हिन्दू-मुस्लिम सदभाव की एक बेजोड़ मिशाल भगवान श्री कृष्ण कि पोशाक बनाने का काम
कृष्ण-जन्माष्टमी के दिन देश-विदेश के सभी कृष्ण मंदिरों में भगवान कृष्ण को नयी पोषक धारण करायी जाती है। जन्माष्टमी के मौके पर पहनाई जाने वाली इन पोशाकों का काम कान्हा की लीला स्थली वृन्दावन में बड़े पैमाने पर चल रहा है । वृन्दावन में कृष्ण की पोषक बनाने का ये काम हिन्दू-मुस्लिम सदभाव की एक बेजोड़ मिशाल है, क्योंकि यहाँ पोषक बनाने वाले ज्यादातर कारीगर मुस्लिम है। जो गंगा जमुनी तहजीब को आज भी बनाए हुए हैं । लेकिन वर्तमान दौर में कोरोना की वजह से पोशाक बनाने वालो से लेकर पोषक बेचने वालों तक इसका गहरा असर पड़ा है । अगर फर्क नही पड़ा है तो सिर्फ कौमी एकता के संदेश पर । आइए देखते है कोरोना में इस बार कैसा है कान्हा की नगरी में पोशाक का बाजार ।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हो और भगवान श्रीकृष्ण की पोशाक बनाने का काम न हो यह केसे हो सकता है। कान्हा की लीला स्थली वृन्दावन में पोशाक बनाने का काम चल तो रहा है लेकिन राफ्ता राफ्ता ।
वृन्दावन में रंग-बिरंगी बनी पोशाक देश में ही नहीं वरन विदेशो में भी काफी लोकप्रिय है। कान्हा का जन्म दिन नजदीक है और उनकी पोशाको को बनाने का काम भी चरम पर चल रहा है। पोशाको को बनाने का काम जहा हिन्दू करते है वही ८० प्रतिशत मुस्लिम कारीगर बेजोड़ कारीगरी करके इन पोशाको को तेयार करते है।
कई माह पूर्व से पोशाक बनाने का काम अब चरम पर है। इन पोशाक को बनाने वाले कारीगर हाथ से पूरी कारीगरी करके इन पोशाको को तेयार करते है। कान्हा की लीला स्थली वृन्दावन में जहा हिन्दू कारीगर इस काम को करते है वही धर्मं की बंदिशों को तोड़ते हुए वृन्दावन के ज्यादातर मुस्लिम कारीगर पोशाक बनाने का काम करते है और सभी हिन्दू धर्म की आस्था का ख्याल रखते हुए इस काम को अंजाम दे रहे है । वैसे तो वृन्दावन में साल भर ही ये पोशाक बनाने का काम चलता रहता है, लेकिन जन्माष्टमी नजदीक आते-आते ये अपने सबाब पर होता है और कारीगरों को दिन में 15 से 16 घंटे तक काम करना पड़ता है और एक बड़ी पोशाकों को तैयार होने में कम से कम 15 से लेकर 20 दिन तक का समय लगता है मनमोहक पोशाक तैयार करने मे जहां 15 से 20 दिन का समय लगता है वही इन पोशाकों की कीमत भी सौ रुपए से लेकर लाखों रुपए तक बैठ जाती है।
वृन्दावन में बनी पोशाके देश ही नहीं विदेशो में भी भेजी जाती है। वृन्दावन के कारीगर पूरी मेहनत इस इन पोशाको को तेयार कर एक मिशाल कायम करते है। पिछले कई दशक से कान्हा की पोशाक बनाने वाले कारीगर ने बताया कि वह पूरी लगन और मेहनत से इन पोशाकों को बनाते है लेकिन कभी यदि कोई कमी भी रह जाती है तो खुद राधा रानी उन्हें सपने आकर सचेत कर जाती है और उन्हें वह कमी मिलती ही जिसका सुधार भी वह कर देते हैं ।
कान्हा की पोशाक बनाने का काम जहाँ दिन रात चल रहा है वही थोक व्यापारी के साथ साथ फुटकर व्यापारी इस बार बाजार में छाई मायूसी को लेकर चिंतित है । देश विदेश में जाने वाली पोशाकों का आर्डर यह से हो तो रहा है लेकिन जितनी मांग हर बार रहती थी उतनी इस बार दिखाई नही दे रही है ।
अपने लाला के जन्मोत्सव का जन्मोत्सव मनाने के लिए उधर कान्हा के भक्त बाज़ारो में दिखने लगे है और अभी से तैयारियों में जुट गए है । ताकि अच्छी और सुन्दर पोशाक में उनके कन्हैया मनमोहक नजर आये ।
वही व्यआपरी ने बताया कि सब की आस्था और भाव का ख्याल रखते हुए 10 रुपये से लेकर हज़ारो में कान्हा के जन्मोत्सव का सामान मिल जाता है । कान्हा के जन्मोत्सव को मानाने के लिए सबसे पहले लड्डू गोपाल उसको झुलाने के लिए झूला बाँसुरी मुकुट पोशाक आदि सामान की जरुरत पड़ती है । बाजार और कान्हा के भक्त दिल खोलकर कान्हा का जन्मोत्सव मनाने के लिए तैयार हैं।
श्रद्धालु भी यहाँ की बेजोड़ कारीगरी के मुरीद बन गये है कान्हा के भक्त और देश विदेश के मंदिरों से आई डिमांड के मुताबिक इस बार यह कारीगर सिल्क और स्टोन से बनी पोशाकों को बनाने में जुटे हुए हैं अगर इन कारीगरों की बात करें तो इस बार कन्हैया अपने जन्मदिन पर सिल्क और स्टोन से बनी पोशाको में अलग ही छठा बिखेरेगे।