UP विधानसभा चुनावों, अमित शाह ने संभाली कमान इनके साथ मिलकर तैयार किया रणनीति का ब्लू प्रिंट
उत्तर प्रदेश में होने वाले निर्णायक विधानसभा चुनावों की कमान बीजेपी में पीएम मोदी के बाद सबसे ताकतवर नेता और देश के गृह मंत्री अमित शाह ने पूरे तौर पर संभाल ली है। गुरुवार की शाम अमित शाह के आवास पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और यूपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह के साथ रणनीति का ब्लू प्रिंट तैयार करने के खबर है । इस अहम बैठक में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी बुलाया गया जबकि लखनऊ में विधान सभा का सत्र चल रहा है।बैठक में राष्ट्रीय संगठन बीएल संतोष और यूपी में शाह के विश्वासपात्र सुनील बंसल भी मौजूद रहे।
सूत्रों के मुताबिक पिछले कुछ दिनों में पीएम मोदी और अमित शाह के बीच यूपी के चुनावों को लेकर कई चरणों में बातचीत हुई है। पीएम के करीबी सूत्रों ने बताया कि मोदी को उनके विशेष दूत और बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष एके शर्मा से जो उत्तर प्रदेश का फीडबैक मिल रहा है वो भी ज्यादा उत्साहवर्धक नहीं है। इसलिए मोदी ने शाह से सीधे तौर पर कमान संभालने को कहा है।
सूत्रों ने बताया कि संघ, संगठन और सरकार में तालमेल के आभाव के अलावा अधिकतर विधायक भी योगी की कार्यशैली से संतुष्ट नहीं है। अपेक्षित मंत्रिमंडल के विस्तार को जिस तरह बार बार टाला गया उससे कुछ रसूखदार ओबीसी और ब्राह्मण नेताओं की उम्मीदों पर भी पानी फिरता नज़र आ रहा है। जिलों में राम इक़बाल सिंह जैसे कई नेता हैं मुखर हो गए हैं जो योगी की नीतियों की सोशल मीडिया पर खुली आलोचना कर रहे हैं।
इधर अमित शाह ने कुछ मंत्रियों और अहम पदाधिकारियों को ज्यादा जिम्मेदारी देने के लिए चिन्हित किया है।
बीजेपी के एक बड़े नेता ने कहा कि शाह के मूड से ऐसा लगता है कि वे इस बार कई नकारा विधायक और मंत्रियों के टिकट एन वक़्त पर काट कर पिछड़े और अति पिछड़े जाति के कार्यकर्ताओं को मौका देंगे। पार्टी, वाकई ओबीसी के तमाम नए नेताओं को आगे लाने के लिए रास्ता खोल सकती हैं।बीजेपी को जातिगत आधार पर जनगणना न करने का फैसला यूपी में परेशान कर रहा है। हालाँकि पार्टी ने संसद में संविधान संशोधन विधेयक लाकर स्थिति संभालने की कोशिश की है पर अगर ओबीसी का मुद्दा विभिन्न जातियों के छोटे छोटे इलाकाई नेताओं ने गरमा दिया तो इसका लाभ समाजवादी पार्टी ज़रूर उठाने का प्रयास करेगी ।
सूत्रों ने कहा कि अमित शाह ने बैठक में साफ़ किया कि बीजेपी इस चुनाव में कोई कसर नहीं छोड़ेगी क्यूंकि यूपी जीतने के अलावा पार्टी के पास कोई विकल्प नहीं है। यानि पार्टी को हर कीमत पर यूपी जीतना है और बंगाल से दस गुनी ज्यादा ताकत मोदी और शाह उत्तर प्रदेश में लगायेंगे जहाँ से 2014 और 2019 की प्रचंड जीत की बढ़त बीजेपी को मिली थी। पार्टी का मानना है कि कोरोना की दूसरी लहर की क़हर के बावजूद प्रदेश का सवर्ण वोटर योगी सरकार के साथ है। बनिया, ब्राह्मण, भूमिहार, त्यागी और ठाकुर जैसी जातियां मिलकर यूपी में कोई 20 प्लस प्रतिशत के वोट की ताकत रखती हैं। यहाँ तक की पश्चिमी यूपी में ज्यादातर जाट का मोहभंग भी पार्टी से अब तक नहीं हुआ है।किसान आंदोलन के बाद भी मेरठ, बुलंदशहर और मुज़फ्फरनगर जैसे जिलों के कई इलाकों में जाट ने कमल का साथ नहीं छोड़ा है।
शाह, जिन्हे संघ तक ने चाणक्य के ख़िताब से नवाज़ा है, फ़िलहाल ओबीसी और दलित पर इस बार पहले से भी ज्यादा फोकस कर रहे हैं।इसी तरह, चुनाव प्रचार में वे पूर्वांचल में ठाकुर-ब्राह्मण की खेमेबंदी वाली राजनीति को संतुलित करने के लिए योगी के साथ साथ कुछ ब्राह्मण चेहरों को भी पार्टी के पोस्टर में जगह देंगे।