जब चीतो को मरना ही था, तो लाए क्यों गए?
1950 के दशक के मध्य में विलुप्त होने की पुष्टि के तुरंत बाद भारत में चीता के पुन: परिचय पर चर्चा शुरू हुई। 1970 के दशक से ईरान की सरकारों को प्रस्ताव दिए गए थे, लेकिन मुख्य रूप से वहाँ राजनीतिक अस्थिरता के कारणों से विफल रहे। अफ्रीकी चीतों को पेश करने के लिए केन्या से प्रस्ताव 1980 के दशक की शुरुआत में दिए गए थे। 2009 में भारत सरकार द्वारा अफ्रीकी चीतों को लाने का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इसकी अनुमति नहीं दी। अदालत ने 2020 की शुरुआत में अपने फैसले को पलट दिया, लंबी अवधि के अनुकूलन के परीक्षण के लिए प्रायोगिक आधार पर एक छोटी संख्या के आयात की अनुमति दी।
भारत में चीते 70 साल पहले ही विलुप्त हो चुके थे।आख़िरी तीन भारतीय चीतों का शिकार एक राजा ने किया था।शान से तस्वीर भी खिंचाई थी।और दशकों लंबी कवायद के बाद 2022 में प्रयोग के तौर पर 20 अफ्रीकी चीतों को कूनो नेशनल पार्क लाया गया था। ये पहली बार था जब किसी मांसाहारी जानवर को एक महाद्वीप से दूसरे में शिफ्ट किया गया। PM मोदी ने अपने जन्मदिन पर स्वयं कूनो में चीतों को छोड़ा था। उम्मीद जागी, कि अब चीते फिर भारत में बसने लगेंगे।लेकिन अब तक कूनो में 3 चीतों की मौत हो चुकी है। तो क्या अफ्रीकी चीतों को भारत में बसाने का ये प्रयोग असफल होता दिख रहा है?
सबसे पहले ये जान लें कि फिलवक्त कूनो में कितने चीते हैं।पहली खेप में पीएम मोदी के जन्मदिन पर 17 सितंबर 2022 को नामीबिया से आठ चीते लाए गए। फिर दक्षिण अफ़्रीका से 12 चीते लाए गए।लेकिन इन 20 चीतों में से दो की मार्च और अप्रैल में मौत हो गई थी। पहले मादा चीता शासा की मौत हुई थी।शासा भारत लाए जाने से पहले ही किडनी की बीमारी से पीड़ित थी।23 जनवरी को शासा में थकान और कमजोरी के लक्षण दिखे, जिसके बाद उसे इलाज के लिए क्वारंटीन किया गया।26 मार्च को शासा की मौत हो गई।
कूनो नेशनल पार्क में मंगलवार को दक्षिण अफ्रीका से लाई गई मादा चीता की मौत मेंटिंग के दौरान संघर्ष में हो गई। हालाकि इसके पूर्व भी दो चीतों की मौत यहां हो चुकी है, पर चीता दक्षा की मौत की इस तरह से मौत ने देश में सात दशक बाद बसाए जा रहे चीतो को लेकर विशेषज्ञों की चिंता बढ़ गई है। चिंता का कारण यह है कि इस पूरे प्रोजेक्ट में प्रजनन ही सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। प्रोजेक्ट की पूरी सफलता इस बात पर ही है कि मादा चीते जल्द से जल्द प्रजनन करें, ऐसे में यदि मेटिंग में ही मादा चीता की मौत हो जाती है तो चिंता लाजिमी है।कूनो नेशनल पार्क के बाड़ा क्रमांक-1 में मेटिंग के दौरान चीतों के बीच हिंसक मिलन में मादा चीता दक्षा की मौत पर सवाल।
कूनो नेशनल पार्क के बाड़ा क्रमांक-1 में मेटिंग के दौरान चीतों के बीच हिंसक मिलन में एक मादा चीता दक्षा की मौत हो गई। इस हिसंक में बाड़े में छोड़े गए दो चीते भी घायल हुए हैं। इस घटना के बाद अन्य बाड़ों में एक साथ रहे अन्य चीतों को लेकर चिंता बढ़ गई है। बता दें कि, दक्षिण अफ्रीका से लाए गए 12 चीतों की क्वारंटाइन अवधि पूरी होने के बाद 17 अप्रैल को 03 और 19 अप्रैल को शेष 09 चीतों को बड़े बाड़े में आजाद किया गया था। इनमें कुछ नर-मादा को जोड़ी से छोड़ा गया है। तो कुछ अकेले रखा गया है। दो-दो नर चीतों और दो मादा चीतों को जोड़ी से सेपरेट बाड़े में छोड़ा गया है। कुल तीन बाड़ों में छह चीते तो बाकी चीतों को अलग-अलग बाड़ों में रखा गया है। चीतों को जिस बड़े बाड़े में आजाद किया गया है, वह छह वर्ग किलोमीटर एरिया में फैला हुआ है। इसमें 9 एनक्लोजर बनाए गए हैं।
