नई शिक्षा नीति आत्मनिर्भर भारत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम-डॉ. विनय सहस्त्रबुद्धे
वाराणसी । राज्यसभा सांसद और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) के अध्यक्ष डॉ. विनय सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि नई शिक्षा नीति आत्मनिर्भर भारत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा व्यवस्था की वर्तमान खामियों को दूर किया गया है ।डॉ. सहस्त्रबुद्धे शुक्रवार को एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार को सम्बोधित कर रहे थे।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ एवं राष्ट्रीय सेवा योजना के संयुक्त तत्वाधान में नई शिक्षा नीति एवं पुस्तक का लोकार्पण-राष्ट्र चिंतक विषयक गोष्ठी में उन्होंने पुस्तक का लोकार्पण कर नई शिक्षा निती के बारे में विस्तार से बताया।
वेबिनार में विशिष्ट अतिथि प्रदेश के कैबिनेट मंत्री महेन्द्र सिंह ने कहा कि जब विश्व शिक्षा से अनभिज्ञ था। तब हमारे पास नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यलय थे। विगत 300 वर्षों से भारत को रूस , इंग्लैंड और अमेरिका बनाने के प्रयास होते रहे। परन्तु नई शिक्षा नीति भारत को भारत बनाने की दिशा में ये पहला कदम है।
वेबिनार की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर टी.एन.सिंह ने कहा कि पण्डित दीन दयाल उपाध्याय का मानना था कि एक जाति विहीन, वर्ग विहीन तथा द्वंद विहीन समाज का निर्माण ही भारत को भारत बना सकता है। उन्होंने कहा कि अंत्योदय एवं एकात्म मानववाद ही समाज के मुख्य धारा से छूटे वर्गों को जोड़ने में सक्षम है। सबको समान शिक्षा का अवसर प्राप्त हो इसके लिए नई शिक्षा नीति में पर्याप्त प्रावधान हैं।
संगोष्ठी का संचालन आयोजन सचिव डॉ. पारिजात सौरभ, संयोजक डॉ केके सिंह ने संयुक्त रूप से किया। अतिथियों का स्वागत प्रोफेसर निरंजन सहाय और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. ऊर्जस्विता सिंह ने किया।
इस दौरान प्रो.योगेन्द्र सिंह, प्रो. दिवाकर लाल, प्रो. ओम प्रकाश सिंह ने भी विचार रखा। कार्यक्रम में वाराणसी, चन्दौली, भदोही, मिर्जापुर और सोनभद्र राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम अधिकारी और विद्यार्थियों ने भागीदारी की।