ओलिंपिक में नॉर्थ-ईस्ट का सक्सेस रेट 38%
साइकिल से 20-20 किमी प्रैक्टिस करने आते हैं, उबला खाना खाते हैं, खड़े पहाड़ों पर खेती करते हैं, इसलिए खेलों में इतने आगे हैं नॉर्थ-ईस्ट के लोग
टोक्यो ओलिंपिक में नॉर्थ-ईस्ट से इस बार 8 प्लेयर्स ने क्वालिफाई किया था, इनमें से 3 ने देश को मेडल दिलाया
मिजोरम की राजधानी आइजोल से 130 किमी दूर वैरेंगते शहर आता है। यहां से करीब 20 किमी दूर बुराचेप नाम का गांव है, जहां मैं रिपोर्टिंग के लिए पहुंचा।
उबड़-खाबड़ रास्ते। कहीं बहुत ऊंचे तो कहीं बहुत नीचे। कहीं पानी तो कहीं पथरीली जमीन। कुछ ही देर चलने पर मेरी सांसें भर आईं, लेकिन मेरे साथ मिजोरम के जो लोग चल रहे थे, वो सरपट दौड़ रहे थे।
न वे थक रहे थे और न ही उनकी सांसें भर रहीं थीं। मैंने पूछा कि इतने कठिन रास्तों पर भी आप इतनी आसानी से कैसे दौड़ रहे हैं तो वे बोले- ये बचपन से हमारी प्रैक्टिस में है।
हमारे एरिया में जमीनें ऐसी ही होती हैं। हम पहाड़ों के बीच रहते हैं। खड़े पहाड़ों पर हमारे लोग खेती करते हैं। यहां जमीनें कम हैं इसलिए पहाड़ों पर हमारे लोगों ने खेत बना दिए हैं।
मिजोरम का बुराचेप गांव है। इस तरह के रास्तों को पार करना स्थानीय लोगों के लिए आम बात है। कहीं कीचड़, कहीं पत्थर, कहीं पहाड़ तो कहीं पूरा पथरीला रास्ता।
बुराचेप में एक शख्स लकड़ी से बनी झोपड़ी के बाहर बांस की सब्जी बनाते नजर आया। वो बांस के छोटे-छोटे टुकड़े कर रहा था। सब्जी बनाने के लिए बहुत मसाले उसके पास नहीं थे। तुलसी की पत्ती रखी थी और पानी में बांस के छोटे-छोटे टुकड़ों को उबाला जाना था।
मैंने पूछा- आप ये सब्जी रोज खाते हैं? तो जवाब मिला जब तक हमारे पास बांस है, तब तक हम भूखे नहीं मरेंगे। हमारे यहां उबला खाना बड़े चाव से खाया जाता है।
ये तो हो गईं वो दो बातें, जो बताती हैं कि नॉर्थ-ईस्ट के लोगों की जिंदगी कैसे भारत के बाकी हिस्से में रहने वालों से अलग है, लेकिन आपके जहन में यह सवाल उठ रहा होगा कि इनका जिक्र आज क्यों? वो इसलिए कि आज हम आपको नॉर्थ-ईस्ट के स्पोर्ट्स टैलेंट से रूबरू करवाने जा रहे हैं, जिसने हाल ही में टोक्यो ओलिंपिक में देश का नाम दुनियाभर में रोशन किया है।
127 खिलाड़ी ओलिंपिक में गए थे, इनमें से 8 नॉर्थ-ईस्ट के थे, 3 मेडल ले आए
टोक्यो ओलिंपिक में भारत से कुल 127 प्लेयर्स ने 18 खेलों में पार्टिसिपेट किया था। हमने कुल 7 मेडल जीते। इन 7 में से 3 मेडल हमे नॉर्थ-ईस्ट के प्लेयर्स ने दिलाए। जबकि नॉर्थ-ईस्ट से सिर्फ 8 प्लेयर्स को ही ओलिंपिक के लिए चुना गया था।
नॉर्थ-ईस्ट की साइखोम मीराबाई चानू (वेटलिफ्टर), लवलीना बोरगोहेन (बॉक्सर) और शांगलाकपम नीलकांत शर्मा (पुरुष, हॉकी प्लेयर) ने ब्रॉन्ज मेडल जीता। इनके अलावा नीरज चोपड़ा (जैवलिन थ्रो) ने गोल्ड, रवि कुमार दहिया (कुश्ती) ने सिल्वर, पीवी सिंधु (बैडमिंटन) ने ब्रॉन्ज, बजरंग पुनिया (कुश्ती) ने ब्रॉन्ज और भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने ब्रॉन्ज मेडल जीता।
यानी नॉर्थ-ईस्ट का सक्सेस रेट करीब 38% रहा। ये पहली दफा नहीं है जब नॉर्थ-ईस्ट ने देश का गौरव बढ़ाया है, बल्कि पहले भी मैरी कॉम और बाईचुंग भूटिया जैसे नॉर्थ-ईस्ट के प्लेयर्स देश-दुनिया में छा चुके हैं।
आखिर नॉर्थ-ईस्ट की मिट्टी में ऐसा क्या है कि यहां से इतने प्लेयर्स तैयार हो रहे हैं? क्यों नॉर्थ-ईस्ट को देश की स्पोर्ट्स नर्सरी कहा जाने लगा है? विपरीत हालातों के बावजूद कैसे यहां के प्लेयर्स पहले नेशनल और फिर इंटरनेशनल लेवल पर अपनी धमक जमा रहे हैं?
इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए हम देश की राजधानी दिल्ली से 2074 किमी दूर असम पहुंचे। असम के सबसे बड़े शहर गुवाहाटी को ‘गेटवे ऑफ नॉर्थ ईस्ट’ भी कहा जाता है। असम में एक्सपर्ट्स से बातचीत करने के बाद मिजोरम पहुंचे।
वहां मिजो जनजाति के लोगों के साथ जंगलों में घूमे ताकि उनकी बातों को समझने के साथ जी भी सकें। मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के एक्सपर्ट्स से हमने फोन पर बातचीत की। इसमें हमें वो 5 पॉइंट्स पता चले जो नॉर्थ-ईस्ट को खेलों का सबसे बड़ा हब बनाने जा रहे हैं।
आज रविवार है। आप कहीं घूमने के मूड में भी होंगे तो चलिए करते हैं पूर्वोत्तर भारत की सैर और जानते हैं क्यों और कैसे पूर्वोत्तर भारत देश में खेलों का सबसे बड़ा मैदान बनता जा रहा है…।
खेलों में नॉर्थ-ईस्ट के जादू की ये 5 वजह
1.क्लाइमेट
2.फूड
3.कल्चर
4.रिप्रेजेंटेशन
5.कॉम्पिटिशन