अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद दर-दर भटक रहे अफगानी,
कौन से देश शरण देने को तैयार; क्या है भारत का स्टेटस?
15 अगस्त को तालिबान अफगानिस्तान की सत्ता में आया। इसके बाद से हजारों लोग देश छोड़ चुके हैं या छोड़ना चाहते हैं। अब तक कई ऐसी तस्वीरें सामने आ चुकी हैं जिसमें काबुल एयरपोर्ट पर लोगों का मेला सा लगा दिखा। यहां तक कि कुछ लोगों की एयरक्राफ्ट के पहिए पर बैठकर देश छोड़ने की कोशिश में हुई मौत की दर्दनाक तस्वीरें भी दुनिया ने देखी हैं।
संयुक्त राष्ट्र (UN) ने कहा है कि मौजूदा हालात के चलते इस साल के अंत तक 5 लाख से ज्यादा लोग अफगानिस्तान छोड़ सकते हैं। UN ने इन लोगों के लिए अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों से अपने बॉर्डर खोलने की भी अपील की है। मौजूदा संकट शुरू होने से पहले ही 26 लाख से ज्यादा अफगान लोग पड़ोसी देशों में रिफ्यूजी के रूप में रह रहे थे। अफगानिस्तान में इस वक्त करीब 35 लाख लोग ऐसे हैं जिन्हें अपना घर-बार छोड़ना पड़ा है।
अफगानिस्तान में बदले हालात के बाद अब अमेरिका भी वहां से जा चुका है। ऐसे में वो अफगानी लोग जो अब भी देश से बाहर जाना चाहते हैं उनके लिए क्या रास्ते हैं? तालिबान का इस तरह के लोगों को लेकर क्या कहना है? अगर कोई अफगानी देश छोड़कर जाना चाहे तो कौन से देश इन्हें रिफ्यूजी के रूप में शरण दे सकते हैं? किन देशों ने कितने अफगान शरणार्थियों को अपने देश में पनाह देने का ऐलान किया है? अब तक कितने लोगों को अफगानिस्तान से निकाला जा चुका है? भारत का अफगान शरणार्थियों को लेकर क्या स्टैंड है? आइए जानते हैं…
दुनियाभर में कितने रिफ्यूजी हैं?
यूएन रिफ्यूजी एजेंसी UNHCR के मुताबिक दुनियाभर में 8.24 करोड़ लोगों को जबरन अपने देश से निकाल दिया गया है। इनमें से 2.64 करोड़ रिफ्यूजी के रूप में अलग-अलग देशों में रह रहे हैं। 18 जून 2021 के आंकड़ों के मुताबिक सबसे ज्यादा 67 लाख रिफ्यूजी सीरिया के हैं। अफगानिस्तान के 26 लाख शरणार्थी अलग-अलग देशों में रिफ्यूजी के रूप में रह रहे हैं।
रिफ्यूजी किन्हें कहा जाता है?
UNHCR के मुताबिक अगर किसी व्यक्ति को उत्पीड़न, युद्ध या हिंसा के चलते देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ता है तो उसे रिफ्यूजी माना जाता है। दुनियाभर की रिफ्यूजी आबादी में करीब आधी 18 साल से कम उम्र के बच्चों की है। दुनिया में हर 95 में से एक आदमी को देश में चल रहे संघर्ष या उत्पीड़न की वजह से देश छोड़ना पड़ता है। कुल रिफ्यूजी लोगों में से 68% सिर्फ पांच देशों सीरिया, वेनेजुएला, अफगानिस्तान, साउथ सूडान और म्यांमार से हैं।
अब तक कितने अफगान लोगों को अफगानिस्तान से निकाला गया है?
अमेरिका का अफगानिस्तान से लोगों को निकालने का अभियान मंगलवार को खत्म हो गया। 14 अगस्त के बाद उसने अपने सैनिकों के अलावा करीब 1.23 लाख आम लोगों को वहां से निकाला। इसमें करीब साढ़े पांच हजार अमेरिकी हैं। वहीं, बाकी लोगों में कई ऐसे लोग भी शामिल हैं जिनके पास अमेरिका और अफगानिस्तान दोनों का पासपोर्ट है। अमेरिका द्वारा निकाले गए लोगों में अफगानियों की संख्या कितनी है, ये अब तक सामने नहीं आया है।
वहीं, ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि उसने इस दौरान 15 हजार से ज्यादा लोगों को अफगानिस्तान से निकाला है। इनमें करीब 8 हजार अफगानी हैं। इन दोनों देशों के अलावा भी कई अफगानियों को स्पेन, जर्मनी, कतर और उज्बेकिस्तान सहित कई देशों में बनाए गए इमरजेंसी प्रोसेसिंग सेंटर्स में ले जाया गया है।
क्या लोग इंटरनेशनल बॉर्डर क्रॉस करके पड़ोसी देशों में भी शरण ले रहे हैं?
