आज मिली डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को सच्ची श्रद्धांजलि, इसी कश्मीर के लिए जान दे दी थी !
कश्मीर भारत की भावनाओं से जुड़ा एक ऐसा अटूट हिस्सा जिसके बिना हिंदुस्तान के वजूद की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी | ठीक वैसे ही कश्मीर में डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की शहादत को भुलाया नहीं जा सकता | सोमवार को जब राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने धारा 370 हटाने के प्रस्ताव पेश हुआ, तो कई बार श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जिक्र भी आया | कई सांसदों ने यहां तक कहा कि आज श्यामा प्रसाद मुखर्जी की आत्मा बहुत खुश होगी | जो लोग कश्मीर को लेकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान को नहीं जानते वो उन्हें बता दे कि आज कश्मीर जिस विधान जिस प्रधान के ढांचे के साथ हिन्दुस्तान के वजूद के साथ खड़ा है | उसका सारा श्रेय श्यामा प्रसाद मुखर्जी को जाता है |
दरअसल कश्मीर समस्या शुरु से ही हिन्दुस्तान का सिरदर्द बने हुए थी | उस पर 17 मार्च 1948 से शेख अब्दुला की सरकार भारत के लिए कोढ में खाज बने हुए थी | कश्मीर में शेख अब्दुल्ला की सरकार थी, जो अपने ही विधान निशान और प्रधान के हिसाब से चल रही थी | हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री नेहरु के अलावा कश्मीर में शेख अब्दुल्ला प्रधानमंत्री हुआ करते थे | यानी आजाद भारत में दो प्रधानमंत्री एक भारत के नहेरु दूसरे कश्मीर के शेख अब्दुल्ला यानी के शेख अब्दुल्ला, यानी सदरे रिसासत राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की जगह कश्मीर का झंडा फहराते थे | यहां तक की सरकारी इमारतों पर भी कश्मीर का झंडा फहराया जाता था | इतना ही नहीं भारत के दूसरे हिस्सों से कश्मीर जाने वाले लोगों को उस वक्त परमिट लेना पढ़ता था | कश्मीर का ये विधान हिन्दुस्तान की राष्ट्रीयता का मुंह चिढ़ा रहा था | आजाद भारत में कश्मीर पर नेहरू की ये कमजोरी डॉ मुखर्जी को खटक रही थी | कलकत्ता का करिश्मा कहे जाने वाले मुखर्जी ने कश्मीर के लिए 1953 में कानपुर से आंदोलन का आगाज किया |
आजाद भारत में प्रजापद के जरिए कश्मीर के लिए आंदोलन शुरु हो चुका था | डॉ मुखर्जी ने दो विधान 2 निशान और 2 प्रधान नहीं चलेंगे नहीं चलेंगे का नारा देकर कश्मीर के लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरु कर दिया | कश्मीर में धारा 370 अलग संविधान अलग विधान औरअलग प्रधान भारतीय गणतंत्र का मजाक उड़ा रहा था | डॉक्टर मुखर्जी ने ये प्रतिज्ञा ली की वो कश्मीर बिना परमिट के जाएंगे चाहे इसके लिए उनकी जान ही क्यों ना चली जाए | नेहरु की सरकार मुखर्जी के इस कदम से चकरा गई | वहीं मुस्लिम कॉन्फ्रेस यानी आज के नेशनल कॉन्फ्रेस के मुखिया शेख अब्दुल्ला भी श्यामा प्रसाद मुखर्जी के तेवर को देखकर घबरा गए | जून 1953 को मुखर्जी अपने चुने हुए साथियों के साथ जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी भी थे | कश्मीर की तरफ कूच कर दिया | जम्मू-कश्मीर में प्रवेश के लिए जैसे ही मुखर्जी पंजाब के माधोपुर के रावी नदी के पुल पर पहुंचे | उन्हें नेहरु सरकार के आदेश पर गिरफ्तार कर लिया गया और कश्मीर की जेल में डाल दिया गया | मुखर्जी की गिरफ्तारी की खबर फैलते ही पूरे देश में आंदोलन तेज हो गया |
कई दिनों की गिरफ्तारी के बाद अचानक 23 जून 1953 को खबर आई कि डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी का निधन हो गया है | डॉक्टर मुखर्जी की इस तरह से मौत ने षड़यंत्र रहस्य की राजनीति का एक ऐसा घिनौना चेहरा हिदुस्तान को दिखा दिया | जहां आजाद हिन्दुस्तान में कश्मीर के लिए मरने वाले देशभक्त की मौत एक रहस्य बनकर रह गई | लेकिन इसके बावजूद उनकी शहादत का असर दिखने जा रहा था | मुखर्जी की शहादत शेख अब्दुल्ला के ताबूत में आखिरी कील साबित हुई | श्यामा प्रसाद मुखर्जी की कश्मीर को लेकर दी गई |
कुर्बानी का असर ये हुआ कि जम्मू-कश्मीर जाने के लिए परमिट सिस्टम खत्म कर दिया गया और साथ ही कश्मीर में तिरंगे को वो सम्मान मिला | जिसका हर भारतीय अटल इरादा रखता था लेकिन इन सबके बीच मुखर्जी की रहस्मयी मौत पर सवाल खड़े हो रहे थे | शेख अब्दुल्ला और नेहरु सरकार पर आरोप लगाए गए कि मुखर्जी की मौत पर गहरी साजिश रची गई मुखर्जी की मौत के बाद शेख अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री के टाइटल से संबोधित किया जाने लगा और कश्मीर में प्रधानमंत्री का टाइटल हमेशा के लिए खत्म कर दिया गया | भारत में एक प्रधान यानी प्रधानमंत्री ही हिन्दुस्तान का चेहरा बन गया | श्यामा प्रसाद मुखर्जी की शहादत के बाद राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में मुख्यमंत्री शेख अब्दुला को कश्मीर षड़यंत्र के आरोप में जेल भेज दिया गया | शेख अब्दुल्ला लगभग 11 साल तक जेल में रहे |
1992 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के हौसले को प्रणाम करते हुए | कश्मीर में लाल चौक पर तिरंगा फहराया था | डाक्टर मुरली मनोहर जोशी के साथ उस वक्त नरेंद्र मोदी के हौसले ने डॉक्टर मुखर्जी की शहादत को यादगार बना दिया था |