दिल्ली का मालिक कौन सरकार या राज्यपाल? तय करेगी सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच
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दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच अफसरों की नियुक्ति, स्थानांतरण और तैनाती के नियंत्रण को लेकर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच दशहरा अवकाश के बाद सुनवाई करेगी। दिल्ली सरकार ने मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन के समक्ष इस मुद्दे को उठाया और कहा कि इस पर जल्द सुनवाई की जाए, क्योंकि इससे दिल्ली सरकार का कामकाज प्रभावित हो रहा है।
फरवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने इस मामले को तीन जजों की बेंच के समक्ष भेज दिया था, क्योंकि उनका फैसला विभाजित आया था। एक जज ने कहा था कि सेवाओं का नियंत्रण दिल्ली सरकार के पास है, जबकि दूसरे जज ने कहा था कि सेवाएं दिल्ली सरकार के अधिकार में नहीं हैं।
दिल्ली सरकार के वकील ने मुख्य न्यायाधीश से कहा कि यह मामला संविधान की दूसरी अनुसूची की एंट्री 41 से संबंधित है। उन्होंने कहा कि संविधान पीठ के जुलाई 2018 के फैसले में केंद्र सरकार के पास पुलिस, भूमि और कानून व्यवस्था के तीन मामले रखे गए थे। लेकिन पूरा प्रशासनिक नियंत्रण केंद्र सरकार के पास है, ऐसे में दिल्ली सरकार को प्रशासन चलाने और अपनी नीतियों को लागू करने में दिक्कत आ रही है।
मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि यह तो पांच जजों की पीठ वाला मामला है। इसपर वकील ने कहा कि नहीं यह तीन जजों की पीठ का मसला है। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ठीक है इसे हम तीन जजों के समक्ष दशहरा अवकाश के बाद सूचीबद्ध करेंगे।
इस मामले में विभाजित फैसला तत्कालीन जज जस्टिस एके सीकरी और अशोक भूषण की पीठ ने दिया था। जस्टिस सीकरी ने कहा था कि संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के अफसरों का नियंत्रण केंद्र सरकार के पास रहेगा, अन्य अधिकारी दिल्ली सरकार के नियंत्रण में रहेंगे। जस्टिस भूषण ने कहा था कि सेवाएं दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र से पूरी तरह से बाहर हैं।
पांच जजों की बेंच ने यह तय किया था कि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं हो सकता, लेकिन उसने उपराज्यपाल की शक्तियों को कम कर दिया था और कहा था कि उन्हें स्वतंत्र रूप से फैसले लेने की शक्ति नहीं है। उपराज्यपाल को निर्वाचित सरकार की सलाह और मदद से फैसले लेने होंगे।
गौरतलब है कि कुछ हफ्तों पहले केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र संशोधन कानून, 2021 पारित किया था, जिसमें दिल्ली की निर्वाचित सरकार से ज्यादा उपराज्यपाल को शक्तियां दी गईं हैं। इस कानून को दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है।