Bharat में भी दो भारत हैं : एक अमीरों का लोन और गरीब लोगों का लोन न चुकाने पर जान गवाना
Bharat के प्रख्यात पत्रकार सुधीर चौधरी ने अपने हालिया कार्यक्रम में देश के उद्योगपतियों को लेकर तीखी टिप्पणी की। उन्होंने अपने शो में कहा, “हमारे देश में भी दो तरह के भारत हैं।
देश Bharat के प्रख्यात पत्रकार सुधीर चौधरी ने अपने हालिया कार्यक्रम में देश के उद्योगपतियों को लेकर तीखी टिप्पणी की। उन्होंने अपने शो में कहा, “हमारे देश में भी दो तरह के भारत हैं। एक वो भारत जहां बड़े उद्योगपतियों को बैंकों से हज़ारों करोड़ रुपये का कर्ज़ बेहद आसानी से मिल जाता है और जब वह कर्ज़ नहीं चुकाते, तो बैंक इसे राइट-ऑफ कर देते हैं। वहीं दूसरा भारत वो है, जहां आम आदमी पर बैंक का लोन न चुका पाने की स्थिति में कठोर कार्रवाई होती है और कई बार उसे जान से मारने की धमकी तक दी जाती है।”
लोन राइट-ऑफ: उद्योगपतियों के लिए वरदान?
सुधीर चौधरी ने अपने बयान में उन बड़े उद्योगपतियों की ओर इशारा किया, जो बैंक से भारी-भरकम लोन लेकर चुकाने में असफल रहते हैं। ऐसी स्थिति में बैंक इन कर्ज़ों को राइट-ऑफ कर देती है, जिसका अर्थ है कि बैंक इसे अपनी बही-खातों से हटा देती है और इसे वसूली योग्य नहीं मानती। हालांकि, इस राइट-ऑफ का यह मतलब नहीं होता कि उद्योगपतियों को कर्ज़ से पूरी तरह मुक्त कर दिया गया है, परंतु व्यवहार में इसका यही असर होता है।
उन्होंने कहा कि जब उद्योगपति लाखों करोड़ों के कर्ज़ न चुकाएं, तो उन्हें विशेष लाभ दिए जाते हैं, वहीं आम आदमी को लोन न चुका पाने की स्थिति में सख्त नियमों का सामना करना पड़ता है।
दूसरा Bharat : आम आदमी की कठिनाई
सुधीर चौधरी ने आम लोगों की समस्याओं का ज़िक्र करते हुए कहा कि, “दूसरा भारत वो है, जहां एक आम आदमी किसी मजबूरी में बैंक से कर्ज़ लेता है। अगर वह समय पर इसे नहीं चुका पाता, तो बैंक की तरफ से कड़ी कार्रवाई होती है। बैंक न केवल कानूनी कार्रवाई करता है, बल्कि वसूली एजेंट के जरिए मानसिक प्रताड़ना भी दी जाती है।”
वित्तीय संकट में फंसे आम आदमी पर कर्ज़ न चुका पाने के कारण आत्महत्या तक करने की नौबत आ जाती है। उन्होंने कहा कि बैंक और वित्तीय संस्थानों के लिए एक तरफ जहां बड़े उद्योगपति खास ग्राहक हैं, वहीं दूसरी तरफ आम जनता उनके लिए सिर्फ एक आंकड़ा बनकर रह जाती है।
Bharat बैंकों की नीति पर सवाल
सुधीर चौधरी ने बैंकों की दोहरी नीति पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि बैंक एक ओर उद्योगपतियों के कर्ज़ को आसानी से माफ कर देते हैं, जबकि दूसरी ओर आम जनता पर कर्ज़ चुकाने के लिए भारी दबाव बनाया जाता है। यह नीति समाज में असमानता को और बढ़ावा देती है।
उन्होंने यह भी कहा कि देश में वित्तीय व्यवस्था में इस प्रकार की खामियों के कारण गरीब और अमीर के बीच की खाई लगातार बढ़ती जा रही है। अमीर और अधिक अमीर हो रहे हैं, जबकि गरीब कर्ज़ के बोझ तले दबकर आत्महत्या तक करने को मजबूर हो रहे हैं।
उद्योगपतियों और आम जनता के बीच का अंतर
Bharat , सुधीर चौधरी ने एक सटीक तुलना करते हुए कहा कि जिस देश में बड़े उद्योगपतियों के कर्ज़ माफ हो जाते हैं, उसी देश में किसानों को कर्ज़ के कारण आत्महत्या करनी पड़ती है। यह विडंबना है कि एक ओर जहां बड़े उद्योगपतियों को विशेष रियायत मिलती है, वहीं दूसरी ओर गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को कर्ज़ चुकाने के लिए कठोर नियमों का सामना करना पड़ता है।
उन्होंने सरकार से सवाल किया कि आखिर यह दोहरे मापदंड कब तक चलेंगे? क्या देश में उद्योगपतियों के लिए एक विशेष कानून और आम जनता के लिए अलग कानून बना दिया गया है?
आगे का रास्ता: सुधार की जरूरत
सुधीर चौधरी ने अपने शो में यह भी कहा कि देश की वित्तीय व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि बैंकों को उद्योगपतियों के कर्ज़ माफ करने से पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन पर भी उतना ही दबाव बनाया जाए, जितना आम जनता पर बनाया जाता है।
उन्होंने कहा कि अगर सरकार और बैंक इस दोहरे मापदंड को खत्म करने की दिशा में कदम नहीं उठाते हैं, तो इससे देश में वित्तीय असमानता और बढ़ेगी। आम आदमी का बैंकिंग सिस्टम पर से विश्वास उठ जाएगा और वह बैंकों से दूरी बनाने लगेगा।
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कौन-सा भारत सही?
सुधीर चौधरी का यह बयान देश में चल रही वित्तीय असमानता की ओर एक गंभीर संकेत है। यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर किस दिशा में हमारा देश जा रहा है। क्या हम उस भारत को चुनेंगे, जहां हर नागरिक के साथ समानता का व्यवहार हो, या फिर उस भारत को, जहां सिर्फ बड़े उद्योगपतियों को लाभ मिलता रहे?
उन्होंने अंत में कहा कि “भारत तभी सशक्त होगा, जब हर नागरिक को समान अधिकार और समान अवसर मिलेंगे, चाहे वह बड़ा उद्योगपति हो या आम आदमी।”