ब्राह्मणो- जाटो ने क्यों नहीं दिया फिर सपा का साथ, ब्राह्मण- जाट अखिलेश को क्यों नहीं अपनाते हैं
उत्तर प्रदेश में चुनाव से पहले ब्राह्मण vs ठाकुर एक बड़ा मुद्दा था लेकिन चुनाव परिणाम आते ही ये मुद्दा कहीं गायब सा हो गया है।
ब्राह्मणो- जाटो ने क्यों नहीं दिया फिर सपा का साथ
ब्राह्मण- जाट अखिलेश को क्यों नहीं अपनाते हैं
उत्तर प्रदेश में चुनाव से पहले ब्राह्मण vs ठाकुर एक बड़ा मुद्दा था लेकिन चुनाव परिणाम आते ही ये मुद्दा कहीं गायब सा हो गया है। कोई आवाज़ नहीं उठ रही अब ,जो ये कहे की ब्राह्मणो पर अत्याचार हुए , अब कोई नहीं बोलता दीखता जो कहे की ब्राह्मण अब बीजेपी के साथ नहीं या ये सरकार ब्राह्मण विरोधी सरकार है और ब्राह्मण विरोधी चेहरा यूपी का मुख्यमंत्री नहीं हो सकता। इस आरोप को खत्म करने के लिए बीजेपी ने इस बार सबसे अधिक ब्राह्मण कैंडिडेट उतारे और दूसरे नंबर पर राजपूत कैंडिडेट रहे. और अब बीजेपी को 255 सीटें मिलने के बाद ठाकुर योगी को बधाई देने वाले ब्राह्मण चेहरों की लाइन लग गयी है। आखिर ये सब हुआ कैसे आपको याद होगा कैसे चुनाव की तारीखों के एलान से पहले ही तमाम पार्टियों ने ब्राह्मण वोट साधने के लिए ब्राह्मण सम्मलेन कराये थे। बीजेपी , सपा और बसपा यूपी के 7 % ब्राह्मण वोट को साधने में जुटी थी। अखिलेश यादव ने तो परशुराम की प्रतिमा का अनावरण भी किया था फरसा हाथ में लिया था लेकिन ब्राह्मण को वो तस्वीर जमी नहीं इसकी वजह भी साफ़ है यूपी के राजनितिक इतिहास में ब्राह्मण ने कभी सपा का साथ नहीं दिया है।
यूपी की सत्ता पर काबिज बीजेपी ने ठाकुर vs ब्राह्मण में भले ही ब्राह्मण का साथ नहीं दिया था लेकिन चुनाव में टिकट जम कर दिया। बीजेपी ने 68, तो बीएसपी ने 65 और एसपी ने 40 ब्राह्मण उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा. और नए विधायकों में एक बार फिर ब्राह्मणों का जलवा सबसे ज्यादा नजर आ रहा है. संख्याबल की बात करें तो 68 में से 46 ब्राह्मण विधायक भाजपा गठबंधन से जीते हैं, जबकि 40 में से पांच सपा के और एक कांग्रेस से. कुलमिलकर 52 ब्राह्मण विधायक विधानसभा पहुंचे हैं. यानी अखिलेश ने जिन 40 ब्राह्मण चेहरों पर दांव लगाया था उनमें से केवल पांच ही जीते हैं इतना ही नहीं अगर वोट का कुल प्रतिशत देखे तो बीजेपी को 2017 में 83 % और 2022 में ये बढ़कर 89 % हो गया वहीँ सपा को 2017 में 7 % और 2022 में घटकर 6 % रह गया
, जिस मायावती को कभी ब्राह्मण ने मुख्यमंत्री बनाया था वो अब बसपा के साथ भी गिरकर शून्य हो गया कांग्रेस को 2017 और 2022 में 1 % ही रहा है।
अगड़ी जाति के उम्मीदवारों के लिए टिकट की जहां तक बात है तो सभी पार्टियों ने इस वर्ग का खयाल रखा और अपने उम्मीदवार बनाए. यूपी चुनाव में सबसे अधिक 177 ब्राह्मणों को तो 122 राजपूत/ठाकुर उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा गया. बनिया या वैश्य को 52 टिकट बंटे तो भूमिहार उम्मीदवारों के खाते में 11 सीटें गईं.लेकिन सवाल ये है की ब्राह्मण वोटर को रिझाने के बाद भी अखिलेश को ब्राह्मण वोटर ने नहीं स्वीकारा है मतलब तमाम हिंदुत्व वाले पैतरे यहाँ काम कर गए या फिर जाति अनबन के आधार पर यादव और ब्राह्मण का समीकरण बनता हुआ नहीं दीखता है।
कहा जाता है की यूपी में ब्राह्मण वोट जिधर जाता है वहां सरकार बन जाती है और इस बार भी यही दिखा ,
अब बात करते हैं जाटो की
सीएसडीएस की ओर से दिए गए आंकड़ों की मानें तो पश्चिम यूपी में जयंत चौधरी की अगुआई वाली राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) से गठबंधन का सपा को अधिक फायदा नहीं मिला। जाट वोटर्स को ध्यान में रखकर किए गए इस गठबंधन के बावजूद 2017 के मुकाबले साइकिल की सवारी करने वाले जाटों की संख्या कम हो गई। यूपी की कुल आबादी में 2 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले जाट वोटर्स की पहले और दूसरे फेज में खूब चर्चा हुई। सपा को 2017 में जहां 57 फीसदी जाट वोट मिले तो इस बार महज 33 फीसदी वोट मिले हैं। वहीं भाजपा को 2017 में 38 जाटों का साथ मिला था तो इस बार 54 फीसदी जाटों ने कमल के निशान को चुना। यही वजह है कि तमाम दावों के बावजूद भाजपा पश्चिमी यूपी में एक बार फिर सबसे आगे निकल गई। किसान आंदोलन के आधार पर जाट वोट का आंकलन किया जा रहा था लेकिन अखिलेश यादव ये भूल गए की जाट हरियाणा में जिस बीजेपी के खिलाफ खुलकर हिंसा पर उतर आये थे आज बीजेपी के साथ ही सरकार चला रहे हैं
जानें जाट विधायक किसके पास कितने?
जाट एक बार फिर बड़ी तादाद में जीत कर आए हैं. कुल 15 जाट विधायक सदन में पहुंचे हैं. इनमें 8 बीजेपी से और 7 समाजवादी पार्टी गठबंधन से विधायक बने हैं.
अखिलेश यादव को सबसे ज्यादा यादव और अल्पसंख्यक ने वोट किया जिससे सपा का प्रतिशत ऐतहासिक रिकॉर्ड में आ गया। जाहिर है अखिलेश यादव को इन तमाम आंकलन और वोट प्रतिशत को ध्यान में रखकर 2024 की रणनीति पर काम करना होगा।