बच्‍चों को लगने वाली ZYCOVD वैक्‍सीन की तीनों खुराकों में कितना होगा अंतर, जानें

नई दिल्‍ली. कोरोना महामारी (Corona Pandemic) से बच्‍चों को सुरक्षित रखने के लिए देश को पहली कोरोना वैक्‍सीन मिल गई है. हाल ही में जायडस कैडिला की जेडवाईसीओवीडी ZYCOVD को बच्‍चों के लिए प्रयोग की अनुमति दी गई है. यह पहली डीएनए वैक्‍सीन (DNA Vaccine) है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह वैक्‍सीन टीकाकरण में क्रांति ला सकती है. नेशनल कोविड19 टास्क फोर्स कमेटी (National Covid-19 Task Force Committee) के वरिष्ठ सदस्य और एईएफआई कमेटी के सलाहकार डॉ. नरेंद्र कुमार अरोड़ा ने पहली डीएनए आधारित वैक्सीन जायडस कैडिला की जेडवाईसीओवीडी (ZYCOVD) के प्रयोग की अनुमति दिए जाने के बाद इसके प्रयोग और इसकी खुराकों से संबंधित सवालों के विस्‍तार से जवाब दिए हैं.

सवाल. जायडस कैडिला की जेडसीओवीडी डी कोविड वैक्सीन अन्य उपलब्ध कोविड वैक्सीन से किस तरह अलग हैविशेष रूप से फाइजर और मॉडर्ना की एमआरएनए वैक्सीन से इसे किस तरह अलग कहा जा सकता है?

जवाब. जायडस कैडिला (Zydus Cadilla) की जेडसीओवीडी (ZCOVD) दुनिया की पहली प्लाज्मिड डीएनए आधारित वैक्सीन है जिसे मानव प्रयोग में लाया जाएगा. डीएनए और डिऑक्सी रिबोन्यूक्लिक एसिड में एक जीवश्म के कई जेनेटिक कोड के कंपोनेट्स (अवयय) होते हैं. डीएनए आधारित वैक्सीन बनाने के लिए कोविड वायरस के उस प्रमुख हिस्से को जो कि सेल्स में प्रवेश करने में मदद करता है मरीज को संक्रमित करता है उसे कोडेड कर लिया जाता है. जब वैक्सीन मानव शरीर में पहुंचाया या लगाया जाता है, यह वायरस के उसी हिस्से का उत्पादन करती है और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी (Antibody) या टी सेल्स एंटीबॉडी के लिए उत्तेजित करती हैं.

जाइडस की यह वैक्सीन दुनिया की पहली वैक्सीन है जो डीएनए बेस्ड है. (फाइल फोटो)

वैक्सीन में मौजूद डीएनए प्लाज्मिड झिल्ली से कवर होता है और शरीर में एंटीबॉडी बनाने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद यह अपने आप विघटित हो जाता है. यह डीएनए लैब में तैयार की गई संरचना है और इसमें मानव शरीर की आनुवांशिक संरचना में हस्तक्षेप करने की क्षमता होती है.हालांकि एमआरएनए वैक्सीन को भी इसी सिद्धांत पर तैयार किया जाता है यह भी लैबोरटरी में तैयार की गई संचरना होती है न कि वायरस से ली गई सजीव संचरना.

सवाल. क्या इस वैक्सीन को बच्चों के लिए भी प्रयोग की अनुमति दे दी गई है?

जवाब. किसी भी नई वैक्सीन का परीक्षण सबसे पहले व्यस्क लोगों में होता है इसके बाद इसे बच्चों पर प्रयोग किया जाता है और इसे वर्तमान में सभी अन्य बाल टीकों की तरह ही सुरक्षित पाया गया है. इसी तरह कोविड के लिए वर्तमान में प्रयोग की जाने वाली सभी वैक्सीन जैसे कोविशील्ड, कोवैक्सिन या फिर स्पूतनिक वी जिन्हें व्यस्क के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, इसमें कोवैक्सिन का अब 2-18 साल के बच्चों के लिए परीक्षण किया जा रहा है. वैक्सीन के प्रयोग के संदर्भ में ध्यान देने वाली बात इसकी सुरक्षा और बच्चों में इम्यूनोजेनेटी क्षमता को जांचना है. अब हमारे पास किशोरावस्था के बच्चों के लिए भी देश की पहली स्वीकृत सुरक्षित और प्रभावी कोविड वैक्सीन उपलब्ध है.

जवाब. व्यस्क टीकाकरण में प्राथमिक समूहों को व्यवसाय, कोमोरबीडिज या एक साथ कई बीमारियां और उम्र के आधार पर रखा गया था. इस समूह में संक्रमण के जोखिम के खतरे और गंभीर बीमारी वाले लोगों को प्राथमिकता के आधार पर मृत्यु दर कम करने के लिए पहले टीका दिया गया लेकिन बच्चों में कोविड संक्रमण के लक्षण बेहद हल्के ए सिम्पमेटिक या मामूली होते हैं, जबकि कोविड संक्रमित बच्चों की मृत्यु के मामले भी बड़ों के एवज में कम देखे गए. बड़ों की तरह ही बच्चों मे भी टीकाकरण की प्राथमिकता तय की जाएगी, इसमें पहले समूह में उन बच्चों को कोविड का वैक्सीन दिया जाएगा, जिन्हें पहले से कई गंभीर बीमारियां जैसे डायबिटिज, दिल की बीमारी, सीकेडी या किडनी की बीमारी, लिवर, या फिर सांस की तकलीफ है, ऐसी किसी भी अवस्था में सामान्य बच्चों की अपेक्षा कोविड संक्रमण का गंभीर असर हो सकता है.

दूसरा, भारत में कुल 44 करोड़ बच्चे हैं जिसमें 12 करोड़ बच्चे 12-17 साल की आयु वर्ग के बीच के हैं. व्यस्क टीकाकरण में तय की गई प्राथमिकता के अनुसार ही बच्चों का भी टीकाकरण किया जाएगा. जिसमें कोमोरबीडिज बच्चों को पहले टीका मिलेगा.

सवाल. क्या यह वैक्सीन अन्य स्वीकृत वैक्सीन से भी अधिक सुरक्षित है?

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