जानना जरूरी है:आखिर जोमैटो, पेटीएम और LIC को IPO लाने की जरूरत क्यों?

IT सेक्टर की दिग्गज कंपनी इंफोसिस का नाम तो आपने सुना ही होगा। इसका IPO फरवरी 1993 में लॉन्च हुआ। इसमें एक शेयर की कीमत 95 रुपए थी और एक्सचेंज पर शेयर की लिस्टिंग 145 रुपए के प्रीमियम पर 14 जून 1993 को हुई। आज ये शेयर 1600 के करीब चल रहा है। अगर आपने इंफोसिस के 100 शेयर्स के लिए 1993 में केवल 10,000 रुपए का निवेश किया होता, तो आज आप लखपति बन गए होते।

कोरोना के दौरान यानी मार्च 2020 से अब तक IPO बाजार गुलजार रहा है। साल 2021 में अब तक 28 IPO आ चुके हैं। इस साल कुछ IPOs से निवेशकों को 90% तक का रिटर्न मिला है। इस साल पेटीएम समेत 10 बड़े IPO आने वाले हैं।

ऐसे में हम आपको यहां समझा रहे हैं कि IPO होता क्या है, क्यों किसी कंपनी को IPO लाने की जरूरत होती है, हम इसमें कैसे पैसा लगा सकते हैं और 2021में अभी तक आए IPOs से निवेशकों की कितनी कमाई हुई?

IPO क्या होता है?
जब कोई कंपनी पहली बार अपने शेयर्स को आम लोगों के लिए जारी करती है तो इसे इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग यानी IPO कहते हैं। कंपनी को कारोबार बढ़ाने के लिए पैसे की जरूरत होती है। ऐसे में कंपनी बाजार से कर्ज लेने के बजाय कुछ शेयर पब्लिक को बेचकर पैसा जुटाती है। इसी के लिए कंपनी IPO लाती है।

IPO में कौन पैसा लगा सकता है?
कोई भी वयस्क व्यक्ति IPO में पैसा लगा सकता है, जो कानूनी अनुबंध की समझ रखता हो। इसके लिए कुछ आवश्यक शर्तें भी हैं…

IPO में शेयर खरीदने के इच्छुक निवेशक के पास देश के आयकर विभाग द्वारा जारी किया गया पैन कार्ड होना चाहिए।वैलिड डीमैट अकाउंट भी होना चाहिए।

IPO में कितना पैसा लगा सकते हैं?
आप IPO में बिल्कुल आसानी से पैसा लगा सकते हैं। कोई भी कंपनी पब्लिक इश्यू के जरिए पैसा जुटाने के लिए IPO 3-10 दिन तक ओपन रखती है। मतलब कोई भी निवेशक IPO को 3 से 10 दिनों के बीच ही खरीद सकता है। हालांकि, ज्यादातर कंपनियों का IPO 3 दिन के लिए खुला होता है।

इसमें कंपनियां प्रति शेयर प्राइस तय करती हैं और उसी हिसाब से लॉट साइज भी तय किया जाता है। एक लॉट में उतने ही शेयर शामिल होते हैं, जिनका कुल अमाउंट 15 हजार रुपए से ज्यादा नहीं होता। लॉट, शेयर्स का एक बंडल होता है।

निवेशक IPO में कंपनी की ऑफिशियल साइट पर जाकर या रजिस्टर्ड ब्रोकरेज के जरिए पैसा लगा सकते हैं, लेकिन एक आम निवेशक 2 लाख रुपए से ज्यादा का इश्यू नहीं खरीद सकता है।

IPO में शेयर्स की कीमत कैसे तय होती है?
IPO की कीमत प्राइस बैंड या फिक्स्ड प्राइस इश्यू से तय होती है। IPO में प्राइस बैंड और न्यूनतम लॉट साइज कंपनी के प्रमोटर्स और शेयरहोल्डर्स, IPO मैनेजर के साथ विचार-विमर्श के बाद तय करते हैं।

IPO में पैसा लगाते समय किन बातों पर ध्यान देना चाहिए?

ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (DRHP) जरूर देखें: यह बताता है कि कंपनी जुटाए गए फंड का इस्तेमाल कहां करेगी। साथ ही निवेशकों के लिए संभावित रिस्क की भी जानकारी देती है।IPO से जुटाए गए फंड का इस्तेमाल कहां होगा: ज्यादातर कंपनियां IPO से जुटाई गई रकम का इस्तेमाल कर्ज चुकाने और बिजनेस को बढ़ाने पर करती हैं। अगर ऐसा है तो बेहतर रिटर्न की संभावना बढ़ जाती है।कंपनी के कारोबार को समझें: IPO में निवेश करने से पहले बतौर निवेशक इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए कि कंपनी का कारोबार क्या है? उस कारोबार में ग्रोथ की संभावनाएं कैसी हैं? अगर कंपनी का कारोबार अच्छा चल रहा है और ग्रोथ की संभावनाएं अच्छी हैं तो निवेश किया जा सकता है।प्रमोटर बैकग्राउंड और मैनेजमेंट टीम: एक निवेशक को जरूर जान लेना चाहिए कि कंपनी कौन चला रहा है? कंपनी के जुड़े सभी कामों में अहम भूमिका निभाने वाले प्रमोटर्स और मैनेजमेंट कैसा है? क्योंकि कंपनी को आगे बढ़ाने में मैनेजमेंट की भूमिका सबसे अहम होती है।बाजार में कंपनी की क्षमता: कंपनी के पास अच्छा बिजनेस मॉडल होना चाहिए। अगर कंपनी फंड जुटाने के बाद अच्छा प्रदर्शन करती है, तो निवेशकों को IPO के दौरान किए गए निवेश पर अच्छा रिटर्न मिल सकता है।कंपनी की स्ट्रेंथ और स्ट्रैटजी​​​: निवेशक DRHP से कंपनी की स्ट्रेंथ और स्ट्रैटजी के बारे में पता लगा सकते हैं। यहां इंडस्ट्री में कंपनी की क्या पोजिशन है इसे जानने की कोशिश की जानी चाहिए।कंपनी की फाइनेंशियल हेल्थ और वैल्यूएशन: निवेशकों को IPO में पैसा लगाने से पहले कंपनी की फाइनेंशियल कंडीशन को समझना चाहिए। पिछले सालों में कंपनी को कितना फायदा या घाटा हुआ है और आय में कितनी कमी या बढ़ोतरी हुई है।सेगमेंट की अन्य कंपनियों के साथ तुलना: IPO लाने वाली कंपनी की तुलना उसी सेगमेंट की अन्य कंपनी के साथ करनी चाहिए। इसके लिए DRHP में फाइनेंशियल नंबर और वैल्यूएशन के डीटेल को आधार बनाना चाहिए।रिस्क फैक्टर: DRHP से रिस्क फैक्टर यानी कंपनी से जुड़ी वो बातें जान सकते हैं, जो भविष्य में कंपनी के लिए खतरा बन सकती हैं। जैसे, कंपनी पर किसी तरह के मुकदमे दर्ज हैं या नहीं।निवेशकों का निवेश पर स्पष्ट रहना: IPO में पैसे लगाते समय यह साफ कर लेना चाहिए कि निवेश लिस्टिंग गेन के लिए है या फिर लॉन्ग टर्म निवेश के लिए। क्योंकि लिस्टिंग गेन बाजार के सेंटीमेंट पर निर्भर करता है और लॉन्ग टर्म निवेश कंपनी की ग्रोथ और कामकाज पर निर्भर करता है।

IPO में पैसा लगाने के बाद हमें कितने दिन बाद शेयर मिलेगा और एक्सचेंज पर शेयर कब लिस्ट होगा?

