किंगमेकर प्रशांत किशोर क्यों नहीं बन पा रहे हैं किंग
प्रशांत किशोर उर्फ पीके…ये नाम इन दिनों आपको काफी ज्यादा सुनाई दे रहा होगा…इन्हें अमित शाह के बाद राजनीति का दूसरा चाणक्य भी कहा जाने लगा है। प्रशांत किशोर चुनावी रणनीतिकार हैं। ये समय-समय पर लाइम लाइट में आ ही जाते हैं। पहले अपनी चुनावी रणनीति की वजह से औऱ अब जेडीयू से बर्खास्तगी के बाद नीतीश पर निशाना साधने की वजह से…पी.के चर्चा में हैं। कहा जा रहा है कि पी.के की बिहार राजनीति में रणनीतिकार से बतौर नेता एंट्री होने वाली है। लेकिन सवाल ये है कि ऐसा करके प्रशांत किशोर फ्लॉप शो की तरफ आगे बढ़ रहे हैं। ये सवाल आपको अटपटा जरुर लग रहा होगा…क्योंकि कहा जाता है कि प्रशांत किशोर जिस पार्टी के चुनावी रणनीतिकार बने हैं उस पार्टी को बंपर जीत मिली…लेकिन क्या पार्टियों की जीत में प्रशांत किशोर की मेहनत थी या फिर इत्तेफाक….
43 साल के प्रशान्त किशोर बेहतरीन चुनावी रणनीतिकार माने जाते हैं। प्रशांत किशोर की रणनीति में बीजेपी से लेकर कांग्रेस जैसे बड़ी पार्टियों ने भी चुनाव लड़ा। लेकिन सबसे पहले इनकी चुनावी रणनीति पर एक नजर डालते हैं….
- 2014 लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी की जीत की रणनीति बनाई
- 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी के लिए काम किया
- 2017 में पंजाब विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए रणनीति बनाई
- 2017 उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए रणनीति बनाई
- 2019 में आंध्रप्रदेश विधानसभा चुनावों में वाईएसआर के लिए रणनीति बनाई
- 2020 दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की चुनावी रणनीति बनाई
इसे देखने के बाद अब जरा इनकी रणनीति की बात करते हैं। 2011 में पीके ने अपने राजनीतिक रणनीतिज्ञ बनने के सफर की शुरुआत की। उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे औऱ लोकसभा चुनाव लड़ने वाले थे…बीजेपी ने मोदी को पीएम पद का चेहरा बनाया…गुजरात मॉडल का उदाहरण बीजेपी ने लोगों को दिया और देश में उस समय़ मोदी लहर की शुरुआत हो चुकी थी…पीके भांप चुके थे कि जनता कांग्रेस से उब चुकी हैं औऱ नरेंद्र मोदी नया चेहरा हैं। बीजेपी की जीत पक्की थी।
2015 में पीके ने जेडीयू को चुना…यहां भी गौर करिए उस समय नीतीश आरजेडी से अलग हुए थे…और बीजेपी से हाथ मिलाया था….क्योंकि उस समय बीजेपी के नरेंद्र मोदी चेहरा थे…लोगों ने नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट दिया….
2017 में पंजाब विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए रणनीति बनाई…पंजाब में कांग्रेस ने मुख्यमंत्री का चेहरा कैप्टन अमरिंदर सिंह लवली को बनाया…क्योंकि पंजाब में सिख आबादी ज्य़ादा है जाहिर सी बात है सिख चेहरा ही काम करेगा औऱ कैप्टन अमरिंदर सिंह लवली की पंजाब में अच्छी खासी पकड़ है। यहां भी पीके को पता था की कांग्रेस के जीतने के चांसेस ज्य़ादा हैं।
2017 में पीके ने यूपी में फिर से कांग्रेस के लिए रणनीति बनाई…उस समय सपा और कांग्रेस गठबंधन में थे….लेकिन कांग्रेस खास कमाल नहीं कर पाई…
इसके बाद 2019 में पीके ने वाईएसआर कांग्रेस के लिए काम किया…यहां सीएम पद के लिए एक युवा औऱ जोशीले जगनमोहन रेड्डी थे… बीजेपी और तेलुगू देशम पार्टी के बीच लोकसभा चुनाव से पहले अलगाव हो गया था। आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा भी नहीं मिला था…यही मुद्दा जगन मोहन रेड्डी ने भुनाया….क्योंकि तत्कालीन सरकार वादा पूरा नहीं कर पाई थी इसलिए पूरी उम्मीद थी की जनता उन्हें नकार देगी…तो जगन मोहन की जीत के पूरे चांसेस थे
वहीं हाल ही की बात करें तो 2020 में पीके ने आम आदमी पार्टी के लिए चुनावी रणनीति बनाई…दिल्ली में केजरीवाल बनाम कोई चेहरा नहीं था…कांग्रेस एक्टिव नहीं थी, सपा का पता नहीं था…थी तो बस बीजेपी जिसके पास सीएम को कोई चेहरा नहीं था….साफ था कि दिल्ली में केजरीवाल की वापसी हर हाल में संभव थी
आपको हमने प्रशांत किशोर का पूरा राजनीति रणणीनि का सफर दिखाया…अगर आपने गौर किया हो तो पीके ने वहां वहां दाव लगाया जहां पार्टी की जीत पक्की थी…तो क्या पी के की रणनीति इत्तेफाक से मौका थी….या फिर पीके ने उन जीतने वाले घोड़ों पर दांव लगाया जिनकी जीत पक्की थी….अगर वाकई पी के की रणनीति में दम था तो कांग्रेस के साथ सपा के आने पर भी क्यों गठबंधन को जीत नहीं दिला पाए…तमाम राज्यों की जनता की नब्ज भांपने वाले पीके यूपी में क्यों फेल हो गए…या फिर ये कहें कि पीके ने अभी तक जिन पार्टियों पर दांव लगाया उनके बारे में वो पूरी रिसर्च कर चुके थे की इतनी जीत पक्की है….लेकिन इस बार जेडीयू से बाहर होने के बाद पीके राजनीति में आने के पूरे संकेत दे चुके हैं…रणनीति तो महज एक मौका थी…तो क्या पीके खुद किंग बनने की चाह में फ्लॉप शो की ओर बढ़ रहे हैं…