“बाढ़ से लड़ने के लिए केवल इतना बजट, क्या होगा इसका परिणाम?”
विभागीय मंत्री ने इस बजट की घोषणा करते हुए बताया कि इस धन का प्रयोग अत्यधिक विशेष बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में जल्दी से जल्दी नुकसानों को सुधारने के लिए किया जाएगा।
हर साल, जब बाढ़ आती है, तो इसकी विभिन्न तारीखों और स्थानों के साथ लगभग इस प्रकार की होती है:
1. **जुलाई-सितंबर**: मुंबई, महाराष्ट्र
2. **जुलाई-सितंबर**: कोलकाता, पश्चिम बंगाल
3. **जून-सितंबर**: गुवाहाटी, असम
4. **जून-सितंबर**: पटना, बिहार
5. **जुलाई-सितंबर**: भुवनेश्वर, ओडिशा
इन शहरों और राज्यों में बारिश के मौसम की वजह से हर साल बाढ़ की समस्या होती है और सरकारें इसके निपटने के लिए नियमित रूप से कार्रवाई करती हैं।
भारत में हर साल बाढ़ की तबाही ने जीवन को अवरुद्ध किया हुआ है। इसके प्रति सामाजिक और आर्थिक क्षतिपूर्ति बार-बार सहनी पड़ती है और सरकारों को इससे निपटने के लिए निरंतर तैयार रहना पड़ता है। इस समस्या को हल करने के लिए सरकारों ने विभिन्न पहलू देखे हैं, जिसमें विशेषकर बजट आवंटित करना भी शामिल है।
हाल ही में भारतीय सरकार ने बाढ़ से निपटने के लिए 500 करोड़ रुपये का बजट घोषित किया है। यह बजट विभिन्न बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बाढ़ के नुकसानों को सुधारने और प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए उपयुक्त माध्यमों को बढ़ाने के लिए निर्देशित है।
विभागीय मंत्री ने इस बजट की घोषणा करते हुए बताया कि इस धन का प्रयोग अत्यधिक विशेष बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में जल्दी से जल्दी नुकसानों को सुधारने के लिए किया जाएगा। इस बजट से समुद्री बांधों की मरम्मत, जल-संचयन और अन्य नकारात्मक प्रभावों से बचाव के लिए तकनीकी और सामाजिक उपायों को स्थापित करने की योजना बनाई गई है।
सरकारी अधिकारियों ने इस नए पहलू को वाम देते हुए कहा कि बजट का उपयोग बाढ़ से प्रभावित लोगों के जीवन को सुधारने, उन्हें आराम और सुरक्षा प्रदान करने के लिए किया जाएगा। यह नए बजट का प्रारंभिक कदम है जो भारतीय सरकार के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है, विशेषकर बाढ़ के नियंत्रण और प्रबंधन में।
हर साल भारी बारिश और बाढ़ से तबाही झेल रहे देश के पास बाढ़ नियंत्रण कार्यक्रमों के लिए पर्याप्त धन ही नहीं है। केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के पास बाढ़ प्रबंधन कार्यों का सालाना बजट महज 500 करोड़ रुपये है, जोआवश्यकताओं की तुलना में बेहद कम है। इतना ही नहीं सरकार ने बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रमों के लिए 11वीं योजना के तुलना में 12वीं योजना की केंद्र-राज्य हिस्सेदारी को भी काफी बदल दिया है, जिससे राज्यों को केंद्र से मिलने वाले धन में और ज्यादा कमी आ गई है। देश के विभिन्न हिस्सों में हर साल भारी बाढ़ आती है और व्यापक तबाही होती है। ऐसे में यह मुद्दा हर साल उठता भी है और बाद में ठंडा भी पड़ जाता है, लेकिन हकीकत यह है कि सरकार के बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रमों को भारी आर्थिक संकट से गुजरना पड़ रहा है।
संसदीय स्थायी समिति ने गहरी चिंता जताई
जल शक्ति मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति ने इन हालातों पर गहरी चिंता जताई है। समिति ने मंत्रालय से आग्रह किया है कि वह पर्याप्त बजटीय आवंटन के लिए वित्त मंत्रालय के सामने दृढ़ता से प्रयास करे। साथ ही नीति आयोग से आग्रह कर बाढ़ प्रबंधन योजनाओं के लिए केंद्र और राज्यों के बीच मौजूदा फंड शेयरिंग पैटर्न को भी संशोधित करने को कहे। इसके अलावा, अलग से वित्तपोषण बढ़ाने की संभावनाओं को भी तलाशे। संसदीय समिति ने वित्त पोषण के केंद्रीय हिस्से को कम करने पर भी अपनी चिंता जताई है। खासकर बिहार जैसे गरीब राज्यों जो नेपाल और अन्य प्रमुख बाढ़ प्रभावित राज्यों के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करते हैं। संसदीय समिति का मानना है कि हर साल बाढ़ से होने वाली बड़ी हानि और क्षति खराब योजना, बाढ़ नियंत्रण नीति और उपायों की विफलता, अपर्याप्त तैयारी और अप्रभावी आपदा प्रबंधन के संकेत हैं।
राज्यों की धन की हिस्सेदारी में बदलाव से बढ़ीं और दिक्कतें
गौरतलब है कि 11वीं योजना के दौरान बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रम को 8,000 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ लागू किया गया था। विशेष श्रेणी के राज्यों के लिए फंडिंग का पैटर्न 90 फीसदी केंद्र और दस फीसदी राज्य का रखा गया था। सामान्य और गैर विशेष श्रेणी के राज्यों के लिए यह पैटर्न 75 फीसदी केंद्र और 25 फीसदी राज्य का था। 12वीं योजना में यह कार्यक्रम जारी रहा लेकिन विशेष श्रेणी के राज्यों के लिए इसे बदलकर 70 फीसदी केंद्र और 30 फीसदी राज्य कर दिया गया। सामान्य राज्यों के लिए भी संशोधित कर से 50-50 फीसदी कर दिया गया। इससे राज्यों को मिलने वाले धन में और ज्यादा कमी आ गई।