दक्षिण अफ्रीका से लाई गई मादा चीता की मौत मेंटिंग के दौरान संघर्ष में हो गई। हालाकि इसके पूर्व भी दो चीतों की मौत यहां हो चुकी है, पर चीता दक्षा की मौत की इस तरह से मौत ने देश में सात दशक बाद बसाए जा रहे चीतो को लेकर विशेषज्ञों की चिंता बढ़ गई है। चिंता का कारण यह है कि इस पूरे प्रोजेक्ट में प्रजनन ही सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। प्रोजेक्ट की पूरी सफलता इस बात पर ही है कि मादा चीते जल्द से जल्द प्रजनन करें, ऐसे में यदि मेटिंग में ही मादा चीता की मौत हो जाती है तो चिंता लाजिमी है।
दक्षा की मौत ने प्रबंधन के उस निर्णय पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं, जिसमें मेटिंग के उद्देश्य से दो नर चीता को मादा चीता के साथ छोड़ा गया। मेटिंग कराने का निर्णय हाई लेवल बैठक में लिया गया था। दक्षा से मेटिंग के लिए एक साथ दो चीतों का चयन क्यों किया गया। अब इस निर्णय की समीक्षा होगी, क्योंकि इस समय बाड़े में सात मादा चीता और सात नर चीता मौजूद हैं। जबकि एक मादा चीता अपने चार शावकों के साथ अलग है। दो नर चीता खुले जंगल में हैं। जानकारों का कहना है प्रजनन की प्रक्रिया यदि बाड़े के बजाए खुले जंगल में अपनाई जाती तो बेहतर रहता। अमूमन जानवरों का बिहेवियर ऐसा होता है कि वे, जब किसी से मेटिंग करते हैं तो दूसरे के प्रति गुस्सा रहता ही है। खुले जंगल में काफी समय तक मादा चीता आशा के साथ तीन नर चीते फ्रेडी, आल्टन और ओबान रहे हैं, परंतु कभी ऐसा मामला नहीं देखा गया। इसकी भी पड़ताल की जाएगी।की टीम ने चीता दक्षा का पोस्टमार्टम किया।वन विभाग के मुताबिक, दक्षा की मौत चीतों की आपसी लड़ाई के कारण हुई है। दरअसल, दक्षा पर दो नर चीतों ने हमला कर दिया था।इसमें उसकी मौत हो गई । बता दें कि डेढ़ महीने में कूनो नेशनल पार्क में ये तीसरे चीते की मौत हुई है।बता दें कि भारत में करीब 70 साल पहले चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया गया था। भारत समेत एशिया में 19वीं शताब्दी से पहले तक पाई जाने वाली प्रजाति को ‘एशियाई चीता’ कहा जाता था। अब एशियाई चीता केवल ईरान में बचे हैं।शिकार के कारण ज्यादातर देशों में एशियाई चीते लुप्त हो गए. अगर भारत की बात की जाए तो 1947 में सरगुजा के राजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने आखिरी तीन चीतों का शिकार किया था। इसके बाद 1952 में एशियाई चीतों को भारत में लुप्त घोषित किया गया था।
वैज्ञानिकों के अनुसार चीते सबसे पहले हिमयुग में साउथ अफ्रीका में मायोसिन युग में आज से करीब 2.6 करोड़ वर्ष पहले देखे गए। इसके बाद धीरे-धीरे अफ्रीकी महाद्वीप से एशियाई महाद्वीप में इनका प्रवास शुरू हुआ। करीब 1.1 करोड़ वर्ष पहले एशिया में प्लायोसिन युग में इनकी मौजूदगी पाई गई। वैज्ञानिकों के अनुसार बिल्ली, चीता, बाग, तेंदुआ और शेर एक ही प्रजाति के प्राणी हैं। यानि चीता बिल्लियों के ही परिवार का सदस्य है। जिनमें समय-समय पर परिवर्तन होता रहा। जलवायु परिवर्तन के साथ ये सभी प्राणी अपने ठिकाने, जीने के तौर-तरीके बदलते रहे। साथ ही इनमें शारीरिक और आनुवांशिक परिवर्तन भी होते रहे। दुनियां में चीते की कई प्रजातियां है। वहीं बड़ी बिल्ली परिवार से संबंध रखने वाले कुछ चीतों को पांच करोड़ साल पहले व्यूत्पन्न माना जाता है। यानि जो किसी दूसरी जातियों से पैदा हुए।