यूपी चुनाव से पहले अखिलेश यादव और SP को क्यों हैं ‘नेताजी’ की जरूरत? पढ़ें ये खबर
लखनऊ. समाजवादी पार्टी के मुख्यालय में यहां लंबी कतार में खड़े पार्टी कार्यकर्ताओं के चेहरे खुशी से उस वक्त चमक उठे जब पार्टी संरक्षक मुलायम सिंह यादव अपनी कार से उतरे. लाल समाजवादी टोपी सिर पर धारण किए और पारम्परिक धोती-कुर्ता पहने मुलायम ने इंतजार में खड़े कार्यकर्ताओं का हाथ हिलाकर अभिवादन किया. पूर्व मुख्यमंत्री एवं देश के पूर्व रक्षा मंत्री का नियमित मुख्यालय आना और कार्यकर्ताओं से बात करना यह साबित करने के लिए काफी है कि मुलायम चुनावी समां में बंधने को तैयार उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हो चुके हैं. वह न केवल आगामी विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं को तैयार कर रहे हैं, बल्कि पुत्र अखिलेश यादव और भाई शिवपाल यादव के बीच बढ़ती खाई को पाटने का प्रयास कर रहे हैं. सपा अगले साल एक बार फिर सत्ता में वापसी कर सके, इसके लिए पार्टी के संरक्षक बुजुर्ग नेता की सक्रियता इन्हीं कारणों से दिखने लगी है.
उत्तर प्रदेश की राजनीति में ‘नेताजी’ के नाम से मशहूर मुलायम काफी समय तक अस्वस्थ रहे, बावजूद इसके वे इन दिनों सपा मुख्यालय में काफी समय दे रहे हैं. खासकर शिवपाल तथा अखिलेश के बीच दूरी मिटाने के प्रयास पर उनका जोर ज्यादा है. इसके अलावा युवाओं, महिला मतदाताओं का रुझान पार्टी की ओर बढ़े, इस पर भी उनका तवज्जो है. उन्होंने कहा है कि यदि आवश्यकता हुई तो वह खराब स्वास्थ्य एवं उम्र संबंधी मसलों के बावजूद पार्टी के लिए यूपी चुनाव प्रचार भी करेंगे. सपा के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि मुलायम इन दिनों जितना सामने सक्रिय नजर आ रहे हैं उतने ही पर्दे के पीछे भी सक्रिय हैं.
शानदार रहा है मुलायम का सफर
पार्टी नेताओं द्वारा ‘धरती पुत्र’ कहे जाने वाले मुलायम सिंह अपनी नौजवानी के दिनों में कुश्ती लड़ा करते थे. बाद में वह शिक्षक बन गए. पहली बार उन्होंने 1967 में जसवंतनगर विधानसभा सीट से चुनकर आए थे, जिसका प्रतिनिधित्व अब उनके भाई शिवपाल कर रहे हैं. इस सीट से मुलायम सिंह ने कई बार चुनावी बाजी जीती है. जनता पार्टी के शासनकाल में वे प्रदेश के सहकारिता मंत्री भी बने थे. पार्टी सूत्रों ने कहा कि जब मुलायम अपने राजनीतिक उठान पर थे, तब कई कांग्रेसी नेता उन्हें ‘कल का छोकरा’ कहा करते थे. लेकिन उनमें से कोई नहीं जानता था कि यही ‘छोकरा’ एक दिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र वाले देश का रक्षा मंत्री बनेगा.
खतरे को भांप चुके हैं मुलायम
यह मायने नहीं रखता कि पार्टी कार्यकर्ता या नेता क्या कह रहे हैं, लेकिन पर्यवेक्षकों की मानें तो मुलायम ने खतरे को भांप लिया है. इसीलिए वह आगामी चुनाव से पहले अखिलेश यादव और अपने भाई शिवपाल के बीच का वैर समाप्त कराना चाहते हैं. विशेषज्ञों की मानें तो इससे समाजवादी पार्टी क्लिन स्विप नहीं कर पाएगी, लेकिन इसका असर पार्टी के प्रदर्शन पर जरूर दिखेगा. राजनीतिक कमेंटेटर रतन मणि लाल ने कहा, ‘उम्र के इस पड़ाव पर मुलायम की सबसे बड़ी उपलब्धि अपने बेटे अखिलेश और भाई शिवपाल को एक मंच पर एक साथ खड़ा करना होगा.’
कोशिश को अंजाम देने में जुटे मुलायम
उन्होंने कहा कि नेताजी की पाठशाला अब अपने घर की ओर चली है, क्योंकि वह जानते हैं कि शिवपाल यादव भी चुनाव में बेहतर परिणाम हासिल नहीं कर पा रहे हैं और अखिलेश भी वांछित सफलता हासिल करने में फिसड्डी साबित हुए हैं. ऐसे में मुलायम सिंह का जोर दोनों को एक साथ करके सपा में नई जान फूंकने का है. यूपी की सियासत को जाननेवाले इस बात पर खासा ध्यान लगाए बैठे हैं कि मुलायम की यह आजमाइश कितनी कारगर साबित होती है. खासकर बीजेपी के खिलाफ समाजवादी पार्टी को फिर से मुकाबले में लाने और चुनावी जीत दिलाने में उनके योगदान पर देशभर की निगाहें टिकी हैं.