तालिबान ने उन सभी प्रमुख इंटरनेशनल बॉर्डर्स पर कब्जा कर लिया है, जिनसे होकर लोग पड़ोसी देशों में जा सकते हैं। रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि तालिबान केवल व्यापार के लिए जाने वालों या वैलिड डॉक्युमेंट के साथ बॉर्डर पर पहुंचने वालों को ही सीमा पार करने दे रहा है। जो लोग तालिबान का राज आने से डरे हुए हैं, उनके पास देश छोड़कर जाने के लिए इस तरह का पेपर वर्क नहीं है।
UN ने अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों को अपने बॉर्डर शरणार्थियों के लिए खोलने को कहा है, लेकिन अफगानिस्तान के पड़ोसी उज्बेकिस्तान ने अपनी सीमा को बंद करके सुरक्षा बढ़ा दी है। उसका इन सीमाओं को खोलने का कोई इरादा भी नहीं है। अफगानिस्तान से सबसे लंबी सीमा पाकिस्तान की लगती है। उसने भी अफगान रिफ्यूजियों को अपने देश में शरण देने से इनकार कर दिया है। हालांकि पाक-अफगान सीमा पर हजारों लोग जमा हैं, जो सीमा पार करके पाकिस्तान जाना चाहते हैं।
अफगानिस्तान की पश्चिमी सीमा ईरान से लगती है। ऐसी खबरें हैं कि हजारों अफगानी यहां भी सीमा पार करके ईरान जाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अब तक इनमें से कितने सफल हुए हैं, इसका कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है।
देश छोड़ने के बाद अफगान शरणार्थी कहां जाते हैं?
जून 2021 तक के UNHCR के आंकड़े बताते हैं कि उस वक्त तक 26 लाख से ज्यादा अफगान रिफ्यूजी दुनिया के अलग-अलग देशों में रह रहे थे। इनमें सबसे ज्यादा 14.5 लाख अफगान रिफ्यूजी पाकिस्तान में थे। इसके बाद 7 लाख 80 हजार अफगान रिफ्यूजी ईरान में रह रहे थे। जर्मनी में एक लाख 80 हजार तो तुर्की में एक लाख 30 हजार अफगान रिफ्यूजी थे।
उस वक्त भी लाखों अफगानी ऐसे थे, जिन्होंने दूसरे देशों में शरण लेने के लिए आवेदन दिया था, लेकिन उनका आवेदन उस तक मंजूर नहीं हुआ था। अगर ऐसे लोगों की बात करें तो सबसे ज्यादा 1.25 लाख आवेदन तुर्की में शरण लेने के लिए हुए थे। जर्मनी में शरण लेने के लिए 33 हजार तो ग्रीस में शरण लेने के लिए 20 हजार आवेदन थे।
भारत ने अफगानियों को शरण देने के लिए क्या किया?
भारत ने इसे लेकर अलग से कोई नियम नहीं बनाया है। हालांकि अभी तक भारत में किसी को रिफ्यूजी स्टेटस या नागरिकता देने के मामले केस टु केस देखे जाते हैं। भारत ने 1951 के शरणार्थियों के कन्वेंशन पर साइन नहीं किया है। इसके साथ ही 1967 में बने रिफ्यूजी स्टेटस प्रोटोकॉल का भी भारत हिस्सा नहीं है।
हालांकि, अफगानिस्तान के मौजूदा हालात को देखते हुए भारत ने वहां के लोगों को वीजा से जुड़ी कुछ सहूलियतें दी हैं। अफगान लोगों के लिए E-वीजा की नई कैटेगरी बनाई गई है। साथ ही उनकी एप्लिकेशन प्रोसेस को भी फास्ट-ट्रैक किया गया है। ये E-वीजा फिलहाल छह महीने के लिए दिया जा रहा है। हालांकि इसके बाद क्या होगा, इसे लेकर इसमें कुछ नहीं कहा गया है।
अमेरिका चला गया, क्या अब तालिबान अफगानियों को देश छोड़ने देगा?
अमेरिका के जाने के बाद भी तालिबान देश छोड़कर जाने वालों को सुरक्षित रास्ता देगा, अमेरिका समेत कई देशों ने ऐसा दावा किया है। उनका कहना है कि तालिबान ने उन्हें इस बारे में आश्वासन दिया है। तालिबान के चीफ नेगोशिएटर शेर मोहम्मद अब्बास स्टेनकजई ने कहा है कि अमेरिका के जाने के बाद भी जो लोग देश छोड़कर जाना चाहें वो जा सकते हैं। भले ही अफगानिस्तान के हों या किसी दूसरे देश के नागरिक हों। जिन लोगों ने युद्द के दौरान अमेरिका की मदद की, उन्हें भी देश छोड़कर जाने से तालिबान नहीं रोकेगा।