वयस्कों से ज्यादा कठिन है बच्चों का वैक्सीन ट्रायल, विशेषज्ञों ने बताया क्या आती है दिक्कत
नई दिल्ली. बच्चों में वैक्सीन (Children Vaccine) जांच की प्रक्रिया काफी लंबी और जटिल है. बच्चों में वैक्सीन ट्रायल (Vaccine Trial) के दौरान माता-पिता को ये बात समझानी पड़ती है कि उनके बच्चे का कई बार ब्लड सैंपल (Blood Sample) लिया जाएगा और उन्हें कई जटिल प्रक्रियाओं से गुजराना होगा. ये बात सुनने में जितनी आसान लग रही है, डॉक्टरों के लिए उतनी ही मुश्किल साबित होती है. कई बार जब डॉक्टर बच्चों के माता-पिता को वैक्सीन ट्रायल की प्रक्रिया के बारे में समझाते हैं तो उन्हें बुरा भला कहा जाता है. डाक्टरों को ये बात समझानी पड़ती है कि अगर ट्रायल के दौरान किसी बच्चे की मौत हो जाती है तो बच्चे का मेडिकल इंश्योरेंस उन्हें दिया जाएगा.
हालांकि Covid-19 कोरोना वैक्सीन का बच्चों पर किया जाने वाला ट्रायल डॉक्टरों के लिए काफी आसान रहा. इसका सबसे बड़ा कारण ये था कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मचे कोहराम के बाद से लोग कोरोना की तीसरी लहर को लेकर काफी डरे हुए थे. तीसरी लहर को लेकर विशेषज्ञों ने पहले ही चेतावनी जारी कर दी थी कि कोरोना की तीसरी लहर में बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे. बता दें कि बच्चों की कोरोना वैक्सीन को लेकर 6 जगह पर ट्रायल चल रहा है. इसमें भारत बायोटेक की बच्चों की कोवैक्सीन, बायोलॉजिकल ई की कॉर्बेवैक्स और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोवोवैक्स की जांच चल रही है. इन सभी कंपनियों के विशेषज्ञ ये मानते हैं कि बच्चों की वैक्सीन ट्रायल, वयस्कों के वैक्सीन ट्रायल की तुलना में काफी कठिन है.
ओडिशा स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के विशेषज्ञ डॉक्टर वेंकट राव ने बताया कि बच्चों की वैक्सीन ट्रायल में सबसे ज्यादा दिक्कत बच्चे के परिवार को समझाने में आती है. कभी मां इसके लिए राजी होती है तो कभी पिता और अगर कभी दोनों राजी हो जाते हैं तो उनके दादा-दादी राजी नहीं होते. राव ने कहा, कि पांच साल पहले उनकी टीम को हेक्सावैलेंट वैक्सीन के परीक्षण के लिए 108 बच्चों को भर्ती करना था, लेकिन हमने केवल 9 की भर्ती की. ट्रायल के लिहाज से ये नंबर भी अच्छा था.
बच्चों के लिए परीक्षण के दौरान सबसे बड़ी दिक्कत 2 से 10 साल के बच्चों में ब्लड सैंपल लेने में आती है. कोवैक्सीन और कॉर्बेवैक्स दोनों के लिए बच्चों पर परीक्षण करने वाले ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के डॉक्टर अनिल पांडे ने बताया कि ट्रायल के दौरान बच्चों को बार-बार इंजेक्शन लगाया जाता है, जिससे पता लगाया जा सके कि वैक्सीन काम कर रही है, बच्चों को स्वास्थ्य से जुड़ी कोई दिक्कत नहीं है. इस प्रक्रिया के दौरान बच्चे कई बार रोते हैं, जिसे देखकर उनके माता-पिता असहज हो जाते हैं.
सेंटर फॉर कम्युनिटी मेडिसिन, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के प्रोफेसर डॉ. संजय राय, जो वयस्कों और बच्चों पर कोवैक्सीन का परीक्षण कर रहे हैं ने बताया कि बच्चों के ट्रायल से इनकार करने की दर काफी अधिक है. उन्होंने बताया कि जैसे ही माता-पिता को ट्रायल के दौरान बच्चों की मौत से जुड़ी जानकारी दी जाती है वैसे ही आधे से ज्यदा माता-पिता ट्रायल से इनकार कर देते हैं. उन्होंने कहा कि जैसे ही बच्चों के ट्रायल से जुड़ी जानकारी उनके माता-पिता को दी जाती है वैसे ही वह कमरे से बाहर निकल जाते हैं और कई बार वह डॉक्टरों को गालियां भी देते हैं.
तीसरी लहर की दहशत ने कोविड-19 वैक्सीन की जांच को बनाया आसान
कोरोना को लेकर तीसरी लहर की चेतावनी और बच्चों पर पड़ने वाले असर को लेकर माता-पिता डरे हुए थे और अपने बच्चों को कोरोना की तीसरी लहर से बचाना चाहते थे. दूसरी लहर के दौरान जिस तरह का कोहराम मचा था उसे देखने के बाद माता-पिता तीसरी लहर से बचना चाहते थे. यही कारण है कि जैसे ही बच्चों पर कोरोना वैक्सीन के ट्रायल की बात कही गई वैसे ही काफी माता-पिता इसके लिए तैयार हो गए. डॉ. राय ने बताया कि किसी भी अन्य परीक्षण की तुलना में उनकी साइट पर कोरोना वैक्सीन के परीक्षण के लिए 10 गुना बच्चों ने आवेदन किया था. कोवैक्सीन के पहले चरण के ट्रायल के लिए हमें 100 वॉलेंटियर्स की आवश्यकता थी, लेकिन हमें 4 दिनों में 4500 आवेदन प्राप्त हुए. विशेषज्ञों ने बताया कि Covid-19 टीकों के परीक्षण में भाग लेने के लिए भीड़ थी.
अंतर केवल इतना था कि कोवैक्सीन के परीक्षण के लिए आने वाले वयस्क उत्साहित थे, लेकिन बच्चों के परीक्षण में माता-पिता तीसरी लहर के आतंक के कारण अधिक घबराए हुए थे. डॉ. पांडे ने कहा कि ज्यादातर मामलों में माता-पिता ने कोवैक्सीन डोज भी लिए थे और अपने स्वयं के अनुभव के आधार पर, वे अपने बच्चों के लिए भी ऐसा ही चाहते थे.