“सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: शाहबानो केस की याद ताजगी से जुड़ी समाजिक न्याय की अनमोल मिसाल”

शाहबानो बेगम की कहानी भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो महिलाओं के अधिकारों और समाज में न्याय के मुद्दे को लेकर बहुतेरे विवादों का केंद्र रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसला दिया है जिसने देशवासियों के बीच विवादों की चरम सीमा पर एक नई मिसाल रखी है। इस फैसले के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय समाज को एक सामान्य, समझदारीपूर्ण और समर्थन भरा संदेश दिया है।

यह फैसला शाहबानो बेगम केस के विवाद को याद दिलाता है, जो 1986 में सुप्रीम कोर्ट ने दिया था। उस समय, भारतीय कोर्ट ने ने यह निर्णय दिया था कि मुस्लिम महिलाओं को तलाक देने का अधिकार होता है और तीन तलाक का प्रयोग केवल एक बार किया जा सकता है।

वर्ष 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया, जिसमें उन्होंने तीन तलाक प्रथा को अवैध और गैर-संविधानिक घोषित किया। इस फैसले से तलाक देने की प्रक्रिया में सुधार हुआ और महिलाओं को सम्मान दिया गया। यह फैसला भारतीय समाज में एक बड़ा कदम था जो महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करने में मददगार साबित हुआ।

सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला समाज में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाया है और भारतीय महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया है। इस फैसले ने सामाजिक सुधार और समानता के प्रति एक सकारात्मक संदेश दिया है, जिससे भारतीय समाज में न्याय और समर्थन की भावना बढ़ी है।

सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करने में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होता है। इससे भारतीय समाज में न्याय, समानता और समर्थन की भावना बढ़ी है और समाज के विभिन्न वर्गों के बीच एक मजबूत एकता का संदेश दिया गया है।

SHAH BANO BEGAM की कहानी (History) ;

शाहबानो बेगम की कहानी भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो महिलाओं के अधिकारों और समाज में न्याय के मुद्दे को लेकर बहुतेरे विवादों का केंद्र रहा है। इसकी कहानी इस प्रकार है:

शाहबानो बेगम, जो दिल्ली के एक मुस्लिम परिवार में रहती थीं, ने अपने पति से 1978 में तलाक के लिए अर्ज़ किया। उन्होंने यहां तक की अपने हक के लिए अलग होने का फैसला भी लिया।

तलाक के बाद, उनकी आर्थिक स्थिति बहुत दुर्भाग्यपूर्ण थी और उन्हें महिला दायित्व में आर्थिक सहायता की आवश्यकता थी। वे भारतीय कानूनी प्रणाली के तहत इस आर्थिक सहायता के लिए अलीमों द्वारा पेंशन की मांग की।

अनुसूचित दिनांक से तीन साल बाद, उन्होंने सरकारी नियमों के अनुसार पेंशन के लिए आवेदन दिया। उसके बाद उनके पति के अलावा कुछ लोगों ने उनसे जामिन मांगनी शुरू की।

दरअसल, 1985 में इंदौर की एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला शाहबानो ने गुजारा भत्ता हासिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उनके पति मोहम्मद अहमद खान को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया।

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