145 सालों की यात्रा पूरी कर चुका है डाक विभाग जानिए विश्व डाक दिवस पर खास स्टोरी
डाक व्यवस्था के महत्व को मशहूर शायर \”निदा फाजली\” के ’सीधा-साधा डाकिया जादू करे महान, एक ही थैले में भरे आंसू और मुस्कान‘ शेर से समझा जा सकता है. फाजली ने जब यह शेर लिखा था उस वक्त देश में संदेश पहुंचाने का डाक विभाग ही एकमात्र साधन हुआ करता था.वह डाकिया ही था जो उस वक्त अपनों की कुशलक्षेम व यादें अपने थैले में भर कर लोगो के घरों की चौखट तक पहुंचता था. जब लोग अपने घर परिवार से दूर अपनों की खातिर देश के दूसरे कोने में नौकरी, व्यवसाय या काम धंधे की तलाश में जाते थे, तो उनका हाल-चाल के लिए उस वक्त चिट्ठी का इस्तेमाल करते थे. उन पत्रों व चिठ्ठियों की आस में गांव से लेकर शहरों में उस वक्त हर इंसान बेसब्री से डाकिया के आने का इंतजार करता था. भारतीय डाक लोगों के दिलों में बसा हुआ था.
डाकिए को देख उस वक्त उत्सुकता से भर जाते थे लोग
एक जुलाई 1876 को भारत यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बनने वाला भारत पहला एशियाई देश था .भारतीय डाक 145 सालों की अपनी यात्रा पूरी कर चुका है. आज भी भारतीय लोगों के दिलों में डाक विभाग का भरोसा उसी तरह कायम जो एक दशक पहले हुआ करता था.डाकिए के थैले में से निकलने वाली चिट्ठी किसी को खुशी का तो किसी को गम का समाचार देती थी.उस वक्त जैसे ही डाकिया अपने कंधे पर चिट्ठियों से भरा थैला लेकर साइकिल की घंटी बजाते हुए गली से गुजरता था, तो क्या बच्चे क्या नौजवान सभी उसके पीछे दौड़ पड़ते थे . इस उम्मीद में कि किसी अपने परिचित या चाहने वाले का ख़त आया होगा . ये उत्सुकता लोगों में बनी रहती थी निरंतर यह कारवां बढ़ता गया .अंग्रेजों द्वारा शुरू की गई यह व्यवस्था लोगों के दिलों में आज भी जिंदा है.भले ही भारतीय डाक के काम करने के तौर-तरीके बदल गए हो, आज डाक विभाग चिट्ठी भेजने के साथ-साथ और भी काम कर रहा हैं.
आगरा के प्रतापपुरा स्थित प्रधान डाकघर के पोस्टर जर्नल राजीव उमराव बताते हैं कि इतने सालों की लंबी यात्रा के दौरान डाक विभाग ने लोगों के दिलों में जगह बनाई है. आप सोच सकते हैं कि उस दौर में जब लोग अपने खून पसीने की कमाई को मनीआर्डर के रूप में किसी अपरिचित डाकिए के हाथ में थमा देते थे. यह बात काफी है ये साबित करने के लिए कि उस वक्त भी डाक विभाग पर लोग कितना यकीन और भरोसा करते थे. ये भरोसा आज भी कायम है.समय के साथ-साथ डाक विभाग भी अपने काम करने के तौर-तरीके बदल रहा है. अब तेजी से दुनिया डिजिटल की ओर बढ़ रही है तो भारतीय डाक भी उसी व्यवस्था में अपने आप को समाहित कर रहा है. कई मोर्चों पर हम तेजी से लोगों के साथ इंटरनेट के माध्यम से व अन्य साधनों से जुड़ रहे हैं. समय के साथ साथ हमारे काम बदले हैं लेकिन भरोसा वही पुराना कायम है.
मगर आज नजारा पूरी तरह से बदल चुका है. इंटरनेट के बढ़ते प्रभाव ने डाक विभाग के महत्व को कम कर दिया है. आज लोगों ने हाथों से चिट्ठियां लिखना कम कर दिया है. अब ई-मेल, वाट्सएप के माध्यमों से सेकंडों में लोगो में संदेशों का आदान प्रदान होने लगा है. यह कहना गलत नहीं है कि चिट्ठी व ख़त की जगह अब इंटरनेट के जरिए सोशल मीडिया ने ले ली है.अब लोग तुरंत एक दूसरे को संदेश भेजने के लिए व्हाट्सएप, फेसबुक जैसे सोशल साइट का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन आज भी कागज से प्यार करने वाले लोगों की कमी नहीं है. आज भी लोग इस दौर में अपने चाहने वालों को डाक विभाग के जरिए खत, चिट्टियां भेजते हैं. और यह सिलसिला यूं ही जारी रहेगा.