आज का इतिहास
116 साल पहले शुरू हुआ था स्वदेशी आंदोलन, अंग्रेजों के बंगाल विभाजन के फैसले के खिलाफ देशभर में हुए विरोध-प्रदर्शन
20 जुलाई 1905। इस दिन भारत के वायसराय लॉर्ड कर्जन ने बंगाल के विभाजन की घोषणा की और अक्टूबर 1905 में बंगाल का विभाजन हो गया। लॉर्ड कर्जन के इस फैसले का पूरे भारत में जबरदस्त विरोध हुआ। दरअसल बंगाल विभाजन के पीछे भारतीयों की हिन्दू-मुस्लिम एकता को तोड़ने की साजिश थी।
अंग्रेजों ने मुस्लिम-बहुल पूर्वी हिस्से को असम के साथ मिलाकर अलग प्रांत बना दिया। दूसरी तरफ हिंदू-बहुल पश्चिमी हिस्से को बिहार और उड़ीसा के साथ मिलाकर पश्चिम बंगाल नाम दे दिया। यानी अंग्रेज दोनों प्रांतों में दो अलग-अलग धर्मों को बहुसंख्यक बनाना चाहते थे।
विभाजन का देशभर में विरोध होने लगा। 7 अगस्त 1905 को कलकत्ता के टाउनहॉल में एक विशाल जनसभा का आयोजन हुआ। लाखों लोग इसमें शामिल हुए। इसी सभा में बहिष्कार प्रस्ताव पास किया गया और इसी के साथ स्वदेशी आंदोलन की औपचारिक शुरुआत हुई।
इस आंदोलन में नेताओं ने भारतीयों से अपील की कि वे सरकारी सेवाओं, स्कूलों, न्यायालयों और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करें और स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल को बढ़ावा दें। यानी ये राजनीतिक आंदोलन के साथ-साथ आर्थिक आंदोलन भी था।
पूरे देश में विदेशी कपड़ों की होली जलाई जाने लगी। लोग नंगे पैर विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने लगे। विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का असर ये हुआ कि भारत में विदेशी वस्तुओं की बिक्री एकदम से कम हो गई और स्वदेशी सामान की ब्रिकी बढ़ने लगी।
स्वदेशी आंदोलन के दौरान विदेशी कपड़ों की होली जलाई जाने लगी। चरखा इस आंदोलन का प्रतीक बन गया।
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ‘आमार शोनार बांग्ला’ भी अंग्रेजों के इस फैसले के विरोध में लिखा था, जो कि आगे चलकर बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान बना। लोग इस गीत को गाते हुए विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लेते थे। हिन्दुओं और मुसलमानों ने अपनी एकता दिखाने के लिए एक-दूसरे को राखी बांधी।
इतने व्यापक विरोध प्रदर्शन का भी अंग्रेज सरकार पर कोई असर नहीं हुआ। लॉर्ड कर्जन की घोषणा के मुताबिक 16 अक्टूबर को बंगाल विभाजन लागू हो गया। आहत भारतीयों ने 16 अक्टूबर को राष्ट्रीय शोक दिवस मनाया।