पब्लिक इश्यू बंद होने के 3 कारोबारी (वर्किंग) दिन बाद शेयर अलॉट होते हैं। यानी निवेशक के डीमेट अकाउंट में शेयर आ जाएंगे। शेयर्स की लिस्टिंग की बात करें तो यह IPO बंद होने के अगले 6 कारोबारी दिन बाद दोनों एक्सचेंज BSE और NSE पर लिस्ट होते हैं। स्टॉक मार्केट में लिस्ट होने के बाद शेयर सेकेंड्री मार्केट में खरीदे और बेचे जा सकते हैं।

IPO बंद होने के बाद शेयरों का अलॉटमेंट कैसे होता है?
मान लीजिए कोई कंपनी IPO में अपने 100 शेयर लेकर आई है, लेकिन 200 शेयरों की मांग आ जाए तो क्या होता है? इसके लिए कंप्यूटराइज्ड लॉटरी के जरिए आई हुई अर्जियों का चयन होता है। जैसे, किसी निवेशक ने 10 शेयर मांगे हैं तो उसे 5 शेयर भी मिल सकते हैं या किसी निवेशक को शेयर नहीं मिलना भी संभव होता है।

क्या एक्सचेंज पर शेयर्स की लिस्टिंग बाजार के मूड पर भी निर्भर होती है?
हां, अगर मार्केट सेंटीमेंट पॉजिटिव रहा तो ज्यादातर मौकों पर शेयर अपने इश्यू प्राइस से ऊपर लिस्ट होते हैं। इसे प्रीमियम पर लिस्टिंग कहते हैं, लेकिन मार्केट में बिकवाली रहे तो शेयर अपने इश्यू प्राइस से कम भाव पर लिस्ट होता है, जिसे डिस्काउंट पर लिस्टिंग कहते हैं।

IPO में पैसा लगाने वाली कैटेगरी कौन-कौन सी हैं?

2 लाख रुपए तक के शेयर्स के लिए आवेदन करने वाले इनवेस्टर्स को रिटेल यानी आम निवेशकों की कैटेगरी में रखा जाता है।रिटेल निवेशकों से ज्यादा निवेश करने वाले को नॉन-इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर्स (NII) कहते हैं।एक अन्य कैटेगरी क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल बायर्स (QIB) की है, जिनमें पेंशन फंड, म्यूचुअल फंड, इंश्योरेंस कंपनियां और इनवेस्टमेंट बैंक शामिल होते हैं। ये स्टॉक मार्केट में बड़ी वॉल्यूम में ट्रेडिंग करते हैं।

अगर IPO में कंपनी के शेयर नहीं बिकते हैं तो क्या होगा?
मान लीजिए कोई कंपनी अपना पब्लिक इश्यू (IPO) लाती है और निवेशकों ने शेयर नहीं खरीदा। फिर ऐसी स्थिति में कंपनी अपना IPO वापस ले सकती है। हालांकि, कितने प्रतिशत शेयर बिकने चाहिए, इसको लेकर अभी कोई नियम तय नहीं हुआ है।

ग्रे मार्केट क्या होता है और इसके क्या मायने हैं?
ग्रे मार्केट IPO में डील करने का अनाधिकारिक प्लेटफॉर्म है। ये गैर-कानूनी होने के बावजूद काफी पॉपुलर है। हालांकि, इसमें चुनिंदा लोग ही ट्रेडिंग करते हैं। इसमें आपसी भरोसे के साथ फोन पर ट्रेडिंग होती है। इसके लिए ऑपरेट करने वाले का पर्सनल कॉन्टैक्ट होना जरूरी है। ग्रे मार्केट में डील पूरा होने की गारंटी नहीं होती। डील एक्सचेंजों पर लिस्टिंग के दिन के लिए रिजर्व होते हैं। अहमदाबाद, मुंबई, दिल्ली, राजकोट IPO ग्रे मार्केट के बड़े सेंटर हैं। जयपुर, इंदौर, कोलकाता में भी ये कारोबार होता है।

