बच्चों की वैक्सीन में क्यों हो रही देरी? अभी वैक्सीनेशन शुरू हुआ तो भी एक साल में 25% बच्चे ही होंगे वैक्सीनेट
देश में बच्चों के वैक्सीनेशन का इंतजार बढ़ता जा रहा है। कैडिला की जाइकोव-डी बच्चों के लिए पहली वैक्सीन थी जिसे अगस्त में मंजूरी मिली। ये अब तक वो ना तो सरकारी और ना ही प्राइवेट तौर पर लगनी शुरू हुई है। वहीं, कोवैक्सिन को भी सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी (SEC) ने इमरजेंसी अप्रूवल दिया है लेकिन ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) से अप्रूवल मिलना अभी बाकी है।
समझते हैं, कौन सी वैक्सीन किस उम्र के बच्चों को दी जाएगी? अप्रूवल मिलने के 2 महीने बाद भी जाइकोव-डी मार्केट में क्यों नहीं आ सकी है? दोनों वैक्सीन की प्रोडक्शन कैपेसिटी कितनी है? दिसंबर तक दोनों मार्केट में आ जाएं तो प्रोडक्शन कैपेसिटी की रफ्तार को देखते हुए अगले साल तक कितने बच्चे वैक्सीनेट हो सकते हैं?…
बच्चों के लिए किन वैक्सीन को मिली है मंजूरी?
सरकार ने जायकोव-डी को बच्चों के वैक्सीनेशन लिए अप्रूव किया है। जाइकोव-डी को जाइडस कैडिला ने बनाया है। DGCI ने अगस्त में कैडिला को अप्रूवल दिया था। वैक्सीन को 12 साल से ज्यादा उम्र के सभी लोगों के लिए इमरजेंसी यूज अथॉराइजेशन (EUI) की मंजूरी मिली है।अक्टूबर में नेशनल ड्रग्स रेगुलेटर की सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी (SEC) ने कोवैक्सिन को भी बच्चों के लिए इमरजेंसी यूज की सिफारिश की। इस वैक्सीन को अब तक DGCI से अप्रूवल मिलना बाकी है। इसे 2-18 साल के बच्चों को लगाया जा सकेगा।
जाइकोव-डी को अगस्त में अप्रूवल मिला, अब तक मार्केट में क्यों नहीं आ सकी?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, कंपनी वैक्सीन की कीमत 1900 रुपए रखना चाहती है। वहीं, सरकार वैक्सीन की कीमत को कम करवाना चाह रही है। इसके लिए सरकार और कंपनी के बीच बातचीत भी चल रही थी और अब दोनों के बीच कीमत को लेकर सहमति बन गई है।तीसरे फेज के ट्रायल में वैक्सीन की एफिकेसी 66% थी। पहले के 2 ट्रायल में भी किसी तरह का कोई साइड इफेक्ट देखने को नहीं मिला था, लेकिन कंपनी ने अभी तक तीसरे फेज ट्रायल्स डेटा को रिलीज नहीं किया है। वैक्सीन आने में हो रही देरी की एक वजह ये भी है।वैक्सीन की उपलब्धता भी एक मसला है। फिलहाल कंपनी हर महीने वैक्सीन के करीब 1 करोड़ डोज उपलब्ध कराने की बात कह रही है। ऐसे में शुरुआत में डिमांड के मुताबिक सप्लाई नहीं होने का भी चैलेंज दिखाई देता है।
जाइकोव-डी की प्रोडक्शन कैपेसिटी कितनी है?
जाइडस कैडिला एक साल में 24 करोड़ डोज के उत्पादन की बात कह रही है। कंपनी पहले महीने में करीब एक करोड़ डोज बनाएगी। इसके बाद अगले महीने से प्रोडक्शन को डबल कर दिया जाएगा। इसके साथ ही प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए दूसरे मैन्युफैक्चरर्स से भी बात चल रही है।
कोवैक्सिन का क्या हाल है?
वैक्सीनेशन एक्सपर्ट पैनल ने कोवैक्सिन को भी बच्चों को लगाने के लिए रिकमंड किया है। हालांकि, DCGI अभी कोवैक्सिन के बच्चों पर इफेक्टिवनेस डेटा को एनालाइज कर रहा है। इसके बाद ही कोवैक्सिन को इमरजेंसी यूज ऑथराइजेशन मिलेगा।
कोवैक्सिन का प्रोडक्शन भी धीमा
कोवैक्सिन ने अब तक जितने प्रोडक्शन का वादा किया वो उसे पूरा नहीं कर पाई है। सितंबर तक कोवैक्सिन हर महीने करीब 3.5 करोड़ डोज का प्रोडक्शन कर रही है। हालांकि, कंपनी ने कहा है कि अक्टूबर से वो हर महीने 5.5 करोड़ डोज का प्रोडक्शन करेगी।
मई में कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में एक एफिडेविट में कहा था कि वो अगस्त से सितंबर के दौरान हर महीन करीब 10 करोड़ डोज का प्रोडक्शन कर सकती है। बाद में इस आंकड़े को कम कर 8 करोड़ कर दिया गया। इसके बाद भी कंपनी प्रोडक्शन का आंकड़ा पूरा नहीं कर पा रही है। कहा जा रहा है कि वैक्सीन के रॉ मटेरियल की शॉर्टेज और फिलिंग कैपेसिटी की कमी की वजह से प्रोडक्शन धीमा हो रहा है।
ऐसे में बच्चों की वैक्सीन का अप्रूवल मिलने के बाद भी कोवैक्सिन के लिए उसका प्रोडक्शन एक बड़ा चैलेंज बन सकता है।
तो क्या बच्चों को लगने वाली कोवैक्सिन बड़ों वाली से अलग होगी?
