क्या देश में कोरोना खत्म हो गया? तीसरी लहर का क्या होगा?

WHO की चीफ साइंटिस्ट ने कहा- भारत में कोरोना एंडेमिक स्टेज में;

कोरोना भारत में ऐसे स्टेज में पहुंच सकता है जहां से ये पेंडेमिक यानी महामारी की जगह एंडेमिक यानी स्थानिक बीमारी बन जाए। ये बात वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) की चीफ साइंटिस्ट डॉक्टर सौम्या स्वामीनाथन ने कही है। यानी अब इसके फैलने की दर पहले के मुकाबले काफी धीमी या कम हो चुकी है।

किसी बीमारी के एंडेमिक होने का क्या मतलब होता है? कोरोना के एंडेमिक होने का भारत और दुनिया के लिए क्या मायने हैं? क्या अब नए केस आएंगे, पर महामारी जैसी स्थिति नहीं बनेगी? कई एक्सपर्ट तीसरी लहर का जो डर बता रहे थे, उसका क्या होगा? अगर कोई खतरनाक वैरिएंट सामने आया तो क्या होगा? इन सभी सवालों पर हमने महामारी विशेषज्ञ डॉ. चंद्राकांत लहारिया से बात की। आइए जानते हैं…

किसी बीमारी के एंडेमिक होने का क्या मतलब होता है?

जब भी कोई नई बीमारी आती है और वो किसी छोटे से क्षेत्र में होती है तो उसे आउटब्रेक कहते हैं। जैसे- कोविड-19 वुहान में सबसे पहले आया तो वो आउटब्रेक की स्टेज थी। जनवरी 2020 से जब थाइलैंड और बाकी देशों में फैलने लगा तो उस वक्त कोरोना एपिडेमिक स्टेज में था। 11 मार्च 2020 के पहले तक कोरोना एपिडेमिक स्टेज में था। 11 मार्च को WHO ने इसे पेंडेमिक घोषित किया। यानी, ये वैश्विक महामारी की स्टेज में आ गया।

ये स्टेज बीमारी की गंभीरता को नहीं दिखाते हैं। बीमारी की स्टेज कितनी इलाके में फैली है, उसे बताते हैं। पॉपुलेशन में नेचुरल इन्फेक्शन और वैक्सीनेशन के जरिए जब हर्ड इम्यूनिटी आती है तो बीमारी का प्रभाव बहुत कम हो जाएगा और वो एंडेमिक स्टेज में आ जाती है। इस स्थिति में वायरस का सर्कुलेशन कंट्रोल में आ जाता है, लेकिन बीमारी खत्म नहीं होती है। ज्यादातर बीमारियां एंडेमिक स्टेज में चली जाती हैं। जैसे- मलेरिया, डेंगू, मीजल्स जैसी बीमारियां भारत में एंडेमिक स्टेज में हैं।

अमेरिका के सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के मुताबिक कोई बीमारी एंडेमिक स्टेज में तब मानी जाती है, जब उसकी उपस्थिति स्थाई और प्रसार सामान्य हो जाता है। ऐसे में महामारी का असर कम लोगों या किसी खास इलाके तक सीमित हो जाता है। इसके साथ ही वायरस भी कमजोर हो चुका होता है। इसके अलावा लोग भी उस बीमारी के साथ जीना सीख जाते हैं।

2020 में साइंस जर्नल में छपे एक लेख के मुताबिक किसी महामारी के एंडेमिक होने पर उससे बचाव की जिम्मेदारी सरकारों से हटकर आम लोगों पर आ जाती है। हालांकि बीमारी के एंडेमिक स्टेज में नंबर ऑफ केस की संख्या निश्चित नहीं की जा सकती है। अलग-अलग इलाकों में वहां की आबादी के हिसाब से एंडेमिक स्टेज में आने वाले केस की संख्या अलग-अलग हो सकती है। यानी, अगर 20 करोड़ की आबादी वाले किसी देश में रोज आने वाले केस 200 होने पर वहां बीमारी की एंडेमिक स्टेज मानी जाती है तो वो देश जिसकी आबादी 2 करोड़ है वहां ये संख्या और कम होगी।

तो क्या कोरोना सच में एंडेमिक स्टेज में आ चुका है?

अभी दुनिया महामारी की स्थिति में है। ऐसे में ये कहना कि भारत में कोरोना एंडेमिक स्टेज में है, जल्दबाजी होगी। जब तक विश्व महामारी के दौर में हैं तब तक सभी देशों को इसका खतरा है। जब WHO दुनिया से महामारी खत्म होने का ऐलान करेगा, तभी हमें ये मानना चाहिए की ये बीमारी एंडेमिक स्टेज में आ गई है।

एंडेमिक स्टेज आने पर क्या होगा?

