Sanjeev Bhatt की रिहाई किसकी चिंता ,यह अफसर बनेगा नरेंद्र मोदी के लिए बड़ी परेशानी!
Sanjeev भट्ट का नाम भारतीय राजनीति में फिर से गूंज रहा है, और यह गूंज नरेंद्र मोदी के लिए बड़ी परेशानी साबित हो सकती है।
Sanjeev भट्ट का नाम भारतीय राजनीति में फिर से गूंज रहा है, और यह गूंज नरेंद्र मोदी के लिए बड़ी परेशानी साबित हो सकती है। एक समय गुजरात कैडर के कद्दावर आईपीएस अधिकारी रहे संजय भट्ट को उनकी हालिया रिहाई के बाद देशभर में एक बार फिर चर्चा का केंद्र बना दिया है।
1990 के हिरासत में मौत के मामले में आजीवन कारावास झेल रहे भट्ट ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका दायर की। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। यह वही संजय भट्ट हैं, जिन्होंने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधे आरोप लगाए थे। अब उनकी रिहाई एक बार फिर राजनीतिक बहस का विषय बन गई है और विपक्ष इसे मोदी सरकार के खिलाफ हथियार बनाने की तैयारी में है।
1990 का हिरासत मौत मामला: एक पुराने जख्म का फिर से खुलना
Sanjeev भट्ट 1990 में जामनगर में सहायक पुलिस अधीक्षक (ASP) थे। उस समय “भारत बंद” के दौरान हुए दंगों में 133 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। इनमें से एक, प्रभुदास वैष्णानी, को हिरासत में प्रताड़ना झेलनी पड़ी और उनकी मौत हो गई।
• इस घटना के लिए भट्ट और अन्य पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया गया।
• 2019 में जामनगर की अदालत ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी, जिसे 2024 में गुजरात हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा।
भट्ट ने इस सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की, और उनकी रिहाई ने इस पुराने मामले को फिर से सुर्खियों में ला दिया।
2002 के गुजरात दंगे: संजय भट्ट बनाम नरेंद्र मोदी
2002 के गुजरात दंगों के दौरान, संजय भट्ट ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर बेहद गंभीर आरोप लगाए।
• उन्होंने दावा किया कि एक बैठक में मोदी ने अधिकारियों को “हिंदुओं को अपना गुस्सा निकालने की छूट” देने का निर्देश दिया था।
• यह हलफनामा देशभर में चर्चा का विषय बन गया था।
हालांकि, SIT ने इन आरोपों को खारिज कर दिया और इसे “असत्य” करार दिया। इसके बाद, भट्ट को “राजनीतिक मकसद” से झूठे आरोप लगाने के कई मामलों में फंसा दिया गया।
Sanjeev भट्ट की रिहाई के राजनीतिक मायने
Sanjeev भट्ट की रिहाई केवल कानूनी मसला नहीं है; यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है।
1. विपक्ष के लिए मौका: विपक्षी दल, विशेष रूप से कांग्रेस, इसे नरेंद्र मोदी के खिलाफ नया हथियार बना सकते हैं।
2. दंगों की बहस का पुनरुत्थान: 2002 के गुजरात दंगों की घटनाओं और आरोपों को फिर से चर्चा में लाया जा सकता है।
3. अंतरराष्ट्रीय छवि पर असर: भट्ट के आरोपों की वजह से मोदी सरकार की अंतरराष्ट्रीय छवि भी सवालों के घेरे में आ सकती है।
Sanjeev भट्ट का करियर: विवादों की लंबी फेहरिस्त
Sanjeev भट्ट का करियर हमेशा से विवादों से घिरा रहा है।
• 2011 में, उन्हें गुजरात सरकार ने “अनधिकृत अनुपस्थिति” के कारण निलंबित कर दिया।
• 2015 में, गृह मंत्रालय ने उन्हें बर्खास्त कर दिया।
• 2018 में, उन पर एक झूठे ड्रग्स मामले में निर्दोष व्यक्ति को फंसाने का आरोप लगा।
इन सभी घटनाओं के बावजूद, भट्ट ने हमेशा खुद को निर्दोष बताते हुए अपने आरोपों को “सच्चाई के लिए लड़ाई” करार दिया।
क्या मोदी सरकार के लिए नई मुसीबत?
Sanjeev भट्ट की रिहाई नरेंद्र मोदी के लिए कई मोर्चों पर परेशानी खड़ी कर सकती है:
• 2002 के दंगों पर सवाल: भट्ट के आरोप एक बार फिर गुजरात दंगों के दौरान प्रशासन की भूमिका पर बहस छेड़ सकते हैं।
• राजनीतिक हथियार: विपक्ष इसे 2024 के आम चुनावों में मोदी सरकार के खिलाफ बड़ा मुद्दा बना सकता है।
• जनता की धारणा: भट्ट की कहानी जनता के बीच मोदी सरकार की छवि को प्रभावित कर सकती है।
क्या है सच्चाई?
सवाल उठता है कि क्या भट्ट के आरोप पूरी तरह सही हैं, या यह केवल राजनीतिक महत्वाकांक्षा का हिस्सा है?
• उनके समर्थक उन्हें “सत्य का योद्धा” बताते हैं।
• वहीं, उनके विरोधी इसे “राजनीतिक षड्यंत्र” मानते हैं।
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Sanjeev भट्ट का मामला भारतीय लोकतंत्र के लिए एक दर्पण की तरह है। यह कहानी केवल एक अधिकारी की नहीं, बल्कि न्यायपालिका, राजनीति, और प्रशासनिक तंत्र के जटिल संबंधों की भी है।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या आता है और संजय भट्ट की कहानी किस दिशा में जाती है। लेकिन एक बात साफ है: यह अफसर नरेंद्र मोदी के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है।