तालिबान ने ज़ाहिर कर दिया कि मिली-जुली नहीं, बस उनकी होगी सरकार- विश्लेषण
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है कि मानवीय सहायता तालिबान से बातचीत के लिए एक “प्रवेश द्वार” हो सकती है.तालिबान ने मंगलवार शाम अफ़ग़ानिस्तान में अंतरिम सरकार के गठन का एलान किया और बताया कि अफ़ग़ानिस्तान अब ‘इस्लामिक अमीरात’ है.तालिबान के संस्थापकों में से एक मुल्ला मोहम्मद हसन अख़ुंद को प्रधानमंत्री बनाया गया है और मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर को उप प्रधानमंत्री पद दिया है. बरादर तालिबान के सह संस्थापक हैं.अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में विरोध मार्च निकाला गया जिसमें अफ़ग़ान महिलाएँ और नौजवान अपने अधिकारों की मांग करने के साथ-साथ पाकिस्तान विरोधी नारे भी लगा रहे थे.
तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में अपनी अंतरिम सरकार के गठन का एलान करते हुए अफ़ग़ानिस्तान को ‘इस्लामिक अमीरात’ घोषित कर दिया है.
मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद प्रधानमंत्री होंगे तो मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर उप प्रधानमंत्री. वहीं मुल्ला अब्दुल सलाम हनफ़ी को भी उप प्रधानमंत्री बनाया गया है.
अखुंद की अगुवाई में गठित होने वाली सरकार में मुल्ला याकूब रक्षा मंत्री होंगे और सिराजुद्दीन हक्कानी गृह मंत्री होंगे.
15 अगस्त को तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्ज़ा कर लिया था. इसके बाद से सरकार बनाने की कवायद जारी थी.
इस बीच नेतृत्व को लेकर सहमति ना बनने की बात भी सामने आई और सरकार के प्रमुख के तौर पर कुछ नेताओं के नामों पर कयास भी लगाए गए.
फिलहाल अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की सरकार का गठन हो चुका है पर अब भी ये एक अंतरिम सरकार है जिसमें वो सभी मंत्री पद रखे गए हैं जो दुनिया की दूसरी सरकारों में मिलते हैं.
मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंदImage caption: मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद
वो लड़ाई जो लंबे समय तक अंधेरों में चलती रही, जिसके नेताओं का नाम दुनिया के आतंकवादियों की सूची में शामिल है, वो अब दुनिया के दूसरे देशों की तरह ही सरकार में मंत्री पद बना रहा है.
सरकार बनाने को लेकर तालिबान के सैन्य और राजनीतिक नेताओं के बीच टकराव की स्थिति रही है. ऐसे में कार्यवाहक प्रधानमंत्री मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद को टकराव शांत करने वाले समझौता उम्मीदवार के तौर पर देखा जा रहा है.
तालिबान के बंदूक से होते हुए प्रशासन संभालने तक के सफर में अंतरिम सरकार बनाने से उसे मदद मिल सकती है.
इससे तालिबान की ये सोच भी जाहिर होती है कि तालिबान की जीत के बाद केवल वो ही शासन करेगा.
सूत्रों का कहना है कि तालिबान ने ‘समावेशी’ सरकार का विरोध किया था. वो पूर्व राजनीतिक हस्तियों और अधिकारियों को सरकार में शामिल नहीं करना चाहते थे. खासकर के वो नेता जो शीर्ष पर रहे हैं और जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं.
उनका जवाब था, “हम दूसरों को अपनी कैबिनेट क्यों बनाने दें जबकि दूसरे देश अपनी कैबिनेट खुद चुनते हैं.”
जहां तक महिलाओं की बात है, तो ऐसी कोई संभावना नहीं थी कि किसी महिला को मंत्री पद दिया जाएगा. वहीं, ऐसा लगता है कि महिला मामलों के मंत्रालय को अभी के लिए ख़त्म कर दिया गया है.