एक समय आएगा जब ज्यादातर पॉपुलेशन को नेचुरल इन्फेक्शन हो जाएगा या वैक्सीन लग चुकी होगी। तो उसके बाद भी कुछ केस आते रहेंगे। एंडेमिक स्टेज आने के बाद बाकी अन्य बीमारियों की तरह इसके भी केस आते रहेंगे, लेकिन गंभीरता कम हो जाएगी। कम्युनिटी में वायरस सर्कुलेट होता रहेगा, लेकिन महामारी की स्थिति नहीं बनेगी।

तो क्या ये आम सर्दी-जुकाम जैसा हो जाएगा?

अभी ये कहना जल्दबाजी होगी। इसी साल अगस्त में साइंस मैग्जीन में छपी एक स्टडी में तीन बातें कही गई हैं।

पहली बात तो ये कि इस वायरस ने सभी को चौंका दिया है। इसके म्युटेशन ज्यादा हो रहे हैं। ये तेजी से ट्रांसमिट हो रहा है, लेकिन अभी भी इसकी ट्रांसमिसबिलिटी क्षमता मीजल्स जैसे वायरस से एक तिहाई है। ऐसे में इसके नए वैरिएंट और ट्रांसमिसबिल हो सकते हैं।

दूसरी बात ये कि जिस तरह के पैटर्न ये वायरस दिखा रहा है उससे आशंका है कि दस साल बाद ये पूरी तरह से नया वायरस बन चुका हो।

तीसरी बात ये हो सकती है कि आने वाले समय में वैक्सीन के दो वैरिएंट की जरूरत भी पड़ सकती है। ऐसे में ये कहना जल्दबाजी होगी कि आने वाले कुछ सालों में कोरोना का वायरस आम सर्दी से ज्यादा कुछ नहीं रह जाएगा। जैसे कई दूसरे कोरोना वायरस इस वक्त लोगों के बीच हैं, लेकिन वो गंभीर बीमारी का कारण नहीं बनते हैं।

एंडेमिक स्टेज की बात हो रही है तो क्या हर्ड इम्यूनिटी आने वाली है?

अभी ऐसी स्टेज नहीं। जो वैक्सीन लगाई जा रही है वो वायरस को जड़ से खत्म नहीं करती हैं। सिर्फ गंभीर बीमारी से बचाती है। वैक्सीन इन्फेक्शन को कम नहीं करती। वैक्सीनेट लोगों को बस गंभीर बीमारी नहीं होगी। वैक्सीनेशन होने का मतलब है कि अगर बीमारी फिर से फैलती है तो ज्यादातर लोगों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

हर्ड इम्यूनिटी तब आएगी जब कम से कम 85% लोगों में इम्यूनिटी आ चुकी होगी। देश में टोटल वयस्क आबादी 60% है। ऐसे में अगर देश की पूरी वयस्क आबादी को भी वैक्सीनेट कर लिया गया तो भी हर्ड इम्यूनिटी नहीं बनेगी। वैसे भी वैक्सीन की एफिकेसी 80% है। ऐसे में हर्ड इम्यूनिटी आना बहुत मुश्किल है। ऐसे में कोरोना वायरस के खिलाफ हम हर्ड इम्यूनिटी के बारे में नहीं सोच सकते हैं। अभी दुनिया में महामारी जारी है। ऐसे में भारत में भी आने वाले समय में तीसरी लहर आ सकती है। ये जरूर है कि जितने ज्यादा लोगों को नेचुरल इन्फेक्शन और वैक्सीनेशन होगा, इसकी गंभीरता उतनी कम होगी।

भारत और दुनिया के लिए इसके क्या मायने हैं?

अब तक इंसानों को संक्रमित करने वाले 7 कोरोना वायरस सामने आ चुके हैं। इनमें से तीन SARS, MERS और मौजूदा वायरस SARS-CoV-2 ही गंभीर रहे हैं। ये तीनों न सिर्फ संक्रमित व्यक्ति को गंभीर रूप से बीमार करते हैं बल्कि इससे संक्रमित की मौत भी हो सकती है। SARS में मृत्युदर 10% थी तो MERS में मृत्युदर 35% के आसपास थी। वहीं, मौजूदा वायरस SARS-CoV-2 में मृत्यु दर 2% के करीब है।

इन तीन में से इस वक्त केवल SARS-CoV-2 से ही दुनियाभर के लोग प्रभावित हैं। आने वाले कुछ साल तक असर बना रह सकता है। वहीं, चीन से दुनिया में फैला SARS और सउदी अरब से फैला MERS अब लोकली कंटेंड हो चुके हैं। SARS का आखिरी केस 2003 में सामने आया था। वहीं, MERS के केस अभी भी आते रहते हैं।

क्या एंडेमिक स्टेज आने के बाद मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत नहीं रहेगी?

अभी ये कहना बहुत जल्दबाजी होगी। एंडेमिक स्टेज आने के बाद भी गंभीर बीमारी से रिकवर हुए लोगों, बुजुर्गों आदि को इन नियमों का पालन करने की जरूरत होगी।

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