बच्चों को लगने वाली कोवैक्सिन वही होगी जो बड़ों को लग रही है। वैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक के सूत्र बताते हैं कंपनी को मई में ट्रायल की मंजूरी मिली। इसके बाद उन्होंने बड़ों को लग रही कोवैक्सिन को 525 बच्चों पर ट्रायल किया। 28 दिन के अंतर पर इसके दोनों डोज दिए गए। ट्रायल का अंतरिम डेटा अक्टूबर में सबमिट किया गया। ट्रायल में ये वैक्सीन बच्चों पर भी इफेक्टिव और सेफ पाई गई।
तो फिर दिसंबर 2022 तक कितने बच्चे वैक्सीनेट हो पाएंगे?
अगर तीन डोज वाली जाइकोव-डी अपने कहे अनुसार, आने वाले एक साल में 24 करोड़ डोज का प्रोडक्शन करती हैं, तो इससे 8 करोड़ बच्चों को ही पूरी तरह वैक्सीनेट किया जा सकेगा। इसी तरह फिलहाल कोवैक्सिन पिछले 9 महीने में 11.88 करोड़ डोज का प्रोडक्शन कर पाई है। अगर इसी रफ्तार से कोवैक्सिन का प्रोडक्शन होता रहा तो अगले 1 साल में करीब 16 करोड़ डोज का प्रोडक्शन हो सकता है। अगर माना जाए कि ये सभी 16 करोड़ डोज बच्चों को दिए जाएंगे तो इससे 8 करोड़ बच्चे ही वैक्सीनेट हो पाएंगे। यानी, अगर जल्द ही से बच्चों का वैक्सीनेशन शुरू हो जाता है तो एक साल में दोनों वैक्सीन के कुल डोज मिलाकर भी 16 करोड़ बच्चे ही पूरी तरह वैक्सीनेट हो पाएंगे।
जबकि, देश की कुल आबादी का 40% आबादी 18 साल से कम उम्र के बच्चों की हैं। यानी, करीब 55 से 60 करोड़ की आबादी में से केवल 25 से 30% आबादी को वैक्सीन लग सकेगी।
तो कब तक शुरू हो सकता है बच्चों का वैक्सीनेशन?
माना जा रहा है कि नवंबर या दिसंबर में बच्चों का वैक्सीनेशन शुरू हो सकता है। सरकार चाह रही है कि कमोर्बिडिटी वाले बच्चों को पहले वैक्सीनेट किया जाए, लेकिन किन बीमारियों को इस श्रेणी में जोड़ा जाए और इसके लिए किन डॉक्यूमेंट्स की जरूरत होगी इस पर अभी विचार चल रहा है। अप्रैल में जब भारत ने गंभीर बीमारी वाले लोगों को वैक्सीनेशन की शुरुआत की थी, तब डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन/मेडिकल रिपोर्ट्स के आधार पर वैक्सीन लगाई गई थी।
कितनी सेफ है बच्चों की वैक्सीन
जाइकोव-डी
कंपनी ने कहा है कि उसने 50 सेंटर पर 28 हजार से भी ज्यादा कैंडिडेट पर वैक्सीन का ट्रायल किया है। कंपनी का दावा है कि ये सबसे बड़ा वैक्सीन ट्रायल है। जिन 28 हजार कैंडिडेट को ट्रायल में शामिल किया गया था, उनमें से 1 हजार की उम्र 12 से 18 साल के बीच की थी। कंपनी ने कहा है कि ये ट्रायल इस एज ग्रुप में भी पूरी तरह सफल रहे हैं।
कोवैक्सिन
भारत बायोटेक ने बच्चों पर फेज-2 और 3 के ट्रायल सितंबर में ही पूरे किए हैं। AIIMS के प्रोफेसर डॉक्टर संजय राय कहते हैं कि कोवैक्सिन बच्चों पर भी उतनी ही इफेक्टिव है जितनी बड़ों पर है। कोवैक्सिन के 2-6, 6-12 और 12-18 साल तक के बच्चों पर अलग-अलग ट्रायल किए गए हैं।
क्या कहीं बच्चों में वैक्सीन की वजह से गंभीर साइड इफेक्ट देखने को मिले?
नहीं। जितने भी देश बच्चों को वैक्सीनेट कर रहे हैं, उनमें से कहीं भी बच्चों में वैक्सीनेशन के गंभीर साइड इफेक्ट देखने को नहीं मिले हैं। बच्चों में भी वैक्सीनेशन के बाद बड़ों की ही तरह ही साइड इफेक्ट देखने को मिले हैं, जिनमें बुखार, सर दर्द, बदन दर्द, ठंड शामिल हैं।
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