नही रहे “पल दो पल के शायर” को हर पल में अमर कर देने वाले खय्याम, पीएम ने जताया शोक
हिंदी सिनेमा को अपने सुनहरे संगीत से सजाकर…उन्हें अमर बना देने वाले प्रख्यात संगीतकार खय्याम ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। अपने शानदार गानों से लाखों दिलों को छू जाने वाले मशहूर संगीतकार ने मुंबई के एक अस्पताल में सदा के लिए अपनी आंखे मूंद ली। 92 साल के खय्याम को सीने में संक्रमण और निमोनिया की शिकायत थी। जिसके बाद उन्हें पिछले महीने की 28 जुलाई को मुंबई के सुजय अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।
मशहूर संगीतकार खय्याम ने उस वक्त फिल्म दुनिया में कदम रखा था। जब मायानगरी में दिग्गज संगीतकारों का दबदबा था। लेकिन उस दौर में भी खय्याम ने अपनी राह खुद बनाई और अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए कड़ी मशक्कत की। मौसिकी के जादूगर खय्याम का जन्म 18 फरवरी 1927 को हुआ था। उनका पूरा नाम मोहम्मद जहूर हाशमी था।
होश संभालते ही उनके दिलो दिमाग पर संगीत का सरूर छा गया था। फिर भी दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने सेना ज्वाइन कर ली थी। लेकिन अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए उन्होंने सेना को अलविदा कह दिया औऱ एक एक्टर बनने के लिए मुंबई की राह पकड़ ली।
साल 1948 में बनी एसडी नारंग की फिल्म ‘ये है जिंदगी’ में उन्हें हीरो बनने का मौका मिल गया। लेकिन उनका हीरो बनने के शौक भी जल्द ही खत्म हो गया। अब वो संगीत की दुनिया में हाथ आजमाने लगे। ‘हीर रांझा’ उनकी धुन से सजी पहली फिल्म थी। लेकिन उनको पहचान मोहम्मद रफ़ी के गीत ‘अकेले में वह घबराते तो होंगे’ से मिली। उसके बाद फ़िल्म ‘शोला और शबनम’ ने उनको फिल्मी दुनिया का सितारा बना दिया और फिर ये सितारा चमकता ही गया। खय्यम ने हिंदी सिनेमा को कई बेहतरीन फिल्मे दी। जिनमें से उमराव जान उनकी सबसे सफल फिल्म बनी।
उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में करीब 40 साल काम किया और 35 फिल्मों में संगीत दिया। इस दौरान उन्होंने कई बेहतरीन गानों से लोगों के दिल को छूया। कभी कभी मेरे दिल में’ गाना आज ही लाखों लोगों के लफ्जों में शुमार है। तो वहीं ‘इन आंखों की मस्ती के’ गाने को आज भी काफी लोग पसंद करते हैं।
खय्याम की लव स्टोरी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। वो अपनी पत्नी जगजीत कौर से पहली बार दादर रेलवे स्टेशन के ओवरब्रिज पर मिले थे। चंडीगढ़ के रसूखदार परिवार में जन्मी जगजीत प्लेबैक सिंगर बनने का सपना लिए मुंबई आई थीं। एक शाम जब वो दादर रेलवे स्टेशन के ओवरब्रिज से गुजर रही थीं,तो उन्हें महसूस हुआ कि कोई उनका पीछा कर रहा है। जगजीत सतर्क हो गईं और अलार्म बजाने वाली थीं, कि वह शख्स उनके करीब पहुंच गया और अपना परिचय म्यूजिक कंपोजर खय्याम के रूप में दिया।1954 में हुई इसी मुलाकात के बाद दोनों की दोस्ती हुई। जो जल्दी ही दोनो सात फेरो की डोर में बंध गए।
आपको बता दें कि मशहूर संगीतकार खय्याम को तीन बार फिल्मफेयर सम्मान से सम्मानित किया गया। सबसे पहले 1977 में उनको कभी कभी के लिए फिल्मफेयर सम्मान से नवाजा गया। फिर 1982 में उमराव जान के लिए और 2010 में फिल्मफेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा गया। तो वहीं 2011 में उन्हें पद्म भूषण जैसे रत्न से भी सम्मानित किया गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लता मंगेशकर, फिल्मकार मुजफ्फर अली समेत कई लोगों ने उनके निधन पर शोक जताया और इसे एक संगीतमय युग का अंत बताया।
प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट करते हुए कहा किया कि सुप्रसिद्ध संगीतकार खय्याम साहब के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। उन्होंने अपनी यादगार धुनों से अनगिनत गीतों को अमर बना दिया। उनके अप्रतिम योगदान के लिए फिल्म और कला जगत हमेशा उनका ऋणी रहेगा। दुख की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके चाहने वालों के साथ हैं।
लता मंगेशकर ने भी खय्याम के निधन पर ट्विटर पर दुख जताया उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘महान संगीतकार और कोमल हृदय वाले खय्याम साहब अब हमारे बीच नहीं हैं। यह खबर सुनकर मैं बेहद दुखी हूं। मैं इन्हें शब्दों में बयां नहीं कर सकती हूं. खय्याम साहब के जाने के साथ संगीत के एक युग का अंत हो गया. मैं उन्हें दिल से श्रद्धांजलि देती हूं।
भारतीय सिनेमा ने अपना एक अनमोल सितारा खो दिया।संगीत में उम्दा सुरों की महफिल सजाकर संगीत के कद्रदानों का दिल जीतने वाले खय्याम ने दुनिया को अलविदा कह दिया। खय्याम की दिल छू लेने वाली बात ये थी, कि दो साल पहले 2016 में ही उन्होंने अपने 90वें जन्मदिन पर 10 करोड़ रुपए की संपत्ति दान की थी। उनके निधन से पूरी दुनिया में शोक की लहर है।
न्यूज़ नशा से कंचन मौर्य कि रिपोर्ट