काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद भारत के पास अफगानिस्तान में हैं ये विकल्प, जानें- क्या बोले एक्सपर्ट्स
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर जा चुके हैं। राजधानी काबुल सहित पूरे अफगानिस्तान में लोगों में दहशत का माहौल है। अफगानिस्तान से बाहर निकलने के लिए लोग काबुल एयरपोर्ट पर लाइन में लगे हुए हैं। ऐसे में अफगानिस्तान सरकार का समर्थक भारत अब अफगानिस्तान में खुद को फंसा हुआ देखा रहा है। भारत ने कहा है काबुल का दूतावास बंद कर दिया जाएगा। दूतावास के कर्मचारियों के साथ ही अफगानिस्तान में रह रहे भारतीयों को भारत वापस लाया जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि अफगानिस्तान पर तालिबान पर कब्जे के बाद भारत क्या करे? भारत का अफगानिस्तान में क्या भविष्य है? क्या भारत तालिबान सरकार को मान्यता देकर उनके साथ काम करेगा?
इन सवालों के जवाब आसान नहीं है। डिफेंस एनालिस्ट, इंटरनेशनल रिलेशंस एक्सपर्ट्स और जियोपॉलिटिकल एक्सपर्ट्स के पास भी इसका कोई साफ सीधा जवाब नहीं है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत के पास मुख्य तौर पर दो रास्ते हैं। पहला तो ये कि तालिबान के आने के बाद भारत अफगानिस्तान से निकल जाए। ऐसा होने से ये होगा कि भारत द्वारा अफगानिस्तान में किए गए दशकों के काम कुछ ही दिनों में खत्म हो सकते हैं। दूसरा विकल्प यह कि भारत तालिबान से बात करे तो उसके साथ डील करते हुए काम करे। लेकिन यह ज्यादा मुश्किल भरा है क्योंकि भारत सरकार अब तक अफगानिस्तान सरकार का समर्थन करती आई है। और अफगानिस्तान सरकार को ही अफगानों का प्रतिनिधि मानती रही है। तो क्या और कोई रास्ता नहीं है?
सांकेतिक स्तर पर बातचीत?
एक है बीच का रास्ता। जिसे लेकर हाल के दिनों में कई एक्सपर्ट्स ने बात की है। इसे लेकर एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत को तालिबान से बातचीत शुरू करने की कोशिश करनी चाहिए और अफगानिस्तान में जारी विकास कामों को पूरा करना चाहिए। भले यह धीमे हो या सांकेतिक स्तर पर ही क्यों न हो। लेकिन एक ओर भारत यूनाइटेड नेशंस में अफगानिस्तान के भविष्य और तालिबान पर प्रतिबंधों को लेकर बात कर रहा और दूसरी ओर तालिबान शासन से समझौता भारत के लिए बेहद मुश्किल होगा।
संभलकर कदम उठाने की ज़रूरत
कुछ एक्सपर्ट्स मानते हैं कि भारत सरकार तालिबान को भले मान्यता न दे, लेकिन उसे तालिबान से बात करनी ही होगी। चाहे वह बैक चैनल के जरिए हो या आधिकारिक तौर पर हो। पिछले कुछ महीनों में हमने देखा है कि विदेश मंत्रालय ने कतर की राजधानी दोहा में जारी शांति समझौते के दौरान कई मीटिंग में भाग लिया है। विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा है कि वह अफगानिस्तान को लेकर सभी स्टेकहोल्डर्स से बातें कर रहा है। सरकारी अधिकारियों ने भी कहा है कि वह IC-814 विमान के हुए अपहरण के दौरान जैसे हालात फिर से कतई नहीं चाहेंगे कि भारत के पास तालिबान से डायरेक्ट संपर्क को लेकर दिक्कतें आए।
तालिबान और पाकिस्तान की नजदीकी भी भारत को खटकती रही है। ऐसे में अफगानिस्तान अब भारत विरोधी आतंकी घटनाओं के लिए खुला मैदान हो सकता है। ऐसे में एक्सपर्ट्स बताते हैं कि भारत को भविष्य को देखते हुए संभल के कदम उठाने की ज़रूरत है।