UP – योगी के राज में सबसे ज्यादा नवजात शिशुओं की मौत , क्या है वजह ?
UP में झाँसी की घटना ने लोगो की आँखों को पत्थर कर दिया है। इतना दर्द और दर्दनाक तस्वीरें सोशल मीडिया पर रातोंरात ऐसे फैली जैसे कोई देश में युद्ध हुआ हो
UP में नवजात बच्चों की मौत: स्वास्थ्य सेवाओं पर उठे गंभीर सवाल
UP में झाँसी की घटना ने लोगो की आँखों को पत्थर कर दिया है। इतना दर्द और दर्दनाक तस्वीरें सोशल मीडिया पर रातोंरात ऐसे फैली जैसे कोई देश में युद्ध हुआ हो और लोग डर से सहम गए हो। लेकिन क्या आपको पता है की उत्तर प्रदेश में ऐसी नवजात कितनी बार मौत में गए।
उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं की खस्ताहाल स्थिति पिछले कुछ वर्षों में बार-बार सामने आई है। उत्तर प्रदेश गोरखपुर, फर्रुखाबाद, झांसी, कानपुर, मैनपुरी और बाराबंकी की घटनाएं यह साबित करती हैं कि राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में सुधार की सख्त जरूरत है।
UP गोरखपुर ऑक्सीजन त्रासदी (2017)
गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 60 से अधिक बच्चों की मौत ऑक्सीजन सप्लाई रुकने के कारण हुई। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया और चिकित्सा सुविधाओं की खामियां उजागर कीं। ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ता को बकाया भुगतान न होने के कारण यह त्रासदी हुई, जिससे सरकारी तंत्र की लापरवाही साफ दिखी।
फर्रुखाबाद में 49 बच्चों की मौत (2017)
फर्रुखाबाद के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में एक महीने में 49 बच्चों की मौत दर्ज की गई। डॉक्टरों ने इसका कारण कुपोषण और ऑक्सीजन की कमी बताया। यह घटना भी गोरखपुर त्रासदी की पुनरावृत्ति जैसी थी, जिसमें सरकारी अस्पतालों की बदहाली उजागर हुई।
कानपुर: 48 घंटे में 9 नवजातों की मौत
कानपुर के हैलट अस्पताल में 2023 में 48 घंटों के भीतर 9 नवजात बच्चों की मौत ने स्वास्थ्य सेवाओं की गंभीर स्थिति पर सवाल खड़े किए। परिजनों ने आरोप लगाया कि इलाज में देरी और स्टाफ की कमी मौतों का कारण बनी। यह घटना प्रशासनिक लापरवाही का एक और उदाहरण है।
झांसी में 10 नवजातों की मौत (2024)
झांसी के एक सरकारी अस्पताल में एक ही दिन में 10 नवजातों की मौत हुई। अस्पताल प्रशासन ने इसे गंभीर बीमारियों का परिणाम बताया, लेकिन जांच में वेंटिलेटर और अन्य उपकरणों की कमी की बात सामने आई। यह घटना स्पष्ट करती है कि स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने की जरूरत है।
मैनपुरी मामला (2024)
मैनपुरी में एक नर्स ने कथित तौर पर 5100 रुपये की रिश्वत न मिलने पर एक नवजात को समय पर इलाज नहीं दिया। इससे बच्चे की मौत हो गई। यह घटना मानवता को शर्मसार करती है और अस्पताल स्टाफ की संवेदनहीनता को दिखाती है।
बाराबंकी: जंगलों में नवजातों का फेंका जाना
बाराबंकी में कई बार नवजात बच्चों के शव जंगलों में पाए गए हैं। ये घटनाएं न केवल समाज की संवेदनहीनता बल्कि प्रशासन की उदासीनता को भी उजागर करती हैं।
आंकड़े: एक चिंताजनक स्थिति
• नवजात मृत्यु दर (NMR): उत्तर प्रदेश में नवजात मृत्यु दर 32 प्रति 1,000 जीवित जन्म है, जो राष्ट्रीय औसत (23 प्रति 1,000) से काफी अधिक है।
• पांच साल से कम उम्र की मृत्यु दर (U5MR): यूपी में यह दर 64 प्रति 1,000 है, जबकि राष्ट्रीय औसत 35 प्रति 1,000 है।
मुख्य कारण
1. अस्पतालों में सुविधाओं की कमी: ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और आवश्यक उपकरणों की अनुपलब्धता।
2. स्टाफ की कमी: डॉक्टर और नर्सों की पर्याप्त संख्या का अभाव।
3. प्रबंधन की लापरवाही: समय पर निर्णय और संसाधनों का सही उपयोग न होना।
4. गरीबों की अनदेखी: सरकारी योजनाओं का लाभ आम जनता तक नहीं पहुंचना।
सुझाव और सुधार की दिशा में कदम
• अस्पतालों में बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था।
• स्वास्थ्य बजट में वृद्धि और कुशल प्रबंधन।
• जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई।
• अस्पताल स्टाफ की संवेदनशीलता और प्रशिक्षण सुनिश्चित करना।
Mallikaarjun से लेकर Akhilesh तक, योगी पर साधा निशाना कहा – “गोरखपुर ना दोहराए”
इन घटनाओं ने UP की स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को उजागर किया है। यह वक्त है कि राज्य सरकार अपनी प्राथमिकताएं बदले और स्वास्थ्य क्षेत्र में ठोस कदम उठाए ताकि भविष्य में इस तरह की त्रासदियों को रोका जा सके।