किसान क्यों चाहते हैं MSP पर लिखित गारंटी? जानिए क्या है विरोध का बड़ा कारण…

नई दिल्ली : केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन नए कृषि कानूनों (Farm Bill) के खिलाफ किसानों का आंदोलन (Farmer Protest) आज छठे दिन भी जारी है। वही केंद्र सरकार ने किसानों से बातचीत करने वाली किसानो की शर्त को मान ली है लेकिन अभी भी किसानों को संशय लगा हुआ है।

दरअसल, किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum support price) और मंडी के मुद्दे सरकार पर विश्वास नहीं है इसलिए किसान इन मसलों पर सरकार की कही हुई बात को लिखित में चाहते हैं। उन्हें सरकार से उनके कहे हुए शब्दों को लेकर गारंटी चाहिए।

किसानों को डर है कि सरकार नए कानून की आड़ में MSP को धीरे-धीरे खत्म कर देगी। वहीँ, किसान संगठनों का यह भी कहना है कि केंद्र सरकार की ओर से लागू हुए ये तीन नए कृषि कानून जब असर दिखाने लगेंगे तो मंडियों को ताकत देने वाला एपीएमसी (APMC) एक्ट कमजोर पड़ जाएगा और जब ऐसा होने लगेगा तो एमएसपी की गारंटी भी खत्म हो जाएगी।

चलिए आपको बताते है की क्या होता है MSP…

MSP वह न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी गारंटेड मूल्य है जो किसानों को उनकी फसल पर मिलता है। भले ही बाजार में उस फसल की कीमतें कम हो। इसके पीछे तर्क यह है कि बाजार में फसलों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव का किसानों पर असर न पड़े। उन्हें न्यूनतम कीमत मिलती रहे।

सरकार हर फसल सीजन से पहले CSP यानी कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइजेस की सिफारिश पर एमएसपी तय करती है। यदि किसी फसल की बम्पर पैदावार हुई है तो उसकी बाजार में कीमतें कम होती है, तब एमएसपी उनके लिए फिक्स एश्योर्ड प्राइज का काम करती है। यह एक तरह से कीमतों में गिरने पर किसानों को बचाने वाली बीमा पॉलिसी की तरह काम करती है।

इसकी जरूरत क्यों है और यह कब लागू हुई?

1950 और 1960 के दशक में किसान परेशान थे। यदि किसी फसल का बम्पर उत्पादन होता था, तो उन्हें उसकी अच्छी कीमतें नहीं मिल पाती थी। इस वजह से किसान आंदोलन करने लगे थे। लागत तक नहीं निकल पाती थी। ऐसे में फूड मैनेजमेंट एक बड़ा संकट बन गया था। सरकार का कंट्रोल नहीं था।

1964 में एलके झा के नेतृत्व में फूड-ग्रेन्स प्राइज कमेटी बनाई गई थी। झा कमेटी के सुझावों पर ही 1965 में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की स्थापना हुई और एग्रीकल्चरल प्राइजेस कमीशन (एपीसी) बना।

इन दोनों संस्थाओं का काम था देश में खाद्य सुरक्षा का प्रशासन करने में मदद करना। एफसीआई वह एजेंसी है जो एमएसपी पर अनाज खरीदती है। उसे अपने गोदामों में स्टोर करती है। पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम (पीडीएस) के जरिये जनता तक अनाज को रियायती दरों पर पहुंचाती है।

पीडीएस के तहत देशभर में करीब पांच लाख उचित मूल्य दुकानें हैं जहां से लोगों को रियायती दरों पर अनाज बांटा जाता है। एपीसी का नाम 1985 में बदलकर सीएपीसी किया गया। यह कृषि से जुड़ी वस्तुओं की कीमतों को तय करने की नीति बनाने में सरकार की मदद करती है।

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