सूर्य देव के प्रति आभार प्रकट करने के लिए मनता है ‘रथ सप्तमी’ का पर्व
रथ सप्तमी के दिन सूर्य देव हीरे से जड़ित सोने के रथ में विराजमान हुए,महर्षि कश्यप और देवी अदिति के गर्भ से सूर्य देव का जन्म इसी दिन हुआ था
सनातन धर्म में सूर्य, चंद्र, अग्नि, पवन, वरुण और इंद्र प्रमुख गौण देवता हैं। ये देवता मानव जीवन के साथ-साथ सभी जीवों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारतीय संस्कृति सभी के प्रति कृतज्ञता सिखाती है। इसी के अनुसार सूर्य देव के प्रति आभार प्रकट करने के लिए ‘रथ सप्तमी’ का पर्व मनाया जाता है। इसलिए इस दिन भगवान सूर्य की पूजा की जाती है ।
रथ सप्तमी इस बार 27 जनवरी शनिवार को है। माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 27 जनवरी को सुबह 09 बजकर 20 मिनट से शुरू हो गई है। 28 जनवरी को सुबह 08 बजकर 43 मिनट पर इस तिथि का समापन हो रहा है। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर 28 जनवरी को रथ सप्तमी होगी। सनातन संस्था के गुरूराज प्रभु ने शुक्रवार को ये जानकारी दी। उन्होंने बताया कि माघ शुक्ल सप्तमी को रथसप्तमी मनाई जाती है। इस दिन से सूर्य अपने रथ में भ्रमण करते हैं। इस रथ में सात घोड़े हैं; इसलिए रथसप्तमी शब्द का प्रयोग हुआ है।
उन्होंने बताया कि ‘माघ शुक्ल पक्ष सप्तमी’ के दिन महर्षि कश्यप और देवी अदिति के गर्भ से सूर्य देव का जन्म हुआ था। श्री सूर्यनारायण, भगवान श्री विष्णु के एक रूप ही है । संपूर्ण विश्व को अपने महातेजस्वी स्वरूप से प्रकाशमय करने वाले सूर्यदेव के कारण ही पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व है। उन्होंने बताया कि रथ सप्तमी वह दिन है जब सूर्य देव हीरे से जड़ित सोने के रथ में विराजमान हुए। सूर्यदेव को स्थिर रूप से खड़े रह कर साधना करते समय स्वयं की गति संभालना संभव नहीं हो रहा था। उनके पैर दुखने लगे और उसके कारण उनकी साधना ठीक से नही हो रही थी । तब उन्होंने परमेश्वर से उस विषय में पूछा और बैठने के व्यवस्था करने के लिए कहा। मेरे बैठने के उपरांत मेरी गति कौन संभालेगा? “ऐसा उन्होंने परमेश्वर से पूछा”। तब परमेश्वर ने सूर्यदेव को बैठने के लिये सात घोड़े वाला हीरे से जड़ा हुआ सोने का एक रथ दिया। जिस दिन सूर्यदेव उस रथ पर विराजमान हुए, उस दिन को रथसप्तमी कहते हैं। इसका अर्थ है ‘सात घोड़ों का रथ’।
—सभी अंकों में ‘सात’ अंक का विशेष महत्व है ‘
सभी अंकों में ‘सात’ अंक का विशेष महत्व है। अंक ‘सात’ में त्रिगुणों के संतुलन के साथ-साथ सत्त्व गुण की वृद्धि के लिए आवश्यक जीवन शक्ति, आनंद आदि की सूक्ष्म तरंगों को अवशोषित करने की विशेष क्षमता होती है। सप्तमी शक्ति और चैतन्य का सुंदर संगम है। इस दिन किसी देवता विशेष का सिद्धांत और शक्ति, आनंद और शांति की तरंगें 20 प्रतिशत अधिक सक्रिय होती हैं। रथसप्तमी को निर्गुण सूर्य (सूक्ष्म सौर तत्व) की तरंगें अन्य दिनों की अपेक्षा 30 प्रतिशत अधिक सक्रिय होती हैं।’ उन्होंने बताया कि रथसप्तमी एक ऐसा त्योहार है जो सूचित करता है कि सूर्य उत्तरायण में मार्गक्रमण कर रहा है। उत्तरायण अर्थात उत्तर दिशा से मार्गक्रमण करना। उत्तरायण यानी सूर्य उत्तर दिशा की ओर झुका होता है। ‘श्री सूर्यनारायण अपने रथ को उत्तरी गोलार्ध में घुमा रहे हैं’, इस स्थिति मे रथसप्तमी को दर्शाया गया है। रथसप्तमी किसानों के लिए फसल का दिन और दक्षिण भारत में धीरे-धीरे बढ़ते तापमान का दर्शक है एवं वसंत ऋतु नजदीक आनेका प्रतीक भी है।
— जीवन का मूल स्रोत है सूर्य
गुरूराज प्रभु ने बताया कि सूर्य जीवन का मूल स्रोत है। सूर्य की किरणें, विटामिन ‘डी’ जीवनसत्व प्रदान करती हैं, जो शरीर के लिए आवश्यक है। समय का मापन सूर्य पर निर्भर होता है। सूर्य ग्रहों का राजा है और इसका स्थान नवग्रहों में है। यह स्थिर है और अन्य सभी ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं। सूर्य स्वयं प्रकाशमान है और अन्य ग्रह उसका प्रकाशप्राप्त करते हैं।
—रथसप्तमी कैसे करे सूर्यदेव की पूजा
रथ सप्तमी के दिन सूर्योदय के समय स्नान करना चाहिये। सूर्य देव के 12 नाम ले कर कम से कम 12 सूर्य नमस्कार करें । पीढ़े पर, रथ पर विराजमान सूर्यनारायण की आकृति बनाकर उनकी पूजा करें। उन्हे लाल फूल अर्पित करे। सूर्यदेव से प्रार्थना करें और भक्ति के साथ आदित्य हृदयस्तोत्रम, सूर्याष्टकम् और सूर्य कवचम् में से किसी एक स्त्रोत्र का पाठ करें या सुनें। रथसप्तमी के दिन कोई नशा न करे। रथसप्तमी के दूसरे दिन से प्रतिदिन सूर्य को प्रार्थना करनी चाहिए और सूर्य नमस्कार करना चाहिए। इससे स्वास्थ्य अच्छा रहता है।