राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा क्या है ? और कैसे होती है चलिए बताते हैं ,22 जनवरी को होने वाले इस अनुष्ठान के बारे में।

उत्तर प्रदेश: राम मंदिर के निर्माण की शुरुआत के लिए भूमिपूजन 5 अगस्त 2020 को किया गया था। वर्तमान में निर्माणाधीन मंदिर की देखरेख श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा की जा रही है। मंदिर का उद्घाटन 22 जनवरी 2024 को निर्धारित है।

22 जनवरी 2024 को राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा होना है ऐसे में लिए आपको बताते हैं कि प्राण प्रतिष्ठा और हिंदू धर्म में इसकी क्या मान्यता है?
सालों का इंतजार अब खत्म होने वाला है अयोध्या में स्थित श्री राम जन्मभूमि पर लगभग 50 साल बाद श्री राम के भव्य मंदिर का निर्माण कार्य लगभग पूरा हो चुका है। 22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इस मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा होगा ।जिसके बाद श्री राम लाल को उनके मुख्य गर्भ ग्रह से पूरे विधि विधान के साथ स्थापित कर दिया जाएगा ।

इस खास मौके पर देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु आने वाले हैं। आगे आज आपको बताते हैं किसी भी मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा क्यों किया जाता है। और इसकी हिंदू धर्म में क्या मान्यता है ।अगर शाब्दिक अर्थ की बात करें तो प्राण का अर्थ होता है जीवन शक्ति और प्रतिष्ठा का अर्थ है स्थापना प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ होता है किसी जीवन शक्ति को स्थापित करना। धार्मिक रूप से प्राण प्रतिष्ठा एक तरह का धार्मिक अनुष्ठान है। जिसका दो धर्म में पालन किया जाता है।

हिंदू और जैन धर्म के लोग इसके जरिए किसी मंदिर में पहली बार भगवान की मूर्ति स्थापित करते हैं। यह काम कई पुजारी की उपस्थिति में होता है इसमें कई सारे धार्मिक मंत्रों और भजनों को भी शामिल किया जाता है। हिंदू धर्म में अगर किसी मूर्ति का प्राण प्रतिष्ठा ना हो तो उसे पूजा करने योग्य नहीं माना जाता है।प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया में  कई सारी विधियां शामिल होती हैं ।मान्यता के अनुसार इसका पालन किया जाना जरूरी होता है। इसमें सबसे पहले जिस मूर्ति का प्रतिष्ठा होना है, उसे समारोह पूर्वक लाया जाता है फिर मंदिर के मुख्य द्वार पर किसी अतिथि की तरह स्वागत किया जाता है। फिर इस मूर्ति को सुगंधित चीजों का लेप लगाकर दूध से नहलाते हैं ।

इससे मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा योग्य बन जाती है ।आगे मूर्ति को गर्भ ग्रह में रखकर इसकी विधिवत पूजा की जाती है। इस दौरान कपड़े पहनाकर देवता की मूर्ति को यथा स्थापित कर दी जाती है। मूर्ति का मुख हमेशा पूर्व की दिशा की ओर करके रखा जाता है। स्थापित करने के बाद देवता को भजनों, मंत्रो और पूजा की खास विधियों द्वारा आमंत्रित किया जाता है ।

इसके बाद सबसे पहले मूर्ति की आंखें खोली जाती हैं, यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद फिर मंदिर में उसे देवता की मूर्ति की पूजा अर्चना होती है। इस अनुष्ठान को हिन्दू मंदिर में जीवन का संचार करने के साथ उसमें दिव्यता और आध्यात्मिकता की दिव्य उपस्थित लाने वाला माना जाता है।

नोट –इस लेख में लिखे गए शब्द( विपिन यादव) एसजी टी विश्वविद्यालय गुरुग्राम के शिक्षक के हैं।

 

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