UP Election: अमित शाह के रणनीति पर बीजेपी, इस प्लान के जरिए मिशन 2022 की तैयारी
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लखनऊ. योगी मंत्रिमंडल विस्तार (Yogi Cabinet Expansion) और चार विधान परिषद सदस्यों के नामों और जातियों के सामने आने के बाद ये साफ हो गया है कि बीजेपी (BJP) अमित शाह के 2017 की रणनीति की राह पर है. केंद्र का विस्तार हुआ या यूपी सरकार का फार्मूला पुराना है. उसी फार्मूले के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी किसान फसल बीमा योजना की शुरुआत बरेली से की गई तो उज्ज्वला योजना की लॉचिंन्ग के लिए पूर्वांचल के बलिया जिले को चुना गया. राष्ट्रीय कार्यकारिणी के लिए भी इलाहाबाद का चयन किया गया था जो बीजेपी की राजनीति के लिहाज से अत्यंत ही पिछड़ा क्षेत्र था. एक बार फिर बीजेपी की रणनीति अगले तीन महीने के भीतर यूपी में भगवा माहौल बनाने की है.
बीजेपी को पता है कि माहौल बनाना और जमीनी स्तर पर उसे वोटों में तब्दील करा पाना आसान नहीं होता है. इसीलिए पार्टी ने खुद को मुकाबले में आगे रखने और चुनाव के बाद के समीकरण को देखते हुए कारगर रणनीति पर काम तेज कर दिया है. बीजेपी उत्तर प्रदेश को छह जोन के लिए अलग- अलग चुनाव और संगठन प्रभारी की देखरेख में चुनावी रणनीति पर काम कर रही है. बीजेपी की रणनीति त्रिस्तरीय है. एक तरफ पार्टी पूरी तरह से जाति समीकरण को साध रही है तो पश्चिमी यूपी में ध्रुवीकरण की राजनीति भी चल रही है. तो तीसरे तरफ विकास का मुद्दा साथ साथ चल रहा है. बीजेपी जनता की उस नब्ज को थाह रही है और मैसेज देने की कोशिश है कि सपा के कार्यकाल मे केवल मुसलमानों और यादवों की सुनवाई होती थी. बसपा से एक समान दूरी रखी जा रही है, वहीं कांग्रेस को निशाना तो बनाया जा रहा है लेकिन टारगेट पर सपा है.
गठबंधन का बड़ा गुलदस्ता
बीजेपी ने सामाजिक समीकरण और गठबंधन का बड़ा गुलदस्ता बनाने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है. निषाद पार्टी और अपनादल से गठबंधन इसका नमूना है. सोशल इंजीनियरिंग का गुलदस्ता खुद शाह ने तैयार किया है. पिछले चुनाव में लगभग 20 फीसदी मुसलमानों को छोड़कर को छोड़कर सवर्ण, पिछड़ा और दलितों के 80 फीसदी वोट को टारगेट किया था लेकिन इस बार बीजेपी ने सामाजिक समीकरण में भी माइक्रोमैनेजमेंट किया है. पार्टी 20 फीसदी मुस्लिम वोट के अलावा करीब 10 फीसदी यादव और 10-11 फीसदी जाटव वोटों को छोड़कर दलित-पिछड़ों के बाकी वोटों को अपने पक्ष में एकजुट करने में जुट गई है.
BJP की कास्ट पॉलिटिक्स!
ओबीसी के कुर्मी वोट बैंक में आधार रखने वाले अपना दल के के साथ बीजेपी का गठबंधन पहले से है और अब पार्टी के निशाने पर करीब दर्जन भर छोटी पार्टियां हैं. पार्टी ने जिस तरह ओबीसी-दलित पर जोर दिया, उससे सवर्णों में नाराजगी न हो इसलिए ब्राह्मणों पर भी चारा डाला जा रहा है. जितिन प्रसाद उदाहरण हैं. बीजेपी ने अपने सभी छह जोन में क्षेत्रीय अध्यक्षों की नियुक्ति से लेकर निचले स्तर तक की टीम में सामाजिक समीकरण का खासा ध्यान रखा गया है. इसी रणनीति के तहत बूथ स्थतर फॉर्मूले में भी जाति समीकरण को ध्यान रखा गया है और आने वाले समय में जातिगत सम्मेलनों का सिलसिला तेज किया जाएगा.