पहले नरेंद्र गिरि की वसीयत को मठ के लोगों ने फर्जी बताया,
फिर आधी रात तक चली बैठक में ऐसा क्या हुआ जो बलबीर के नाम पर मुहर लग गई
बाघंबरी मठ के भीतर पिछले 10 दिनों से जो कुछ चल रहा है, वह किसी सस्पेंस थ्रिलर से कम नहीं है। दरअसल 20 सितंबर को महंत नरेंद्र गिरि की रहस्यमयी मौत के बाद उनकी वसीयत सामने आई। इसके बाद पंच परमेश्वर ने ऐलान किया कि जांच पूरी होने के बाद नए महंत के नाम की घोषणा होगी। 28 सितंबर की सुबह तक पंच परमेश्वर अपने फैसले पर अड़े रहते हैं, लेकिन शाम होते-होते अचानक एक बैठक बुलाई जाती है। आधी रात तक चली इस बैठक के बाद सुबह तीसरी वसीयत में दर्ज उत्तराधिकारी के नाम की घोषणा महंत पद के लिए कर दी जाती है।
ऐसे में अब यह सवाल सबके जेहन में उठ रहा है कि आखिर उस एक रात में ऐसा क्या हुआ कि बलबीर गिरि के नाम पर ऐतराज जताने वाले मठ और अखाड़े के पदाधिकारी अचानक से उनके नाम पर राजी हो जाते हैं?
हालांकि इससे भी बड़ा सवाल यह है कि तीनों वसीयत लिखने वाले वकील ऋषि शंकर द्विवेदी के पास 26 सितंबर को बलबीर गिरि का संदेश लेकर कौन सा शिष्य पहुंचा था? आखिर बलबीर ने अपने शिष्य से यह संदेश क्यों पहुंचाया कि वह वकील से मिलना चाहते हैं? एक सवाल यह भी खड़ा होता है कि अखाड़ा परिषद और मठ के उन संतों का सुर आखिर क्यों बदल गया जो नरेंद्र गिरि की वसीयत को मठ परंपरा के खिलाफ बता रहे थे?
मठ के भीतर अभी ऐसे कई सवाल सुलग रहे हैं। एक-एक कर सभी सवालों को टटोलने पर उलझे हुए सिरे कहीं खुलते हैं तो कहीं और उलझ जाते हैं। यानी यह सस्पेंस थ्रिलर फिलहाल खत्म होता नहीं दिख रहा।
वकील से क्यों मिला बलबीर का शिष्य?
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और मठ बाघंबरी गद्दी के महंत नरेंद्र गिरि ने हाल ही में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। इसके बाद उनकी वसीयत सामने आई थी।
सूत्रों की मानें तो बलबीर के शिष्य ने वकील से 26 सितंबर यानी रविवार के दिन मुलाकात की। उसने वकील से कहा-गुरु जी आपसे मिलना चाहते हैं। वकील ने उत्तर दिया- हां जब चाहें तब मिल सकते हैं। वे गद्दी के उत्तराधिकारी हैं। उनके नाम नरेंद्र गिरि जी की वसीयत मेरे पास है। मैं उनका वकील था।
वे मुझसे मिलने का अधिकार रखते हैं। शिष्य ने कहा- क्या वसीयत को चैलेंज किया जा सकता है। वकील ने कहा- बिल्कुल नहीं। यह कानूनी दस्तावेज है। कोई चैलेंज करेगा तो मुसीबत में फंस जाएगा। शिष्य ने पूछा- अगर मठ चाहे तो क्या वसीयत रद्द हो सकती है।
वकील ने कहा- मैं कानून की बात करता हूं। लिहाजा कानूनी तौर पर यह करना मुमकिन नहीं। बातचीत से साफ है कि संभावित नए महंत का शिष्य यह जानने पहुंचा था कि अगर वसीयत को मठ या अखाड़े के लोग नहीं मानते हैं तो क्या बलबीर मठ के महंत नहीं बन पाएंगे?
हो सकता है कि इन्हीं सब कानूनी दांव-पेच को समझने के लिए बलबीर वकील से मिलना चाहते हों या फिर यह भी हो सकता है कि बलबीर वकील से मिलकर यह तय करना चाहते हों कि अगर पंच परमेश्वर वसीयत की अनदेखी करते हैं तो आगे क्या रास्ता अख्तियार करना होगा। हालांकि वकील से कौन सा शिष्य मिला, अभी यह भी साफ नहीं हो पाया है।
28 सितंबर को हुई बैठक में आखिर क्या हुआ?
