गुजरात के पूर्व सीएम बोले:जैन धर्म में त्याग का संस्कार कम उम्र में दिया जाता है,
इसलिए मैंने भी एक झटके में सीएम का पद छोड़ दिया था
पाटण में सिद्धहेम ग्रंथ से हाथी की अंबाडी पर यात्रा निकाली गई, जिसमें विजय रुपाणी भी मौजूद थे।
पाटण में रविवार को पंचासरा जैन देरासर के पास स्थित त्रिस्तुतिक जैन उपाश्रय में विराजमान जैनाचार्य जयंतसेन सुरीजी महाराज के शिष्य मुनिराज चारितत्र्य रत्न विजयजी की निश्रा में हेमचंद्राचार्य रचित सिद्धहेम शब्दानुशासन व्याकरण ग्रंथ सहित 45 ग्रंथों का चांदी की मुद्रा से पूजन किया गया। सुबह सिद्धहेम ग्रंथ से हाथी की अंबाडी पर यात्रा निकाली गई। इस अवसर पर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी विशेष रूप से मौजूद थे।
इस मौके पर रूपाणी ने कहा कि जैन धर्म में त्याग का संस्कार कम उम्र में दिया जाता है, इसलिए मैंने भी एक झटके में मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिया। पाटण संघ के उपक्रम में समुदाय के साधु-साध्वीजी भगवंत पिछले तीन सालों से पाटण नगर में धार्मिक अध्ययन कर रहे थे। इसके अनुमोद के अनुसार संघ द्वारा दो दिवसीय ज्ञानोत्सव कार्यक्रम रखा गया था। जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी त्रिस्तुतिक उपाश्रय से श्री सिद्धहेम ग्रंथ उनके करकमल में लेकर महोत्सव स्थल पर पहुंचे।
पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने कहा कि जैन धर्म में साधु-साध्वीजी उनके शरीर की पर्वा किए बगैर भगवान महावीर के उपदेशों को लोगों तक पहुंचा रहे है। जैन धर्म में बचपन से ही त्याग करने के संस्कार दिए जाते है और इसलिए ही मैने भी मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया था। त्याग ही संस्कृति का हिस्सा है। कार्यक्रम में जैन संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वाघजी वोरा भी विशेष तौर पर उपस्थित रहे और उनके तथा महानुभवों के हाथों ज्ञानपुजा की गई।
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