“उस रात एलओसी पर कुछ भी हो सकता था….” एक पत्रकार की आंखों देखी गवाही!
जहां युद्ध से ज्यादा खतरनाक है शांति
मेरे ठीक सामने बमुश्किल डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) का गांव हरिहरपुर है। मैं एलओसी (नियंतण्ररेखा) की सबसे खतरनाक माने जाने वाली सेना की एक पोस्ट (सुरक्षा कारणों से उस पोस्ट का नाम नहीं दिया जा रहा है) पर भारतीय सेना के साथ हूं, जहां पिछली रात हमने पोस्ट के नीचे बंकर में उनके साथ गुजारी है। किरोसिन तेल से जलने वाले स्टोव में उनके साथ खाना पकाकर खाया है और उनके बिछौने और खाट को साझा किया है। बीती रात को याद करता हूं तो फिर स्याह अंधेरे में खो जाता हूं..लालटेन की टिमटिमाती लौ की मद्धिम रोशनी है और नींद है कि कम्बख्त पूरी रात दगा देती रही है। एक अजीब सा सन्नाटा और नीरव शांति तो पसरी है, लेकिन खतरा बरकरार है, किसी अनजाने दुश्मन के अचानक नमूंदार हो जाने या फिर दुश्मन की तरफ से अचानक ही की जाने वाली गोलाबारी से निपटने के लिए रात की ड्यूटी वाला संतरी पूरी तरह चौकन्ना और मुस्तैद है। नाइट विजन उपकरणों से वह रह-रहकर एलओसी के पार तक भेदने की कोशिश कर रहा है।
यह पोस्ट खूबसूरत कश्मीर घाटी में नौसेरा के पास एक ऊंची पहाड़ी पर है, दिन के उजाले में जहां से दूर-दूर तक सिर्फ और सिर्फ हरियाली और पर्वत श्रृंखलायें नजर आती हैं। पछियों का कलरव और नीरव सन्नाटा भ्रम में डालने वाला है.. कि प्रकृति की गोद में यहां कितनी निचाटता और शांति है। ..लेकिन हमें भी इस बात का इल्म है कि हम दुश्मन की जद में हैं। हमारी हरेक हरकत पर दुश्मन की नजर है..ठीक वैसे ही जैसे की पोस्ट पर निगहबानी के लिये रखी हुई दूरबीन (बायनोकुलर) से मैं उनकी हर एक हरकत को देख रहा हूं। हरिहरपुर गांव के अग्रिम तरफ और हमारे ठीक सामने पाकिस्तान रेंजरों की पोस्ट साफ नजर आ रही है। मैं देख पा रहा हूं कि हमारी पोस्ट पर अमूमन अन्य दिनों की अपेक्षा ज्यादा हलचल देखकर वे भी सतर्क और हरकत में हैं। एक पाक रेंजर वायनोकुलर से हमें ताड़ने की कोशिश कर रहा है।
तकरीबन 8 गुना छह का बंकर यानि कि तहखाना..जो पोस्ट पर तैनात सैनिक का निजी कमरा भी है, बिल्कुल ही कच्चा (मिट्टी) है। बताया जाता है कि पाक में बने सभी बंकर पक्के हैं। बंकर में अन्दर जाने के लिये एक कच्ची सीढ़ी नीचे उतरती है। रोशनी और हवा-बयार के लिये एक छोटा सा रोशनदान भी है। खाना पकाने के लिये कमरे में एक स्टोव और कुछ बर्तन हैं। दूसरी दीवार से सटे हुये बांस की एक खटिया (खाट) है, जिस पर दरी का बिछौना है। बंकर की अस्थायी छत जंगली लकड़ी से बनायी गयी है। जिसके ऊपर सेना ने पोस्ट बना रखा है। पोस्ट की छत टिन के चादर की है। पोस्ट पर मिट्टी की बाउंड्री बनायी गयी है और सैनिक के बैठने के लिये अन्दर मिट्टी का ही ठेहा (बेंच) बनाया गया है। पीछे की मिट्टी की दीवाल पर उस इलाके का एक नक्शा खींचा गया है। जिसपर यह अंकित किया गया है कि दुश्मन की सबसे निकटवर्ती पोस्टें वहां से कितनी दूरी पर और किस दिशा में हैं और उनका नाम क्या है। भारतीय सैनिक चौकन्ना है .