केंद्र सरकार से किसान बिल रद्द करने की उठी मांग

गुरदासपुर , आल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) ने शनिवार को किसान आंदोलन को समर्थन देते हुये केंद्र सरकार से नये कृषि कानून और बिजली संशोधन विधेयक को रद्द करने का आग्रह किया है।
जसबीर धीमान व अजयपाल सिंह अटवाल किसानों के समर्थन में सिंघू बॉर्डर पहुंचे
फेडरेशन के प्रवक्ता वीके गुप्ता ने आज यहां बताया कि ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेन्द्र दुबे की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल और पीएसईबी इंजीनियर्स एसोसिएशन का प्रतिनिधिमंडल जसबीर धीमान व अजयपाल सिंह अटवाल के नेतृत्व में आज किसानों के समर्थन में सिंघू बॉर्डर पहुंचा।
केंद्र सरकार खेती कानूनों को निरस्त करने की उठी मांग
श्री दुबे ने सिंघू सीमा पर किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि देश भर के बिजली इंजीनियर और कर्मचारी किसानों के संघर्ष का पूरा समर्थन करते हैं और केंद्र सरकार से आग्रह करते हैं कि वह खेती कानूनों को निरस्त करे और बिजली संशोधन विधेयक, 2020 को वापस लेकर किसानों की बिजली सब्सिडी की रक्षा करे। किसानों का संघर्ष केंद्र सरकार की आर्थिक नीति के खिलाफ है जो कृषक समुदाय की कीमत पर अपने व्यापारिक कारोबार और लाभ को अधिकतम करने के लिए कॉर्पोरेट और उद्योग जगत के नेताओं का पक्ष लेना है ।
पीएसईबी इंजीनियर्स एसोसिएशन ने किसानो को भेंट किया चेक
बिजली क्षेत्र के निजीकरण के बाद बिजली की लागत किसानों की पहुंच से बाहर हो जाएगी। बिजली की लागत किसानों की पहुंच से बाहर होगी। पीएसईबी इंजीनियर्स एसोसिएशन ने किसानों को उनके आंदोलन के समर्थन में एक लाख रुपये का चेक भेंट किया।जसबीर धीमान अध्यक्ष पीएसईबीईए ने कहा कि केंद्र सरकार ने जहां डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) की प्रक्रिया प्रस्तावित की है, वहीं यह राशि किसानों को मुफ्त बिजली की सब्सिडी छीनने के लिए है।
यह बिल आम उपभोक्ताओं को आर्थिक रूप से नष्ट कर देगा
पंजाब सरकार बिजली एक्ट 2003 में प्रस्तावित संशोधनों को पहले ही खारिज कर चुकी है।
श्री गुप्ता ने कहा कि डीबीटी के प्रस्ताव से उन किसानों को भारी आर्थिक परेशानी होगी, जिन्हें अपने ट्यूबवेल के बिजली बिलों का भुगतान डिस्कॉम को करना होगा जबकि राज्य सरकार द्वारा डीबीटी भुगतान के मिलान की कोई गारंटी नहीं थी। कृषि कानूनों और बिजली के निजीकरण को लागू करने के कदम को केंद्र सरकार आर्थिक सुधारों के एक पहलुओं के रूप में देख रही है, वास्तव में कॉर्पोरेट्स को भारी व्यापारिक लाभ देगी और किसानों और आम उपभोक्ताओं को आर्थिक रूप से नष्ट कर देगी|