उत्तराखंड: सरकारी नौकरी में बंपर वैकेंसी, इनके लिए कोई जगह नहीं
देहरादून. उत्तराखंड (Uttarakhand) में इन दिनों बंपर वैकेंसी (Bumper Vacancy) निकली हैं, लेकिन इन भर्तियों में ट्रांसजेंडर्स अप्लाई नहीं कर सकते हैं. ऐसे में थर्ड जेन्डर को अब लगता है कि उनकी स्वीकार्यता की बातें बेमानी हैं. भले ही थर्ड जेन्डर को अब समाज स्वीकार कर रहा है, लेकिन प्रदेश के ट्रांसजेन्डर अब भी अपनी एक्सेप्टेन्स के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. उत्तराखंड लोक सेवा आयोग समेत दून विवि ने कई पोस्ट पर वैकेंसी निकाली हैं, लेकिन इन भर्तियों में थर्ड जेन्डर का कोई विकल्प नहीं निकला है. ऐसे में एनजीओ से जुड़े देहरादून और हरिद्वार के 400 से ज्यादा ट्रांसजेंडर (Transgender) मानते हैं कि उनकी स्वीकार्यता अब भी सिर्फ जुबानी है. ट्रांसजेन्डर काव्या सिंह कहती हैं कि सरकार ने उन जैसे जेंडर को निकली भर्तियों में जगह न देकर दरकिनार कर दिया है.
वहीं, समाज कल्याण विभाग से पहला ट्रांसजेन्डर का सर्टिफिकेट पा चुकी अदिति शर्मा बताती हैं कि उनकों सर्टिफिकेट मिलने के बावजूद उनका आधार कार्ड से लेकर बैंक एकांउट तक नहीं बन पा रहा है. जबकि पहाड़ से ताल्लुक रखने वाली अंशिका बताती हैं कि उनको समाज आज भी ट्रांसजेन्डर के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रहा है. उन्हें डिस्क्रिमिनेशन का सामना करना पड़ता है. घर परिवार और समाज में अभी तक लोग ट्रांसजेंडर्स को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं. इसलिए वह अपने जीवन को अब भी संघर्ष में ही मान कर चल रहे हैं. अब भले ही कोर्ट से लेकर केन्द्र सरकार तक थर्ड जेन्डर को समाज का अंग मान चुका है, लेकिन सरकारी विभागों में अब भी इनकी स्वीकार्यता आयोगों द्वारा निकली भर्तीयां बयां कर रही है कि वे कहां पर हैं.
दिव्यांगजनों द्वारा ही इस्तेमाल किए जाते रहे हैं
वहीं, कुछ देर पहले खबर सामने आई थी कि राजधानी दिल्ली के मेट्रो स्टेशनों पर अब ट्रांसजेंडर्स को अलग से शौचालयों की सुविधा मिलेगी. अभी तक इन स्टेशनों पर महिला और पुरुष शौचालयों के अलावा दिव्यांगजनों के लिए टॉयलेट की सुविधा थी. ऐसे में ट्रांसजेंडर्स को शौचालयों के इस्तेमाल के लिए परेशान होना पड़ता था. दिल्ली मेट्रो में यात्रा करने वाले ट्रांसजेंडर्स यात्री बिना किसी दिक्कत स्टेशनों पर शौचालयों का इस्तेमाल कर सकें, इसके लिए डीएमआरसी (DMRC) ने स्टेशनों पर उनके इस्तेमाल के लिए अलग से शौचालयों का प्रावधान किया है. ये वही शौचालय हैं जो अभी तक केवल दिव्यांगजनों द्वारा ही इस्तेमाल किए जाते रहे हैं.