उत्तराखंड: नए जिलों के गठन को लेकर प्रदेश में तेज हुई सियासत

पिथौरागढ़.  उत्तराखंड विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Assembly Elections) का समय नजदीक आने के साथ ही अब डीडीहाट (Didihat) को जिला बनाने की मांग तेज होने लगी है. विपक्षी दल जहां इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं  कैबिनेट मंत्री और 5 बार के एमएलए बिशन सिंह चुफाल के लिए ये मुद्दा गले की फांस से कम नहीं है. 1962 से ही पिथौरागढ़ (Pithoragarh) से अलग डीडीहाट जिला बनाने की मांग उठती रही है. लगातार उठती मांग को देखते हुए 90 के दशक में तत्कालीन मुलायम सरकार ने जिले को लेकर दीक्षित आयोग बनाया था. यही नहीं निशंक सरकार में 15 अगस्त 2011 को डीडीहाट सहित रानीखेत, यमनोत्री और कोटद्वार को भी जिला बनाने की घोषणा हुई थी.

चुनावी साल में हुई इस घोषणा का शासनादेश भी जारी कर दिया गया था. लेकिन गजट नोटिफिकेशन नहीं हुआ है. नतीजा ये रहा कि जीओ जारी होने के 10 साल बाद भी चारों जिले अस्तित्व में नहीं आ पाए. ऐसे में एक फिर चुनावी साल में ये मुद्दा गरमाने लगा है. डीडीहाट से कांग्रेसी नेता और पूर्व दर्जाधारी मंत्री रमेश कापड़ी का आरोप है कि क्षेत्रीय विधायक बिशन सिंह चुफाल जिले के मुद्दे पर लगातार चुनाव तो जीतते आए हैं. लेकिन जिला अभी तक नहीं बना पाए. साथ ही कापड़ी का कहना है कि बीजेपी नेताओं ने इस मुद्दे पर जनता के साथ धोखा किया है.

जिले के मुद्दे पर कांग्रेस और बीजेपी दोनों पर सवाल
डीडीहाट को जिला बनाने के सवाल पर बीजेपी ही नहीं बल्कि कांग्रेस के दामन पर भी दाग है. 2005 में 36 दिनों तक चले अनशन के बाद तब के सीएम एनडी तिवारी ने जिला बनाने का ऐलान किया था. लेकिन ये ऐलान भी हवाहवाई रहा. डीडीहाट से बिशन सिंह चुफाल लगातार पांचवीं बार विधायक हैं. ऐसे में विपक्षी जिला नहीं बनने पर उन्हें ही कठघरे में खड़ा करने की जुगत में रहते हैं. कैबिनेट मंत्री बिशन सिंह चुफाल का कहना है कि चारों जिलों के गठन को लेकर सरकार गंभीर है. इंतजार है तो बस जिला पुर्नगठन आयोग की रिपोर्ट का. असल में उत्तराखंड में जिलों का गठन इतना आसान भी नहीं है. नए जिलों का जनभावनाओं के अनुरूप परिसीमन करना सबसे बड़ी चुनौती है. बावजूद इसके इतना तय है कि डीडीहाट के साथ ही रानीखेत जिले का मुद्दा भी विधानसभा चुनावों तक सियासत के केन्द्र में रहेगा.

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