तालिबान और पाकिस्तान में युद्ध जैसे हालत, दो कारण है बहुत खास

साल 2021 में जब तालिबान ने अफ़गानिस्तान की सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया था तो खुशी से झूम रहे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा था कि ‘अफगानिस्तान ने गुलामी की बेड़िया तोड़ दी है’। उनके इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे थे कि क्या अब तालिबान और पाकिस्तान मिलकर काम करेंगे। क्या दोनों की सीमा रेखा को लेकर सहमति बन जाएगी और क्या दोनों देश व्यापार करने के लिए आगे आएंगे।  इमरान खान के बयान से लग रहा था कि दोनों इस्लामी मुल्क साथ आना चाहते हैं लेकिन यह खुशियां कुछ समय के लिए ही थी।

तालिबान बनने के बाद लगातार दोनों देशों में तल्खी बढ़ती ही जा रही है और इसका नतीज़ा 18 मार्च को पाकिस्तान द्वारा की जाने वाली एयर स्ट्राइक से निकला। दोनों ही देश एक दूसरे के लिए भड़काऊ बयान दे रहे हैं। इन दोनों देशों के बीच किन बातों को लेकर हो रही है समस्याएं, ये जानना बहुत ज़रूरी है।

सीमा विवाद

ब्रिटिश सिविल सेवक सर हेनरी मोर्टिमर डूरंड के नाम पर रखी गई 2,670 किलोमीटर लंबी डूरंड लाइन दोनों देशों के तनाव का कारण है। अफगानिस्तान का कहना है कि 1947 में पाकिस्तान के बनने के बाद ब्रिटिश समझौता खत्म हो जाता है, जबकि पाकिस्तान इस बात को नहीं मानता। पाकिस्तान ने डूरंड रेखा को अपनी पश्चिमी सीमा के रूप में मान्यता दी है, लेकिन अफगानिस्तान इसे वैध नहीं मानता। इसी वजह से दोनों देशों की सेनाओं के बीच अकसर झड़पें होती रहती है।

इसके अलावा दोनों देशों के बीच फल-सब्जियां, दवाईयों और अन्य ज़रूरी सामान पहुंचाने के लिए ग्रैंड ट्रंक रोड के साथ, तोरखम का रास्ता इस्तेमाल किया जाता है। इस रास्ते पर भी पाकिस्तान का कहना है कि अफगानिस्तान वहां अवैध निर्माण कर रहा है और अंधाधुध बमबारी करता है, जिसकी वजह से वहां रहने वाले नागरिकों की जान जाती है जबकि तालिबान सरकार कहती है कि वह सिर्फ कुछ पोस्ट की मरम्मत कर रहा है। इसी कशमकश की वजह से पिछले साल दोनों देशों के बीच बार्डर बंद कर दिए गए थे।

टीटीपी का दखल

आतंकवाद को पालने के लिए मश्हूर पाकिस्तान अब खुद आतंकवादियों से परेशान है और इसे परेशान करने वाला है तहरीक-ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी)। साल 2007 में बना टीटीपी का मुख्य उद्देश्य खैबर पख्तूनवा इलाके से पाकिस्तानी सरकार को हटाकर शरिया कानून लागू करना है।

टीटीपी का मानना है कि पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ मिलकर अफगानिस्तान को नुकसान पहुंचाया है। इसी कारण टीटीपी ने 2009 में अफगानी इलाके खोस्त में अमेरिकी सैन्य अड्डों पर आत्मघाती हमला किया था, जिसमें 7 अमेरिकी नागरिकों की जान गई थी।

तालिबानियों के सत्ता में आने के बाद माना जाता है कि यह संगठन और भी मज़बूत हुआ है। पाकिस्तान अक्सर अफगानिस्तान सरकार पर इल्जाम लगाती रही है कि टीटीपी पर तालिबान सरकार का हाथ है। पाकिस्तान के एक धड़े का ये भी मानना है कि जब अमेरिका सेना अफगानिस्तान छोड़कर गई थी, तब वह अपने असले वहीं छोड़ गई, जो टीटीपी के हाथ लग गए।

आज टीटीपी काफी मज़बूत है, जो आए दिन सीमा पर पाकिस्तानी सेनाओं पर बमबारी करती रहती है। पाकिस्तान के अंदर मस्जिदों में हमलों का दोष भी टीटीपी पर लगा है। हालांकि कुछ सालों से पाकिस्तान में राजनीतिक उथुल-पथुल के चलते भी टीटीपी को अपना विस्तार करने में मज़बूती मिली है। टीटीपी के आत्मघाती हमलों के कारण ही पाकिस्तान ने हवाई स्ट्राइक की थी।

पाकिस्तान ने अफगानी शरणार्थियों को निकाला

पिछले साल पाकिस्तान ने अफगान शरणार्थियों को वापस अफगानिस्तान जाने का आदेश दिया था। लोगों से कहा गया था कि 1 नवंबर 2023 तक अफगानी वापस अपने देश चले जाएं। इसी के चलते करीब दो लाख के आसपास अफगानी शरणार्थियों ने पाकिस्तान छोड़ दिया था। सूत्रों के अनुसार रमजान के बाद पाकिस्तान सरकार एक बार फिर यह मुहिम दोबारा चलाएंगी।

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार निकायों ने पाकिस्तान के इस कदम की आलोचना की थी। दोनों देशों के बीच तल्खी आने का यह एक कारण भी है।

इसके अलावा पाकिस्तान सरकार अफगानिस्तान पर स्मगलिंग का भी आरोप लगाती रही है।

कुल मिलाकर पाकिस्तान के अंदरूनी हालात अभी काफी कमज़ोर है। शहबाज़ शरीफ सरकार देश के भीतर ही कई मुद्दों पर जूझ रही है, ऐसे में पड़ोसी मुल्क से युद्ध जैसे हालात होने पर पाकिस्तान के लिए मुश्किल बढ़ सकती है।

 

Related Articles

Back to top button