और उसकी निगाहें पीओके की तरफ उस पहाड़ी बरसाती नाले की तरफ है, जो दोनों देशों के बीच नियंतण्ररेखा का काम करती है..एक तरह से ‘नो मेंस लैंड’ की तरह। नाला ही वह चिन्हांकन है जिसके 500 मीटर के दायरे में आने वाला व्यक्ति माना जायेगा कि वह घुसपैठ की कोशिश कर रहा है। और वह सैन्य बलों की गोली का शिकार हो सकता है। यह बात दोनों ही तरफ लागू होती है।
पोस्ट पर दिन की नीरव शांति रात में एक भयावह अंधेरे में तब्दील हो जाती है। न बिजली न बाती। लालटेन की टिमटिमाती रोशनी और जरूरत पड़ने पर टार्च की फ्लैश लाइट। रात में मुस्तैदी और चपलता की खास जरूरत होती है। रात के अंधेरे में ड्यूटी तामील कर रहा सिपाही संदीप की इस बात में दम है कि अशांत सीमा पर युद्धकाल से ज्यादे खतरनाक शांति काल यानि कि संघर्ष विराम काल होता है। युद्धकाल में तो पता है कि दुश्मन की गोली सामने से आयेगी। लेकिन जब छद्म युद्ध चल रहा हो तो गोली किधर से भी आ सकती है। काली रात में लघु शंका के लिये बैठे नहीं कि दुश्मन काल बन कर अचानक अवतरित हो सकता है। वह पीछे से गर्दन पर भी प्रहार कर सकता है। यानि की सतर्कता से चूके तो जान से हाथ धो बैठे। रात में सांप-बिच्छुओं और जंगली जानवरों का भय भी बराबर है, जिनसे अपने को बचाये रखना सैनिक की मुस्तैदी का हिस्सा है।
हालांकि 740 किलोमीटर लम्बी पूरी एलओसी ही संवेदनशील है, लेकिन सेना की इस पोस्ट के सबसे अधिक संवेदनशील और खतरे में होने की इसकी भौगोलिक वजह है। इस पोस्ट का भू भाग पीओके में अन्दर की तरफ घुसा हुआ है। यानि कि पीओके की बाउंड्री बहुत ही करीब इसको तीन तरफ से घेरे हुये है। इसका मतलब यह हुआ कि एक तरह से हम पीओके में घुसकर बैठे हुये हैं। इस पोस्ट को एक ऊंची पहाड़ी पर बनाया गया है। पोस्ट से तकरीबन पांच सौ मीटर पहले तक सेना की जिप्सी से हमें ले जाया गया। वहां से पोस्ट तक पहुंचने के लिये कच्चे पहाड़ को काट कर सीढ़ीनुमा रास्ता बनाया गया है, जिसमें कतार से एक-एक आदमी ही चढ़ सकता है। सीढ़ी के दोनों तरफ रस्सियों की रेलिंग बनायी गयी है। सीढ़ी पर हमें बहुत ही सतर्कता से चढ़ने की हिदायत दी गयी। हमें बताया गया कि अगर सीढ़ी से एक फिट भी इधर-उधर हुये या गिरे तो शरीर के परखच्चे उड़ जायेंगे। पता चला कि पूरी पहाड़ी पर भूमिगत सुरंगों की (लैंड माइन्स) जाल बिछायी गयी हैं। एक-एक फिट के दायरे में माइन्स हैं। मैनें देखा कि पहाड़ी पर गोल-गोल छोटे-छोटे टीले उभरे हुये थे बिल्कुल ही इंसानी सिर की तरह। उनके नीचे माइन्स रखी गयी है। एक जेसीओ (जूनियर कमीशंड आफीसर) ने बताया कि कई बार भूगर्भी हलचलों या फिर भूकम्प से माइन्स अपने स्थान से स्वत: ही खिसक जाते हैं। यानि कि जो टीले बनाये गये हैं यह चिन्हित करने के लिये कि उसके ठीक नीचे माइन्स है। लेकिन वह वहां से खिसक कर इधर-उधर हो चुके होते हैं। कई बार जंगली जानवरों के आ जाने से भी भूमिगत सुरंग में विस्फोट हो जाता है।
