UP में पहली बार महाकुंभ का आयोजन हो रहा हैं ? इस तस्वीर को देखिए और थोड़ा पीछे चलते हैं : आज के समय का राजनीतिक खेल !
UP महाकुंभ जैसे पवित्र आयोजन को राजनीतिक प्रचार का साधन बनाने के बजाय इसे एक आध्यात्मिक पर्व के रूप में देखना चाहिए।
UP ; महाकुंभ भारत की सनातन परंपरा और संस्कृति का एक भव्य उत्सव है, जो हर बार लाखों-करोड़ों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। हालांकि, हाल के दिनों में महाकुंभ के आयोजन को लेकर राजनीति भी गरमा गई है। वर्तमान सरकार की ओर से प्रचारित किया जा रहा है कि महाकुंभ का आयोजन उनकी सरकार में पहली बार इतने बड़े स्तर पर हो रहा है, लेकिन अगर इतिहास पर नजर डालें तो यह दावा सच्चाई से परे है।
UP 2007 में मुलायम सिंह यादव सरकार द्वारा शानदार अर्ध महाकुंभ आयोजन
2007 में जब UP में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे, तब अर्ध महाकुंभ का आयोजन बड़े ही भव्य और शानदार तरीके से किया गया था। उस समय प्रदेश सरकार ने पूरी तैयारियों के साथ इस आयोजन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। श्रद्धालुओं के लिए विशेष सुविधाएं, साफ-सफाई, आवास की व्यवस्था और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे।
मुलायम सिंह यादव ने खुद इस मौके पर संगम में डुबकी लगाई थी, जो यह दर्शाता है कि उनकी सरकार ने इस आयोजन को कितना महत्व दिया।
इतिहास में दर्ज है हर सरकार का योगदान
यह पहली बार नहीं है कि महाकुंभ का आयोजन भव्य स्तर पर हुआ हो। हर सरकार ने अपने समय में महाकुंभ को बेहतर तरीके से आयोजित करने का प्रयास किया है।
- 1989 में नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में आयोजित महाकुंभ भी बेहद सफल रहा था।
- 1995 में कल्याण सिंह की सरकार ने भी महाकुंभ के आयोजन को लेकर महत्वपूर्ण कार्य किए थे।
- 2001 में राजनाथ सिंह के कार्यकाल में महाकुंभ का आयोजन भव्यता के साथ हुआ।
इन सभी आयोजनों में हर सरकार ने अपनी भूमिका निभाई और श्रद्धालुओं के लिए बेहतर सुविधाएं देने का प्रयास किया।
राजनीतिक लाभ के लिए प्रचार
आज के समय में हर बड़ा आयोजन राजनीति का केंद्र बन जाता है। महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजन को भी राजनीतिक लाभ लेने के लिए उपयोग किया जा रहा है। ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जैसे कि महाकुंभ का इतने बड़े स्तर पर पहली बार आयोजन हो रहा है, जबकि सच्चाई यह है कि हर सरकार ने अपने समय में इसे भव्यता से आयोजित किया है।
कुछ लोग यह भूल जाते हैं कि महाकुंभ कोई नया आयोजन नहीं है, बल्कि यह सदियों पुरानी परंपरा है जिसे हर बार बेहतर बनाने की कोशिश की जाती रही है।
श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं हैं असली प्राथमिकता
UP महाकुंभ के आयोजन का असली उद्देश्य श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक अनुभव कराना और उनकी आस्था का सम्मान करना है।
चाहे कोई भी सरकार हो, उसकी प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि श्रद्धालुओं को बेहतर से बेहतर सुविधाएं मिलें। साफ-सफाई, सुरक्षा, चिकित्सा, परिवहन और आवास जैसी बुनियादी जरूरतों का ध्यान रखना हर सरकार की जिम्मेदारी होती है।
Bangladesh ने किया हिन्दू का समर्थन कहा – 1971 के इतिहास को दोहराने नहीं देंगे , आखिर क्या हुआ था 1971 में?
इतिहास से सबक लेना जरूरी
UP महाकुंभ जैसे पवित्र आयोजन को राजनीतिक प्रचार का साधन बनाने के बजाय इसे एक आध्यात्मिक पर्व के रूप में देखना चाहिए।
यह सच है कि वर्तमान सरकार ने महाकुंभ के आयोजन को लेकर बड़े कदम उठाए हैं, लेकिन यह कहना गलत होगा कि इससे पहले कभी भव्य आयोजन नहीं हुआ।
मुलायम सिंह यादव के समय में भी महाकुंभ का आयोजन भव्यता से हुआ था और तब की सरकार ने भी अपनी जिम्मेदारी निभाई थी।
अतः, किसी भी धार्मिक आयोजन को राजनीति से ऊपर रखकर देखना चाहिए और इतिहास में किए गए कार्यों को भी सम्मान देना चाहिए।