प्रयागराज स्थित बाघंबरी मठ में CBI के अधिकारी जांच में जुटे हैं। सुरक्षा व्यवस्था सख्त है, हर जगह पुलिस और सुरक्षाबल के जवान तैनात हैं।
सोमवार को मठ के वरिष्ठ संत ने दैनिक भास्कर से बातचीत में बताया कि पुरानी वसीयत उनके हाथ में है। यह वसीयत साफ करती है कि नरेंद्र गिरि ने जिस तरह से वसीयत बनाई वह मठ की परंपरा के खिलाफ है। लिहाजा तीनों वसीयत फर्जी हैं। अगला महंत कौन होगा, अब यह सब षोडशी यानी मृतक महंत के मरणोपरांत होने वाले एक आखिरी संस्कार के बाद तय होगा, लेकिन 28 सितंबर की शाम को अचानक मठ के जिम्मेदार संतों, निरंजनी अखाड़ा और पंच परमेश्वर के बीच बैठक हुई।
29 सितंबर की सुबह बलबीर का नाम महंत पद के लिए घोषित कर दिया गया। इस बैठक में मौजूद एक संत से जब पूछा गया, आखिर एक दिन और रात में ऐसा क्या बदला कि पंच परमेश्वर,अखाड़ा परिषद और मठ के वरिष्ठ संतों के सुर बदल गए?
इस पर उन्होंने साफ कहा- ‘पहले नरेंद्र गिरि के साथ आनंद गिरि का विवाद, फिर महंत की मौत और अब तीन वसीयत सामने आईं, जो मठ की परंपरा को दरकिनार कर लिखाई गई हैं, लेकिन अब और मठ की छवि को खराब नहीं किया जा सकता। लिहाजा सब ने यह फैसला लिया कि बलबीर को गद्दी में बैठाया जाए, पर सुपर एडवाइजरी बोर्ड की निगरानी के साथ। पूरी बातचीत के दौरान उन्होंने कई बार कहा कि कुछ फैसले मजबूरी में लेने पड़ते हैं।
वसीयत कानूनी है, नहीं माना गया तो संघर्ष लंबा हो सकता है
सूत्रों की मानें तो बैठक करने वाले मठ के अधिकारी, पंच परमेश्वर और अखाड़ा परिषद के जिम्मेदार लोगों को यह भनक लग गई थी कि अगर वे अड़े रहे तो गद्दी के लिए संघर्ष कोर्ट तक भी जा सकता है। कानूनी लड़ाई हुई तो बलबीर के नाम की गई आखिरी वसीयत ही मान्य होगी। हां, यह बात अलग है कि अगर CBI जांच में कुछ ऐसा आ जाए जो यह प्रूफ कर दे कि वसीयत महंत की इच्छा से नहीं लिखी गई तो फिर वसीयत को चैलेंज किया जा सकता है।
प्रयागराज स्थित बाघंबरी मठ का इतिहास 300 साल पुराना है। साल 2004 में नरेंद्र गिरि को इस मठ का महंत चुना गया था।
महंत की मौत के बाद सामने आई वसीयत पर उठा था ऐतराज
अखाड़ा परिषद के महामंत्री हरि गिरि ने दैनिक भास्कर से साफ कहा था, ‘हमें बलबीर या किसी और के नाम पर ऐतराज नहीं है, लेकिन जांच पूरी होने के बाद ही किसी को गद्दी सौंपी जाएगी।’ निरंजनी अखाड़े और मठ के अन्य संतों ने भी नाम न छापने की शर्त पर यही बात कही थी। इन सभी ने बार-बार कोर्ट से मठ के प्राचीन कागज और वसीयत निकलवाने की बात कही। इन सबका कहना था, पीढ़ी दर पीढ़ी महंतों ने अपने उत्तराधिकारी चुने हैं, वसीयत की है। एक बार वह सारी वसीयत हाथ में आ जाएं तो सारा विवाद खत्म हो जाएगा।
क्या है मठ की पुरानी परंपरा?
मठ की परंपरा या इस मठ के कानून के मुताबिक सत्तासीन महंत अपने उत्तराधिकारी को चुनने का अधिकार तो रखता है, लेकिन इसमें मठ के अन्य जिम्मेदार संतों और पदाधिकारियों का मशविरा भी शामिल होता है। वसीयत में बाकायदा मशविरा देने वाले ये लोग बतौर गवाह दर्ज होते हैं, लेकिन सामने आई तीनों वसीयत में से किसी भी वसीयत में महंत नरेंद्र गिरि ने किसी से कोई मशविरा नहीं किया। गवाह के तौर पर मठ का कोई व्यक्ति इन तीनों वसीयतों में शामिल नहीं है।