नीतीश कुमार और लालू प्रसाद, दोनों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है बिहार उपचुनाव ?
पटना. बिहार विधानसभा की दो सीटों तारापुर और कुशेश्वरस्थान के लिए तीस अक्टूबर को होने वाले उपचुनाव (Bihar By Election) ने राजनीतिक सरगर्मी बेहद तेज कर दी है. चुनाव में हार जीत किसी की हो उसका सरकार की स्थिरता पर तुरंत कोई प्रभाव तो नहीं पड़ने वाला है लेकिन भविष्य की राजनीतिक पृष्ठभूमि तैयार होने में इसकी अह्म भूमिका होने वाली है. यही कारण है कि हर दल खास कर आरजेडी, कांग्रेस और एनडीए ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. कांग्रेस जहां आरजेडी (RJD) को अपना महत्व दर्शाना चाहती है वहीं आरजेडी चुनाव जीत कर सत्ता के समीकरण को अपने अनुकूल बनाने के लिए एक और प्रयास करना चाहती है, यही वजह है कि अपने चुनाव प्रचार में तेजस्वी (Tejahwi Yadav) ‘खेला होने’ की चर्चा कर रहे हैं तो एनडीए भी चुनाव में जीत हासिल कर जनता पर अपनी पकड़ बरकरार होने को बताना चाहती है.
कांग्रेस के लिए अस्तित्व की लड़ाई
कांग्रेस इस उपचुनाव के जरिए आरजेडी को यह संदेश देना चाह रही है कि उसे कोई हल्के में न ले. कांग्रेस अपने कार्यकर्ता को बताना चाह रही है कि पार्टी का वजूद बिहार में अभी भी है, सिर्फ संघर्ष करने की आवश्यकता है. पार्टी यह बताना चाह रही है कि वह आरजेडी की पिछलग्गू नहीं है. चुनाव जीतकर कांग्रेस महागठबंधन में अपनी पॉलिटिकल बारगेनिंग पावर को बढ़ाना चाहती है. कांग्रेस के तमाम स्थानीय नेता लालू प्रसाद समेत आरजेडी नेताओं के बयान पर करारा प्रहार कर रहे हैं, यही वजह है कि प्रदेश कांग्रेस प्रभारी भक्तचरण दास पर लालू प्रसाद के विवादास्पद बयान को लेकर मीरा कुमार जैसी कांग्रेस की वरिष्ठ नेता ने कहा कि लालू प्रसाद को अभी और इलाज की जरूरत है.
तेजस्वी की अग्निपरीक्षा
बहुत हद तक उपचुनाव में आरजेडी की ओर से प्रचार का जिम्मा तेजस्वी यादव खुद उठाये हुए हैं. वो ताबड़तोड़ चुनावी सभा संबोधित कर रहे हैं, रोड शो कर रहे हैं और जनसंपर्क अभियान भी चला रहे हैं. हालांकि लालू प्रसाद भी आखिरी समय में चुनाव प्रचार के दंगल में कूद पड़े हैं, लेकिन आरजेडी का चेहरा तो अब तेजस्वी ही हैं. चेहरे की चमक बढ़ती है या फीकी होती है, इसका निर्धारण बहुत हद तक हो जाएगा. अगर चुनाव में आरजेडी की जीत होती है तो न केवल पार्टी में बल्कि अपने परिवार में जारी राजनीतिक उत्तराधिकार की लड़ाई में भी तेजस्वी यादव का पलड़ा भारी हो जाएगा.
एनडीए पर भी पड़ेगा असर
243 सदस्यीय विधानसभा में अभी विपक्ष में 115 विधायक हैं तो एनडीए में 126 विधायक हैं जो साधारण बहुमत से महज चार अधिक है. अगर परिणाम विपक्ष के पक्ष में जाता है तो उसे सत्तारूढ़ गठबंधन पर राजनीतिक दबाव बढ़ाने का एक और मौका मिल जाएगा, साथ ही एनडीए के भीतर भी प्रेशर पॉलिटिक्स शुरू हो सकती है. चार-चार विधायकों वाली जीतन राम मांझी की ‘हम’ और मुकेश सहनी की ‘वीआईपी’ का राजनीतिक वजन बढ़ना लाजिमी हो जाएगा. इनमें से एक ने भी सरकार से समर्थन वापस ले लिया तो राजनीतिक तिकड़मबाजी प्रारंभ हो जाएगी. अगर परिणाम एनडीए के पक्ष में रहा तो सरकार की स्थिरता तो बढ़ेगी ही विपक्ष को भी नये सिरे से अपनी रणनीति तैयार करनी होगी.
तीस अक्टूबर के बाद बिहार की राजनीतिे किस ओर करवट लेगी उस पर राजनीतिक प्रेक्षकों की पैनी नजर रहेगी, साथ ही बिहार की राजनीति में युवा नेताओं का भविष्य भी कुछ हद तक साफ हो जाएगा. तेजस्वी के साथ-साथ कन्हैया और चिराग जैसे युवा नेताओं की राजनीतिक जमीन की भी परख हो जाएगी. कन्हैया कांग्रेस के लिए संजीवनी बूटी साबित होगें या नहीं, इसकी भी झलक मिल जाएगी.