क्या होते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड, “फिर से क्यों हैं चर्चा में” SBI को चंद्रचूड़ ने फटकारा, देखें वीडियो..
आधी अधूरी जानकारी पर SBI को चंद्रचूड़ ने फटकारा।
नई दिल्ली:भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायधीशों की एक संविधान पीठ इलेक्टोरल बॉन्ड या चुनावी बॉन्ड योजना की क़ानूनी वैधता से जुड़े मामले की सुनवाई कर रही है।
ये मामला सुप्रीम कोर्ट में आठ साल से ज़्यादा वक़्त से लंबित है और इस पर सभी निगाहें इसलिए भी टिकी हैं क्योंकि इस मामले का नतीजा साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों पर बड़ा असर डाल सकता है।इस मामले पर सुनवाई शुरू होने से एक दिन पहले 30 अक्टूबर को भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने इस योजना का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा कि ये योजना राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले चंदों में “साफ़ धन” के इस्तेमाल को बढ़ावा देती है.साथ ही अटॉर्नी जनरल ने शीर्ष अदालत के सामने तर्क दिया कि नागरिकों को उचित प्रतिबंधों के अधीन हुए बिना कुछ भी और सब कुछ जानने का सामान्य अधिकार नहीं हो सकता है।
इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय ज़रिया है।यह एक वचन पत्र की तरह है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से ख़रीद सकता है। और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीक़े से दान कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर पूरा डेटा साझा नहीं करने के लिए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) को कड़ी फटकार लगाई।12 मार्च को एसबीआई ने चुनावी बॉन्ड का डेटा चुनाव आयोग को सौंप दिया था।डाटा में चंदा देने वाली कंपनियों के नाम हैं।लेकिन बांड नंबर का खुलासा नहीं किया गया है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को फटकार लगाई है। खबर जिसका वीडियो सोशल मिडिया में तेजी से वायरल हो रहा है।
कैसे हुआ विवाद?
साल 2018 में जब ये योजना लागू की गई तो उसके पहले कुछ कानूनी बदलाव भी किए गए, जैसे कंपनी एक्ट, इनकम टैक्स एक्ट, विदेशों से आने वाली रकम के लिए कानून- फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट औऱ रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट।
योजना के लागू होते ही कई राजनीतिक पार्टियां चुनावी बॉन्ड की पारदर्शिता पर सवाल उठाने लगीं जिसके बाद, कांग्रेस नेता डॉ. जया ठाकुर, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-CPIM) और NGO एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने इस योजना को यह तर्क देकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी कि इसके जरिये राजनीतिक पार्टियां अनगिनत पैसा कमा सकती हैं और इसके अलावा, यह योजना सूचना के अधिकार का भी उल्लंघन करती है, जो कि भारतीय संविधान के मुताबिक, मूल अधिकार का हनन है।
दूसरी ओर, सरकार ने इस योजना को पारदर्शी बताते हुए बचाव किया और कहा कि राजनीतिक डोनेशन में गुमनामी की जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अन्य राजनीतिक दलों से बदले की कोई आशंका न हो।
इस बीच ये भी सवाल उठ रहे हैं कि SBI की तरफ से दिया गया डेटा अप्रैल 2019 से लेकर जनवरी 2024 तक का ही है, जबकि ये 2018 में ही लागू कर दिया गया था। ऐसे में 1 साल का डेटा कहां है। ऐसे में बता दें कि SBI ने 1 साल के इस डेटा को भी सुप्रीम कोर्ट के साथ शेयर कर दिया है।
औऱ जल्द ही ये भी पब्लिक हो जाएंगे। ऐसे में बाद के समय में पार्टियों को मिली रकम थोड़ी सी बढ़ भी जाएगी।