14-16 जुलाई के दौरान ऑनलाइन फूड डिलीवरी कंपनी जोमैटो का IPO आया, जो 38 गुना से ज्यादा भरा। एक्सचेंज पर इसकी लिस्टिंग 116 रुपए पर हुई, जबकि इश्यू प्राइश 72-76 रुपए प्रति शेयर ही थी। यानी निवेशकों को प्रति शेयर 40 रुपए का मुनाफा हुआ। IPO को मिल रहे शानदार रिस्पॉन्स की बड़ी वजह देश में बढ़ रहे रिटेल निवेशकों की संख्या और निवेश से जुड़ी जानकारी है। अब निवेशकों को आने वाले दिनों में पेटीएम और LIC जैसे बड़े और धमाकेदार IPO का बेसब्री से इंतजार है।

IPO से जुड़ी शब्दावलियां…

ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (DRHP): जिन कंपनियों को पब्लिक इश्यू (IPO) से फंड जुटाना है, उनको मार्केट रेगुलेटर सेबी के पास आवेदन भरना होता है, जिसे DRHP करते हैं। इसमें कंपनी से जुड़ी हर जानकारी सेबी को देनी होती है। जैसे-

बिजनेस डिटेलकैपिटल स्ट्रक्चररिस्क फैक्टररिस्क स्ट्रैटजीप्रमोटर्स एंड मैनेजमेंटपिछला फाइनेंशियल डेटा

हर कंपनी को सेबी के सभी नियमों और शर्तों को मानना जरूरी होता है।

सब्सक्रिप्शन: IPO में कंपनियां रकम जुटाने के लिए तय प्राइस बैंड पर निश्चित शेयर जारी करती हैं, इनके मुकाबले जितने शेयर्स पर निवेशक बोली लगाते हैं, उसे ही सब्सक्रिप्शन कहते हैं। उदाहरण के तौर पर जोमैटो ने 71.92 करोड़ शेयर्स जारी किए, जबकि आखिरी दिन तक उसे 2,751.25 शेयरों के लिए बोली मिली। इसका मतलब IPO 38.25 गुना सब्सक्राइब हुआ।

लिस्टिंग: कंपनी का IPO जब बंद होता है, तो वह स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट होता है। यानी बाजार की टाइमिंग पर उस कंपनी के शेयर्स की खरीद-बिक्री की जा सकती है।

प्राइस बैंड: यदि किसी IPO के लिए प्राइस बैंड 90-100 रुपए रखा गया है और आपने 90 रुपए की बोली लगाई है, मगर कीमत 98 निकलती है, तो आपको एक भी शेयर नहीं मिलेगा। मतलब आपकी बिड कैंसिल हो गई। IPO खुलने से पहले कंपनी प्राइस बैंड तय करती है।

ग्रे मार्केट प्रीमियम: लिस्टिंग से पहले शेयर जिस कीमत पर ट्रेड होते हैं, उसे प्रीमियम कहते हैं। इससे अनुमानित लिस्टिंग कीमत का संकेत मिलता है।

सेबी IPO में आम निवेशकों की भागीदारी बढ़ाने पर क्या कर रही है?
हाल के सफल IPO में रिटेल निवेशकों की भागीदारी बढ़ी तो है, लेकिन यह अब भी टोटल सब्सक्रिप्शन के मुकाबले कम है। इसके लिए मार्केट रेगुलेटर सेबी बड़ा बदलाव करने के मूड में है। IPO में रिटेल निवेशकों की भागीदारी बढ़ाने के लिए सेबी मिनिमम एप्लीकेशन साइज (लॉट साइज) को घटाकर 7,500-8,000 रुपए करने का विचार कर रही है, जो अभी 15 हजार रुपए है।

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