बहुत पहले शुरू हो गई थी 'चिराग' बुझने की कहानी, जानें
पटना. एक बहुत पुरानी फिल्म थी प्रेसिडेंट, जिसमें केएल सहगल साहब की आवाज़ में गाना था एक बंगला बने न्यारा, रहे कुनबा जिसमें सारा. बिहार चुनाव के दौरान नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की बिहार से विदाई की उम्मीद लिए एक न्यारा बंगला का सपना देख रहे थे चिराग पासवान (Chirag Paswan), आज उसी बंगले से उनके अपनों ने ही उनको बेदखल कर दिया. हालत यह हो गई कि चिराग को बंगले में एंट्री के लिए भी तरसना पड़ गया. चिराग पासवान चाचा पशुपति पारस (Pashupati Paras) से मिलने उनके बंगले के बाहर हॉर्न बजाते रहे, डेढ़ घंटे तक इंतजार करते रहे लेकिन चाचा ने मुलाकात नहीं की.
दरअसल, विधानसभा चुनाव के दौरान नीतीश कुमार पर उगलने वाले आग की चिंगारी में ही आज चिराग झुलसते जा रहे हैं. चिराग के तीखे हमलों को लेकर नीतीश चुनाव और चुनाव के बाद भी शांत रहे. सच यह भी है कि चिराग की आज अगर ये हालत हुई है, तो उसकी पटकथा जेडीयू की ओऱ से बिहार चुनाव के नतीजों के बाद से ही लिखनी शुरू हो गई थी, जिसकी तस्दीक चिराग को एलजेपी से बेदखल करने के ऐलान के बाद की तस्वीर करती नज़र आई. तस्वीर वीणा देवी के दिल्ली स्थित आवास सरस्वती अपार्टमेंट की थी, जहां चिराग के चाचा पशुपति पारस की अगुआई में एलजेपी के पांचों सांसद, जेडीयू सांसद और नीतीश के करीबी लल्लन सिंह के साथ मिलने पहुंचे थे. साथ में जेडीयू के संजय सिंह और महेश्वर हज़ारी भी थे.
JDU ने ले लिया बदला!
बिहार चुनाव में जेडीयू को चिराग की ओर से नुकसान पहुंचाया गया और जेडीयू 43 सीटों पर सिमट गया. नीतीश ने भी पार्टी की बैठक में एलजेपी की ओर से पहुंचे नुकसान का जिक्र किया था. माना जा रहा है कि चुनाव के बाद ही बदला लेने के लिए ऑपरेशन एलजेपी की शुरुआत हुई. ललन सिंह और महेश्वर हजारी काफी समय से दिल्ली में रहकर इस ऑपरेशन को अंजाम तक पहुंचाने में जुटे थे. नतीजा यह हुआ कि कुछ महीनों में ही एलजेपी का एकमात्र विधायक राजू कुमार सिंह को JDU में शामिल किया गया. बीजेपी ने भी दूसरा झटका दिया और एकमात्र एमएलसी नूतन सिंह बीजेपी में शामिल हो गई. अब एलजेपी के पांचों सांसदों ने चिराग को अलग-थलग करते हुए नीतीश का समर्थन कर दिया. जेडीयू का ऑपरेशन कामयाब रहा और कामयाबी की खुशी जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह के बयान में झलक रही थी, जिसमें वो कहते नज़़र आए कि जो जैसा बोएगा, वो वैसा काटेगा.
अब सवाल है कि अलग-थलग पड़े चिराग क्या करेंगे? वैसे चिराग को तुरंत आरजेडी और कांग्रेस ने साथ आने का ऑफर दिया है, तो क्या चिराग बंगला छोड़ लालटेन की लौ जलाएंगे या हाथ मजबूत करेंगे? हालांकि, इस पूरे घटनाक्रम से एक बात साफ है कि धैर्य रखते हुए बिना शोर किये अपने विरोधियों से कैसे बदला लिया जाता है. नीतीश कुमार ने एक बार फिर से ऐसा कर दिखाया है. जब नीतीश ज़्यादा कमजोर लग रहे हों उस वक़्त नीतीश के हमले ज़्यादा सटीक और मारक होते हैं.