पोस्ट पर तैनात सैनिकों ने सब्जियां उगा रखी हैं। वे खुद बनाते हैं। पोस्ट पर जरूरतभर के घातक हथियार उपलब्ध हैं (राष्ट्रहित में उन हथियारों का नाम उल्लेख करना उचित नहीं होगा)। ऐसे हथियार जो दूर बैठे दुश्मन को खामोश करने के लिये पर्याप्त है। मुझे पोस्ट पर बिल्कुल ही खुले में यानि कि दुश्मन की दूरबीन की निगाह के सामने बार-बार आने-जाने से मना किया गया। मैनें महसूस किया कि इस सीमा पर शांति तो है, लेकिन इसके पीछे कितना तूफान दबा हुआ है। संघर्ष विराम का उल्लंघन कर दुश्मन द्वारा कभी भी अचानक फायरिंग करना और जवाब में भारतीय सैनिकों का मुंहतोड़ जवाब देना..अक्सर ही यहां की शांति में तूफानी खलल पैदा करता है। जाहिर है दुश्मन की गोली पर किसी का नाम नहीं लिखा है..सतर्कता ही उससे बचने का एकमात्र उपाय है।
एलओसी के 60 गावों में अवसाद
एलओसी की जब बात होती है, तो सिर्फ सैनिक और सेना की बात होती है। इस ओर बहुत ही कम ध्यान जाता है कि वहां आसपास रहने वाली 60 गांवों की जिन्दगियां, जो भारतीय सेना के सुरक्षा घेरे में और पाकिस्तान सेना की जद में रहती हैं, उन पर घुसपैठिये आतंकवादियों का खौफ बराबर तारी रहता है.. तो उनका जीवन कैसा है। जाहिर है 740 किलोमीटर लम्बी एलओसी पर सबसे सांसत में उसके आसपास के 60 गांवों के लोग ही हैं, जो पाकिस्तान सेना द्वारा अकारण अक्सर कर देनी वाली फायरिंग और रात के अंधेरे में अचानक बिन बुलाये मेहमान की तरह अवतरित हो जाने वाले आतंकवादियों के भय से ज्यादातर ‘अवसाद’ के शिकार हो चुके हैं।
इन गांवों में चार गांव- चारुंडा (जिला उरी), झलास (जिला-पुंछ), तारकुंडी (जिला राजौरी) तथा किरन (जिला- कुपवाड़ा) तो ऐसे हैं जो कि बिल्कुल ही नियंतण्ररेखा से सटे हुये हैं और पाकिस्तान सेना से सीधे मुखातिब हैं। दुर्भाग्य यह है कि एलओसी पर लगायी गयी तारों की बाड़ (फेन्सिंग) इन गांवों से एक-दो किलोमीटर पीछे है। मतलब साफ है कि ये फेन्सिंग से बाहर पाकिस्तान की तरफ हैं। चारुंडा गांव का तो सबसे बुरा हाल है। एक तो ये फेंन्सिंग से बाहर है ही, भारतीय सेना की चौकी भी गांव के पीछे है। यानि कि पाकिस्तान सेना से पहले मुखातिब गांव है फिर भारतीय पोस्ट। मुस्लिम बहुलता वाले इस गांव की आबादी पांच-छह हजार के करीब है। यह गांव पुंछ जिले के नंगी टोकरी सेक्टर में है। भारतीय सेना इस बात को स्वीकार करती है कि इस गांव में पाकिस्तान सेना का प्रभाव है। पिछले दिनों भारतीय सेना ने जब गांव के पीछे स्थित अपनी चौकी को गांव के आगे (अग्रिम मोच्रे पर) बनाने की कोशिश की तो पाक सेना ने ऐसा करने से रोकने के लिये गोलाबारी की। इन गांवों की भौगोलिक स्थिति से समझा जा सकता है कि इन गांवों में पाक सेना और घुसपैठियों का खौफ कितना अधिक रहता होगा। लगभग यही स्थिति उपरोक्त गांवों की भी है।