क्या है अखिलेश यादव का अस्सी–बीस का ध्रुवीकरण..
उत्तर प्रदेश – उत्तर प्रदेश का दुर्भाग्य है कि यहां की राजनीति में अस्सी-बीस के ध्रुवीकरण का फार्मूला लगाने का रिवाज थम नहीं रहा है।हां इसकी सूरत ज़रूर बदल रही है। आरोप लगते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अस्सी-बीस यानी हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण से चुनाव जीतकर दोबारा सरकार बनाई। अब यूपी के सबसे बड़े विपक्षी दल सपा पर आरोप लग रहे हैं कि वो हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की काट करने के लिए आगामी लोकसभा चुनाव से पहले हिन्दू समाज में फूट डालकर जातिवादी राजनीति की पराकाष्ठा पर उतर आई है। अगड़ी-पिछड़ी जातियों के अस्सी-बीस के फार्मूले पर अमल करने के लिए दलितों-पिछड़ों और सवर्ण समाज के बीच सपा खाई खोदना चाहती है।
रामचरितमानस पर सवाल उठाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य के विवादित बयान का समर्थन करके पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव जब खुद भी चौपाई पर सवाल उठाने लगे और शूद्र होने की दुहाई देने लगे तो हालात इतने भड़काऊ हो गए कि सनातनियों के पवित्र धर्मग्रंथ रामचरितमानस की प्रतियों की बेअदबी तक की जाने लगी। विवाद की शुरुआत करके अपने विवादित बयान पर अड़े स्वामी प्रसाद मौर्य को इनाम के तौर पर पार्टी में प्रमोशन मिल गई।
कार्यकारिणी से सवर्ण सपाईयों का लगभग सफाया कर दिया गया। इसी बीच सपा के सवर्ण विधायक, पदाधिकारी, प्रवक्ता,कार्यकर्ता भी अपनी पार्टी की इस नीति से नाराज़ होने लगे। समाजवादी पार्टी के अंदर मचे इस घमासान के बादल गने लगा है कि आने वाले वक्त में इस्तीफों का दौर शुरू हो सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस मामले में पार्टी अध्यक्ष डेमेज कंट्रोल के बजाए जातियों के टकराव को और तूल देकर चाहते हैं कि घर की ये आग घर से बाहर निकल कर पूरे समाज में फैले। दलितों-पिछड़ों का समाज एकजुट करके सवर्ण समाज के सामने खड़ा किया जाए। और सवर्ण समाज रामचरितमानस के अपमान से आक्रोशित होकर दलितों-पिछड़ों से नफ़रत का भाव व्यक्त करें।
सवर्ण समाज के सपा के उच्च पदस्थ सूत्र का कहना है कि उनकी पार्टी की रणनीति सबसे पहले अपनी पार्टी में ही अस्सी फीसद गैर सवर्ण और बीस प्रतिशत सवर्ण में टकराव कराना चाहती है। ताकि अपर कास्ट के सपाई या तो पार्टी छोड़ दें या साइड लाइन होकर साइलेंट मोड में आ जाएं।
फिर पूरे यूपी में अगड़े-पिछड़ों के बीच दूरियां पैदा करने का राजनीतिक स्वार्थ साधा जा सके। पार्टी को लगने लगा है कि सनातनियों के बीच एकता नहीं भंग हुई तो उनकी सियासत की नइया पार होना मुश्किल है।
सपा मुखिया अखिलेश पिछड़ों-अति पिछड़ों का भाजपा के प्रति विश्वास जातिवाद के हथौड़े से तोड़ना चाहते हैं। वो ये भी चाहते हैं कि मोदी-योगी सरकारों की गरीबों को लाभ देने वाली जनकल्याणकारी नीतियों (फ्री राशन,घर, सौचालय इत्यादि) से प्रभावित अधिकांश दलित समाज जो भाजपा के समर्थन में खड़ा है उन्हें किसी तरह से भाजपा से अलग किया जाए।
इस कोशिश में पुराने जख्मों को कुरेदकर और भावनाओं के तिलिस्म से दलितों को लुभा रही सपा को सक्रिय देखकर बसपा सुप्रीमो मायावती अपने टूटे हुए कोर वोट पर लपकें, अखिलेश यादव यही चाहते हैं। ताकि सपा से दलित ना भी जुड़ पाए तो बसपा में दलितों की घर वापसी से भाजपा को नुकसान पहुंचाया जा सकता है।