बर्बाद कर देगा। जजों का कहना था कि सिंगल मां के बच्चों का व्यवहार बदल जाता है, जो समाज के लिए अच्छा नहीं।

इस तमाम धूम-धड़ाम के बावजूद सिंगल मांओं की संख्या बढ़ रही है। संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के डेटा के मुताबिक देश में लगभग 1 करोड़ 30 लाख औरतें सिंगल मां हैं, जो अकेली अपने बूते घर और बच्चा संभाल रही हैं। ये वे मांएं हैं, जिनके लिए उनका बच्चा दुनिया का सबसे कीमती खजाना है। वे पिता की तरह बच्चे को छोड़कर नहीं भागीं, बल्कि उसे अपना शरीर दिया, जन्म दिया, नाम दिया। बदचलन कहलाने की कीमत पर भी डटी रहीं।

 

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