आखिर क्या है पर्यावरण दिवस के पीछे का इतिहास?

पृथ्वी पर जीवन की संभावनाएं बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी है कि हम पर्यावरण को सुरक्षित व सुरक्षित रखें। आधुनिकता की अंधी दौड़ में विश्व ने आज ऐसी का उपयोग शुरू कर दिया है, जो धरती और पर्यावरण दोनों के लिए ही विनाशकारी है। यह तो हम सभी जानते हैं कि मानव और पर्यावरण के बीच काफी गहरा संबंध है। प्रकृति के बिना जीवन अकल्पनीय है। लेकिन जल्द से जल्द आधुनिक बनने की भूख में मनुष्य इसी प्रकृति का अंधाधुंध दोहन करने में लग गया है।लगातार पर्यावरण को दूषित किया जा रहा है, जो न केवल हमारे आसपास के जनजीवन को प्रभावित करता है और प्राकृतिक आपदाओं का कारण भी बनता है।

सुखी और स्वस्थ जीवन के लिए पर्यावरण के संरक्षण की अत्यंत आवश्यकता है। इसी उद्देश्य के साथ प्रतिवर्ष भारत में पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस दिन ना केवल पर्यावरण को लेकर लोगों को जागरुक किया जाता है बल्कि पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए प्रोत्साहित भी किया जाता है। चलिए जानते हैं कि कैसे क्यों और किस प्रकार पर्यावरण दिवस मनाने की शुरुआत हुई।

प्रत्येक वर्ष जून के महीने में पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। 5 जून को विश्व भर में भारत समेत कई अन्य देशों द्वारा इस दिवस को प्राथमिकता दी जाती है। इस मौके पर सभी देश अलग-अलग तरीकों से पर्यावरण से संबंधित जागरूकता के लिए कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।

विश्व पर्यावरण दिवस का प्रारंभ 1972 में हुआ। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 5 जून 1972 को पहली बार विश्व पर्यावरण दिवस मनाया था। इस दिन को सबसे पहले स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में मनाया गया, जिसमें 119 देशों ने भाग लिया था।

 

विश्व में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण को रोकने के उद्देश्य से इस दिवस की शुरुआत की गई थी। ताकि लोगों में जागरूकता बढ़ाई जाए और प्रकृति को प्रदूषित होने से बचाया जा सके।

प्रतिवर्ष विश्व पर्यावरण दिवस के लिए किसी विशेष टीम का प्रायोजन किया जाता है। इसी में इस बार की थीम “सलूशन टू प्लास्टिक पॉल्यूशन ” तय हुई है।

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