सीएए को लेकर पाकिस्तान और अमेरिका ने क्यों उठ रही है आवाज?
सीएए से जुड़ी पूरी जानकारी विस्तार से पढ़िए
भले ही सीएए को लेकर देश के गृहमंत्री अमित शाह ने कह दिया कि इस बिल को केंद्र सरकार किसी भी कीमत पर वापस नहीं लेगी लेकिन विपक्ष भी इसका विरोध करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा।
हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी सीएए का विरोध करते हुए कहा कि सरकार अपने बच्चों को तो रोज़गार और घर दे नहीं पा रही, तो ऐसे में पाकिस्तान से आए लोगों को कहां से रोज़गार देगी। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि सरकार के पास जो पैसा है, वह हमारा टैक्स का पैसा है, जिसे पाकिस्तान के लोगों पर हम कतई खर्च करने नहीं देंगे।
इन बयानों का परिणाम ये रहा कि पाकिस्तान शरणार्थियों ने केजरीवाल के घर खूब हंगामा किया। लेकिन देखने वाली बात ये भी है कि दुनिया के दूसरे देश इस बिल के बारे में क्या सोचते हैं?
पाकिस्तान में मची हलचल
पाकिस्तान में इस बिल को लेकर काफी हल्ला हुआ है। वहां से बयान आया है कि सीएए धर्म के आधार पर लोगों को बांट रहा है और अल्पसंख्यकों को लेकर हमें बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। लेकिन भारत के मुस्लिमों को डरने की ज़रूरत नहीं है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज जहरा ने कहा कि इस कानून के माध्यम से भारत खुद को अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षित देश बता रहा है। मुमताज ने सीएए की आलोचना करते हुए कहा कि इस कानून के खिलाफ पाकिस्तान की संसद में 16 दिसंबर 2019 को भी एक प्रस्ताव भी पारित किया गया था।
अमेरिका ने भी जताई चिंता
सीएए के नोटिफिकेशन को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा कि इस कानून को देश में लागू कैसे किया जाएगा, इसकी हम करीब से निगरानी कर रहे हैं।
लोकसभा चुनाव से पहले सीएए को लेकर देश विदेश में खूब हल्ला तो हो रहा है लेकिन लोग सीएए को लेकर काफी कन्फ्यूज भी है क्योंकि हर नेता अपने हिसाब से सीएए को परिभाषित कर रहा है।
सीएए क्या है?
सीएए यानि कि नागरिकता संशोधन बिल, इसमें 31 दिसंबर 2014 से पहले रह रहे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से प्आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी धर्म से जुड़े शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी।
सबसे पहले इसे साल 2016 में लोकसभा में पेश किया गया था, जो बाद में राज्यसभा में अटक गया। इसके बाद दोबारा दिसंबर 2019 में दोनों सदनों में पास हो गया और राष्ट्रपति ने भी मंजूरी दे दी। दिलचस्प बात ये है कि 10 दिसंबर को लोकसभा में और 11 दिसंबर को राज्यसभा में पास होने के बाद 12 दिसंबर को राष्ट्रपति से भी मंजूरी मिल गई।
उस वक्त देशभर में इस कानून को लेकर व्यापक स्तर पर विरोध हुआ तो केंद्र सरकार ने इसे लागू नहीं किया और 11 मार्च 2024 को ये बिल नोटिफाई कर दिया गया।
विरोध की वजह
सबसे बड़ा कारण है कि इसे एंटी मुस्लिम माना जा रहा है क्योंकि इस कानून के तहत गैर मुसलमानों के लिए भारत में रहने की अवधि 5 साल से अधिक रखी गई है। बाकी विदेशियों के लिए यह अवधि 11 साल से अधिक है।
पूर्वोतर राज्यों खासतौर से बांग्लादेश से सटे राज्यों में इसका विरोध अधिक हो रहा है क्योंकि उनका मानना है कि भारी तादाद में बांग्लादेशी हिंदुओं के आने से उनके अधिकारों का हनन होगा।
भारतीय नागरिकों पर असर
इस कानून का भारतीय नागरिकों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। संविधान के तहत भारतीयों के सभी अधिकार सुरक्षित है।